नीरज कुमार जोशी : हमारे पास सदियों से चली आ रही एक सोने की कार थी….. उस कार को चलाने में सभ्यता रूपी ड्राइवर, पंचगव्य रूपी पेट्रो
ल, संस्कृति रूपी सड़क ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी और कार में बैठने वाले सभी सवारियां वेद-वेदांग रूपी सीट पर संस्कार रूपी सीट बेल्ट से बंधकर सुरक्षित यात्रा करते हुए बहुत ही खुश रहा करती थी….. ये कार कई युगों का लम्बा सफर बिना अपनी चमक खोये तय कर चुकी थी कि अचानक से एक दिन रास्ते में कुछ डाकुओं की नजर इस कार पर पड़ गयी और उन्होंने इस कार को लूटने की ठानी…. कई बार आक्रमण करने के बाद भी जब वो लुटेरे इस कार को पूरी तरह से नहीं लूट सके तो कुछ लुटेरे कार के परिचालक बन गए…. लेकिन फिर भी कार संस्कृति रूपी सड़क पर ही चल रही थी इसके बाद कुछ लुटेरों ने एक दिन सभ्यता रुपी ड्राइवर को चलती कार से बाहर फेंक दिया और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गए लेकिन फिर भी कार सरपट दौड़ रही थी तो एक दिन उन्होंने पंचगव्य रूपी पेट्रोल के मूल स्रोत गायों और सांडों को खत्म करना शुरू कर दिया जिससे कार को चलने के लिए पेट्रोल मिलना बंद हो गया तो कार में बैठी सवारियों ने धक्का देकर कार चलाने की कोशिश की…. इस धक्के से संस्कृति रूपी सड़क कमजोर हो गई और संस्कार रुपी सीट बेल्ट भी टूट गई वेद-वेदांग रूपी सीट को भी बहुत नुकसान हुआ और कार में से ये सीट और सीट बेल्ट निकाल कर साइट फैंक दी गई
लुटेरों ने कार में लगे सारे सोने को निकाल लिया और कार को गायों के खून रूपी डीजल से चलाना शुरू कर दिया जिससे सवारियों को दिक्कत होने लगी तो उन्होंने कार को वापस कब्जे में लेने की ठान ली करीब सात सौ साल के प्रयासों से हम सफल हो गए और कार वापस हमारे कब्जे में आ गई थी लेकिन इस कार के ब्रेक फेल हो गए थे…. हमारे कुछ पूर्वजों ने कोशिश की कि कार में वेद-वेदांग रूपी सीट और संस्कार रूपी सीट बेल्ट फिर से लगाई जायें और वापस कार को पंचगव्य रूपी पेट्रोल से चलाया जाए लेकिन तभी इस प्रयोग के नायक की गोली मारकर हत्या कर दी गई और कार एक अनाड़ी ड्राइवर के हाथ में आ गई और उसने कार के सॉकर भी खतम कर दिये बाद में वो ड्राइवर जब मर गया तो फिर कुछ लोगों ने इस कार को मरम्मत करने की कोशिश की लेकिन अफसोस कि इस बार के ड्राइवर को जहर देकर मार दिया गया अब तब से अब तक कार सही करने के वादे तो बहुत किये जाते हैं लेकिन कार सही होती नहीं क्योंकि हम हर बार एक नये ड्राइवर को कार दे देते हैं लेकिन कार के ब्रेक कभी सही नहीं करवाया… अंजाम वहीं का वहीं है कार और ज्यादा खटारा बन गई है लेकिन फिर भी हम कार के ब्रेक नहीं बदलवा सके क्योंकि जो भी ब्रेक ठीक करने की कोशिश करता है ड्राइवर और उसके साथ मिलकर उसे दुनिया से विदा कर देते हैं इसी लिए एक समय की सोने की कार आज आजादी ६७ सालों बाद भी इधर उधर टकरा रही है
ड्राइवर बदलो पर जरूरत है कार के ब्रेक सही करने की