अन्तर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ में जीवन जीने की सही राह में योग, ध्यान और स्वस्थ आदतों के बहुमूल्य योगदान पर मंथन हुआ। सारनाथ के तिब्बती संत श्री गेशे सानतेन ने कहा विज्ञान मानता है कि न्यूरोनस को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता, परन्तु ध्यान से यह संभव है। उन्होंने कहा कि एक विध्वंसकारी और क्रोधी तथा मानसिक रूप से असंतुलित व्यक्ति के न्यूरोनस ध्यान द्वारा पुनर्जीवित किये जा सकते हैं, जिससे वह समाज में एक सकारात्मक योगदान दे सकता है।
डॉ. मीरा शिवा की अध्यक्षता में हुए इस सत्र में अरविंदो आश्रम के प्रमुख श्री श्रद्धालु रानाडे, कम्बोडिया के श्री सोन सौबर्ट, साउथ कोरिया के जियो लाँग ली, जापान के श्री यासुआ कामाता, अमेरिका की योगिनी सम्भावी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
अरविंदो आश्रम में श्री रानाडे ने कहा कि किसानों को बहुप्रतीक्षित प्रतिष्ठा अवश्य मिलनी चाहिए, जिसके वे सदियों से हकदार हैं। प्राचीन भारतीय ऋषियों की मानसिकता आधुनिक यूरोपीय सभ्यता से भिन्न है। आज हम उसी यूरोपीय सभ्यता का अनुसरण करते हैं। आध्यात्मिकता की शक्ति ज्ञान, बल, सदभावना, सौंदर्य और अभिव्यक्ति है।
श्री जियो लाँग ली ने कहा कि जब हम ब्रह्माण्ड लक्ष्य की पूर्ति करते हैं तब हमारी आत्मा स्वमेव तुष्ट होने लगती है।
योगिनी सम्भावी ने कहा कि प्राण शक्ति ही हमारे मन को विचलित करती है और ध्यान से हम इसी प्राण शक्ति को नियंत्रित कर सकते हैं। विचार कुंभ ब्रह्माण्डीय ऊर्जा और विचार शक्ति का मंथन है। उन्होंने “सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वाथ साधिके” के गायन के माध्यम से आंतरिक ध्यान की यात्रा करवाई।
जापान के यासुका कामाता ने योग और ध्यान पर पावर प्रेजेन्टेशन दिया।
धन्य हो महराज