स्वामी योग रत्ना सरस्वती को भारत की संस्कृति ऐसी भाई कि वो अपनी सरज़मीन पेरिस को अलविदा कह यहीं बस गईं। योग की शिक्षा ली और कर्नाटक के गोकर्ण को अपनी कर्मभूमि बनाया। वो सिर्फ देश नहीं बल्कि विदेशों में योग के प्रचार में अहम भूमिका निभा रही है।
कर्नाटक के तट पर बसा शहर गोकर्ण एक खूबसूरत पर्यटक स्थल जो समुन्दर। प्राचीन मंदिरों और बीच के लिए जाना जाता है और कई विदेशी यहाँ इस के खूबसूरत तटों पर छुट्टी मनाने आते हैं।
कुछ साल पहले तक गोकर्ण आने वाले विदेशी टूरिस्टों पर यहाँ की संस्कृति बिगाड़ने के आरोप लगते थे। लेकिन अब गोकर्ण बदल गया है और यहाँ, विदेशी भी पूरी तरह से भारतीय रंग ढंग मे ढल गए हैं।
यहाँ आने वाले टूरिस्ट अब महेश बीच पर मौज मस्ती करने नहीं बल्की यहाँ के शांत वातावरण मे रह कर योग सीखते हैं। गोकर्ण से करीब 5 किलोमीटर दूर छोटा सा गाँव बनकिकोडला है, और यह मशहूर है विदेशी पर्यटकों के बीच।
स्वामी योग रत्ना सरस्वती का जनम पेरिस मे हुआ था लेकिन उनकी शिक्षा भारत मे हुई।
बचपन से योग रत्ना, भारत की संस्कृति और कला से प्रेरित रहीं। स्वामी योग रत्ना बचपन से योग मे दिलचस्पी दिखाती थी, और उन्हों ने योग शिक्षा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।
उन्होंने बिहार स्कूल ऑफ़ योग से योग की शिक्षा ली और फिर साल 1984 में संयसदीक्षा लेकर गोकर्ण के इसी गाँव मे बस गयी।
और तब से योग को देश विदेश मे प्रचार करती रही हैं। बनकिकोडला गाँव मे शंकर फाउंडेशन के तहत वह यहाँ आने वाले टूरिस्ट को योग की शिक्षा देती हैं।
स्वामी योगा रत्ना दरअसल स्वामी सत्यानंद सरस्वती की शिष्य रही हैं। स्वामी योगा रत्ना सन्यास के बाद पूरी तरह से एक सन्यासी का जीवन गुज़ारती हैं और यहाँ आने वाले टूरिस्ट भी जब तक इस आश्रम मे उनके साथ रहते हैं वह भी उनकी की तरह अपना दिनचर्या गुज़ारते हैं और सात्विक भोजन करते हैं।
स्वामी योगा रत्ना की योग के प्रति यह निष्ठा कई टूरिस्ट के लिए एक मिसाल है, और वह भी लिए इस आश्रम मे ज़्यादा दिन बिताना चाहते हैं, और स्वामी योगा रत्ना के साथ योग सीख कर खुद योगा प्रचारक बनना चाहते हैं।
स्वामी योगा रत्ना को इस बात से बेहद ख़ुशी मिलती है के अब हर साल जून 21 योग दिवस के रूप मे मनाया जारहा जो योगा को हर नागरिक की ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बना सकता है।
वाकई मे स्वामी योगा रत्ना जैसे लोग योग के पथप्रदर्शक माने जा सकते हैं।