विजय तिवारी, भवाली, नैनीताल : भारतीय समाज अनेक सभ्यताओ के साथ – साथ कुरीतियों से भी भरा पढा है। जैसे बलि प्रथा, सती प्रथा, जुआ इत्यादि। प्राचीन काल से ही जुआ खेलना राजा महाराजाओं के अतिरिक्त धना सेठो का भी शौक रहा है। अज्ञानथा के कारण दीपावली के अवसर पर जुआ खेलने की प्रथा अत्यंत पुरानी है।
सदियों से यह प्रथा चली आ रही है। इसी क्रम में बग्वाली पोखर में बग्वाली के शुभ अवसर पर बग्वाली पोखर मैदान में खुले रूप से जुए खेलने का रिवाज था। जिसमें प्राचीन समय में चंन्द्र राजा, कत्यूरी राजा, टिहरी नरेश, गढवाली, कुमाऊँ के सेनापति एवं धन्ना सेठो के अतिरिक्त सामान्य जन भी जुआ।खेलने के लिए मैदान में एकत्रित होते थे। यह धीरे- धीरे मेले का रूप ले लिया।
अभी हाल तक बग्वाली पोखर में खुले रूप से मैदान में जुआ खेलने का रिवाज। था। लेकिन उक्त बुरी प्रथा को वर्तमान में खुले रूप में मैदान मे नही खेला जाता है। हाँलाकि चुपके से दुकानो के भीतर लोग अभी भी जुआ खेलते है होगे । क्योकि परम्परा का निर्वाह कर रहे है। वर्तमान। में बग्वाली पोखर का बग्वाली मेला आधुनिक रूप में निंखर रहा है। जिसमें अन्य आकर्षण। चरखो, दुकानो, प्रदर्शनी, स्टालो, नेताओ के भाषणों को जगह मिल गयी है। सांस्कृतिक। कार्यक्रमों की प्रस्तुति भी अब मेले की शोभा बढ रही है। मेला आधुनिकीकरण। की ओर अग्रसर। है।मेला समाज में सब लोगो को जोडने का काम करता है।