शिखा शर्मा , चंडीगढ़ : धरती पर जीवन जीने के लिए हवा के बाद पानी सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत है. मनुष्य के साथ-साथ जीव जंतुओं को भी जल की आवश्यकता होती है. दैनिक कार्यो जैसे नहाना, भोजन बनाना, कपडे धोना, साफ़-स्वछता, खेत-खलिहानों में फसल आदि के लिए पानी की जरुरत पड़ती है. पानी के बिना जीवन असम्भव है. हालांकि पृथ्वी का तीन चौथाई हिस्सा पानी से घिरा हुआ है लेकिन पेयजल कुल पानी का 0.5 प्रतिशत है.
देश के 29 राज्यों में से 12 राज्य सूखे की मार झेल रहे है. कई राज्यों में पानी का अकाल इतना बढ़ गया है कि कई किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद आधा लीटर पानी उनके हिस्से में आ रहा है. उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, गुजरात, छतीसगढ़ और महाराष्ट्र जैसे ऐसे राज्य है जो सूखे की मार झेल रहे है. चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में फिलहाल ऐसी कोई स्थिति देखने को नहीं मिली. जबकि दिल्ली का भी पानी की किल्लत से सामना हो रहा है. राजधानी के लिए पानी कभी हरियाणा तो कभी भाखड़ा से मंगाया जाता है.
इन सब राज्यों में महाराष्ट्र पिछले कुछ सालों से सूखा प्रभावित है. फरवरी 2016 से महाराष्ट्र के मराठवाडा और लातूर इलाके के हालात बद से बदतर हो गए है. सूखे की मार झेल रहा लातूर पानी की एक एक बूंद का मोहताज हो गया है. इसी विपदा को देखते हुए सरकार की ओर से पानी की ट्रेन लातूर के लिए भेजी गई जिससे लोगों की प्यास बुझ सके. साथ ही केंद्र सरकार ने सूखा प्रभावित क्षेत्रों को पानी के इंतजाम के लिए 833 करोड़ रूपए देने का ऐलान किया है.
सरकार सूखा प्रभावित इलाकों को पानी भेजने का इंतजाम तो कर रही है लेकिन बिगड़ते मानसून मिजाज़ से जमा किए हुए पानी का स्तर निचले स्तर तक जा रहा है. भूमण्डल की गर्मी बढ़ने के साथ-साथ पृथ्वी का जल तल 3 मीटर प्रतिवर्ष की दर से गिर रहा है. बदलता पर्यावरण कई स्थानों को सूखे में तब्दील कर चुका है. विडम्बना यह है कि तालाब कुओं और झीलों के रख रखाव पर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया. परिणामस्वरूप घटते मानसून, तपती गर्मी और साफ-सफाई को नजरअंदाज कर जलाशयों ने भी बिना पानी के दम तोड़ दिया.
घटते पेयजल संकट के बावजूद सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे. सूखते, सिमटते जलाशयों जैसे तालाब कुओं और झीलों को बचाने का प्रयास सरकार क्यों नहीं कर रही?
गर्मियां शुरू हो गई है ऐसे में तपते महीने मई और जून तक उन राज्यों में भी पानी का संकट मंडरा सकता है जिन राज्यों से पानी जा रहा है. हालांकि वेदर फोरकास्ट करने वाली एजेंसी स्कायमेट की तरफ से राहत की खबर है. स्कायमेट ने दावा किया है कि इस साल मानसून सामान्य से ज्यादा बारिश लेकर आएगा. अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार 105 से 110 प्रतिशत तक बारिश हो सकती है. अगर ऐसा संभव होता है तो सरकार को इस एलान के बाद जल सरंक्षण को लेकर कड़े कदम उठाने चाहिए. सूखे पड़े जलाशयों में सफाई का प्रावधान करके उन्हें जल सरंक्षण योग्य बनाया जाए ताकि आने वाले समय में कोई भी राज्य बूंद- बूंद के लिए न तरसे.