गुरू तेग बहादुर की शहादत के बाद ‘खालसा’ के रूप में ऐसी सबल शक्ति का समाज में संचार हुआ जो आज भी ध्र्म, मातृभूमि व न्याय से जुड़े रहने और सर्वस्व न्योछावर करने का संदेश देती है- ये प्रेरक वाक्य डाॅ॰ रतन सिंह जग्गी ने पंजाब विश्वविद्यालय के गुरू नानक सिख अध्ययन विभाग की ओर से कराए गए एक दिवसीय से मिनार में बीज वक्तव्य के रूप में कहे।
सेमिनार के मुख्य अतिथि डाॅ॰ जसपाल सिंह उपकुलपति, पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला ने अपने संबोध्न में कहा कि गुरू तेग बहादुर की वाणी अपने आप में विलक्षण है, संघर्ष व कर्मठता की कोख से उपजा वैराग्य इसकी विलक्षणता का मूल आधर है तथा सिक्ख ध्र्म के मूल सि(ान्त इस वाणी में सहज रूप में समाए हैं। अपने उद्घाटन-भाषण में पंजाब विश्वविद्यालय का सदा ही प्रयास रहा है कि वह अपनी समृ( विरासत और परंपरा को सहेज कर रखे। माता गुजरी, बीबी नानकी, गुरू तेग बहादुर, बंदा बहादुर आदि पूजनीय व्यक्तित्वों के नाम पर यूनिवर्सिटी के विभिन्न भवनों का नामरकण करना उसके इसी प्रयास का प्रमाण है।
उद्घाटन सत्रा में बोलते हुए डाॅ॰ सतीश कुमार ने कहा कि गुरू तेग बहादुर का ‘जीवन’, ‘तत्काल’ से जूझ रहा था, ‘दर्शन’, ‘समकाल’ से जूझ रहा था तथा उनकी ‘वाणी’, ‘चिरकाल’ से जूझ रही थी। उद्घाटन-सत्रा का अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए पूर्व सांसद और भारत सरकार के अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष सरदार त्रिलोचन सिंह जी ने कहा कि फ्ऐसे सेमिनार आज के समय की ज़रूरत है, इनकी प्रसंगिकता निर्विवाद है। गुरू तेगबहादुर बहादुर की वाणी हर श्रोता को ष्प्दकपअपकनंस क्पंसवहनमष् व्यक्तिगत संवाद प्रतीत होती है। उनकी वाणी और शख्सियत आज की ‘असहिष्णुता’ की समस्या का सबसे बड़ा इलाज है।य् कार्यक्रम का संचालन गुरू नानक सिख अध्ययन विभाग की अध्यक्ष प्रो॰ जसपाल कौर कांग ने बहुत ही दुभावपूर्ण ढंग से किया। डाॅ॰ गुरपाल सिंह जी के ध्न्यवाद-ज्ञापन के साथ उद्घाटन-सत्रा संपन्न हुआ।