शिखा शर्मा , चंडीगढ़ : अगर आप एक गिलास पानी पीने के लिए लेते है लेकिन उसमें से एक घूंट पीकर बाकी का पानी फेंक देते है तो गौर फरमाईए उन लोगों पर जो भरी दुपहरी में जमीन से एक एक बूंद पानी की कुरेदने को मजबूर है. घूंट-घूंट के लिए तरस रहे लोगों के लिए एक घड़ा पानी किसी अमृत से कम नहीं है. पानी की ये हाहाकार धीरे-धीरे पैदा हुई है. इंसान को सामने जो फायदा दिखता है उसे देखकर खुश तो हो जाता है लेकिन उसके परिणाम से अनभिज्ञ रहता है. “आगे दौड़ पीछे चौड़” की कहावत यहां पर यथार्थ फबती है. इसका अर्थ है कि इंसान बहुत कुछ पाने के लिए आगे भागता है लेकिन उसका क्या परिणाम होगा उसे नजरअंदाज कर देता है. पानी की समस्या भी ऐसे ही उत्पन्न हो रही है. बड़ी-बड़ी इमारतें बनाने के लिए भूमि का दोहन, बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण के कारण, जंगल और वृक्षों के अंधाधुंध कटान से भूमि की नमी लगातार कम होती जा रही है. जंगलों का कटान होने से दोहरा नुकसान हो रहा है. पहला वाष्पीकरण न होने से वर्षा नहीं हो पाती और दूसरे भूमिगत जल सूखता जाता है.
अब तक उत्पन्न हुई समस्या का जिम्मेदार इंसान ही है लेकिन आने वाले समय में यह स्थिति और अधिक गंभीर न हो इसके लिए छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर बहुत बड़ी मात्रा में पानी का बचाव किया जा सकता है.
जल बचाओं अभियान की शुरुआत सबसे पहले अपने घर से करनी होगी. बस थोड़ी सी समझदारी और जागरूकता से ये कदम उठाया जा सकता है. रोजाना करने वाले काम जैसे नहाना, ब्रश करना, बर्तन धोना, कपड़े धोना, खाना बनाने या फल सब्जियां धोने के लिए हर रोज 100-120 लीटर पानी बर्बाद होता है. सबसे पहले घर में टपकते नलों की मरम्मत करवाएं या फिर बदल कर नया नल लगाएं. टपकते नल से करीब 2 घंटे में 20 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है. ब्रश करने, बर्तन धोने, फल सब्जियां आदि धोने के लिए बाल्टी में पानी भर कर इस्तेमाल करें. नहाने के लिए शावर के बजाए बाल्टी का उपयोग करें. इस तरह शावर का उपयोग कर हम 1 मिनट में 40-50 लीटर पानी बर्बाद होने से बचा सकते है. कपडे धोने के लिए अगर वाशिंग मशीन का उपयोग करते है तो रोज कपडे धोने के बजाए 3-4 दिन के बाद इक्कठे कपड़े धोए. इससे पानी की खपत कम होगी. सर्दियों में अधिकतर गीजर का इस्तेमाल किया जाता है. गीजर चालू होने के बाद भी 1 मिनट तक ठंडा पानी आता है. इसे फैंके नहीं बल्कि मग या बर्तन में इक्कठा कर किसी अन्य जगह इस्तेमाल करें.
वाटर प्यूरीफ़ायर पानी पीने लायक बनाता है लेकिन जितना पानी साफ़ करता है उतनी ही मात्रा में गंदा पानी अलग कर देता है. इसके लिए वाटर प्यूरीफ़ायर से निकलने वाले पानी को बर्तन में स्टोर कर लें जिसे घर के अन्य कामों में उपयोग में लाया जा सकता है. पौधों में पानी देने और गाड़ी आदि धोने के लिए पानी पाईप की जगह वाटर कैन या बाल्टी का उपयोग करें. इस तरह एक घंटे में 1 हजार लीटर पानी की बचत की जा सकती है. नालियों में अधिकतर कूड़ा-कर्कट फंस जाने से वे बंद हो जाती है जिन्हें साफ़ करने के लिए ढेर सारा साफ़ पानी बहाया जाता है, इसलिए घर में बाथरूम, सिंक, वाश वेशन की नालियों की साफ़ सफाई का ध्यान रखें. घर में पानी का मीटर अवश्य लगवाएं इससे यह पता चल जाएगा कि कितना पानी उपयोग किया गया. इस तरह हर महीने घर में पानी के उपयोग होने की मात्रा के बारे में भी जानकारी मिल जाएगी और बर्बाद किए पानी को लेकर भी सजग रहेंगे. इसके साथ ही घर की छत पर वर्षा जल का भंडार करने के लिए एक या दो टंकी रखें और इन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढ़क दें तो पानी को स्टोर किया जा सकता है.
घरों में सावधानी बरतने के बाद हमें एक जिम्मेदार नागरिक का होना भी जरूरी है. सार्वजनिक जगहों जैसे पार्क, अस्पताल, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, दुकानों, मंदिरों आदि पर खुले नलों को आमूमन देखा जाता है. ऐसे में खुला नल दिखे तो उसे तुरंत बंद कर दें. अगर कहीं कटी-फटी पानी की पाईप भी दिखे तो इसके बारे में प्रशासन को जानकारी देने से न हिचकिचाएं. अपने मोहल्ले और सोसाईटी में “जल बचाओ पेड़ लगाओ” का अभियान शुरू करें. लोगों को ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने और जल बचाने के बारे जानकारी दें.
गांवों, कस्बों में प्राकृतिक जल स्त्रोतों को फिर से सहेजे. तालाब, कुओं और जलाशयों को साफ़ करें जिससे दोबारा बारिश का पानी इक्कठा हो. इस तरह इक्कठा किया गया पानी पीने के लिए, सिंचाई के लिए और पशुओं के लिए उपयोग में लाया जा सकता है.
सरकार को भी जल बचाने के लिए कुछ कानून बनाने की आवश्यकता है. “जल ही जीवन है”, “जल है तो कल है” जैसे अभियान चलाकर सरकार लोगों को जल सरंक्षण के लिए जागरूक तो कर रही है लेकिन इसके बावजूद भी सूखे जैसी भयानक स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. केंद्र व् राज्य सरकार प्राथमिक व उच्च स्तर की कक्षाओं में जल सरंक्षण के विषय को अनिवार्य रूप से शिक्षा में शामिल करें तो आने वाली पीढ़ियों को जल संकट से जूझना नहीं पड़ेगा.