गणपत बिश्नोई : भगवा ध्वज भारत का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक ध्वज है! यह हिन्दुओं के महान प्रतीकों में से एक है। इसका रंग भगवा (saffron) होता है। यह त्याग, बलिदान, ज्ञान, शुद्धता एवं सेवा का प्रतीक है। यह हिंदुस्थानी संस्कृति का शास्वत सर्वमान्य प्रतीक है। हजारों सालों से भारत के शूरवीरों ने इसी परम पवित्र भगवा ध्वज की छाया में लड़कर देश की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर किये।
भगवा ध्वज, हिन्दू संस्कृति एवं धर्म का शाश्वत प्रतीक है। यही ध्वज सभी मंदिरो, आश्रमों में लगाया जाता है। छत्रपती शिवाजी महाराज की सेना का यही ध्वज था। प्रभु श्री राम, भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के रथों पर यही ध्वज लहराता था।
छत्रपति शिवाजी के अनुसार ध्वज का भगवा रंग उगते हुए सूर्य का रंग है; अग्नी के ज्वालाओ रंग है। उगते सूर्य का रंग और उसे ज्ञान, वीरता का प्रतीक माना गया और इसीलिए हमारे पूर्वजों ने इसे सबका प्रेरणा स्वरूप माना।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने परम पवित्र भगवा ध्वज को ही अपना गुरू माना है। संघ की शाखाओं में इसी ध्वज को लगाया जाता है, इसका ही वंदन होता है और इसी ध्वज को साक्षी मानकर सारे कार्यकर्ता राष्ट्रसेवा, जनसेवा की शपथ लेते हैं। और उनको समझाया जाता है कि राष्ट्राध्वज तिरंगा के जैसेही धर्म ध्वज का भगवा ध्वज सन्मान करे। भारत की स्वतंत्रता के बाद भगवा ध्वजको राष्ट्रीय ध्वज घोषीत करना चाहीए ऐसा संघ तथा हिंदू संघटनों का आग्रह था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्य कार्यालय नागपुर में हमेशा भगवा ध्वज लहराता है। स्वातंत्र्य दिन तथा गणतंत्र दिवस पे राष्ट्रध्वज तिरंगा को भी मानवंदना दी जाती है। भगवा ध्वज की रक्षा और सम्मान के लिये लाखों हिंदु जन तैयार हैं।
राष्ट्रीय ध्वज
भले ही आज भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा हो पर १५ अगस्त १९४७ से पहले भगवा ध्वज ही भारत का राष्ट्रीय ध्वज था।राष्ट्रिय नीति निर्माता समिति ने भी आज़ादी के बाद भगवा ध्वज को राष्ट्र ध्वज बनाने की सिफारिश के थी। भगवान विष्णु राम,कृष्ण इत्यादि का ध्वज भी भगवा ध्वज ही रहा। महाभारत काल में श्री कृष्ण एवं अर्जुन के रथ पर भी भगवा ध्वज लगा था। आर्यावर्त काल से ही भगवा ध्वज राष्ट्रीय ध्वज रहा है।