पांच राज्यों के चुनाव के नतीजे और उपचुनावो के नतीजो ने काग्रेस को क्या ऐतिहासिक गिरावट की ओर बढा दिया है। इस हार का असर अब नेताओ के बयानों में दिखने लगा है। दिग्विजय सिंह का ये कहना कि आत्ममंथन बहुत हुआ अब सर्जरी की जरुरत है।
चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद बीजेपी कांग्रेस मुक्त भारत की बात कर रही है और पार्टी में जश्न का माहौल है। तो दूसरी ओर नतीजों में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस के घर में सब कुछ ठीक नहीं दिख रहा है।
पार्टी के कई बड़े नेता संगठन में आमूलचूल बदलाव की बात कर रहे हैं। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने तो बेहद सख्त भाषा में ट्वीट करते हुए पार्टी की ‘मेजर सर्जरी’ की ज़रूरत बताई गई है।
गौरतलब है कि दिग्विजय सिंह का यह ट्वीट पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के उस बयान के कुछ ही देर बाद आया था, जिसमें सोनिया ने हार के बाद आत्मनिरीक्षण की बात कही थी।
सोनिया ने नतीजों के बाद बयान में कहा था,कि हम हार के कारणों को लेकर आत्मनिरीक्षण करेंगे, और लोगों की सेवा में और भी जोरशोर से जुटने के लिए खुद को फिर प्रतिबद्ध करेंगे।
दिग्विजय के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने भी पार्टी को आत्मनिरीक्षण से आगे बढने की नसीहत दे डाली।
वहीं शशि थरुर ने कहा कि पार्टी को हमेशा की तरह आत्मनिरीक्षण की बातों से आगे बढ़कर कुछ गंभीर कदम उठाने होंगे।
लगभग चौतरफा करारी हार की ख़बरों के बीच इन बयानों से कांग्रेस पार्टी में और संकट आ गया।
पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ताओं ने फौरन ही बयान को खारिज करते हुए सफाई दी कि हार के बाद जो कुछ भी जरुरी है किया जाएगा।
दरअसल कांग्रेस का ये संकट केवल असम और केरल की हार से पैदा नहीं हुआ है। पिछले दो सालों में कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने 8 राज्यों से अपनी सरकारें गंवायी है।
हाल ये है कि तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में जल्दबाजी में किए गए गठबंधन भी कामयाब नहीं रहे।
अगर पूरे देश की बात करें तो अब कांग्रेस के पास बड़े राज्यों में सिर्फ कर्नाटक बचा है। कांग्रेस और उनके सहयोगियों की सत्ता भारत के 29 राज्यों में से सिर्फ 8 में रह गई है। इनमें कर्नाटक, हिमाचल, उत्तराखंड, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर बिहार और पुडुचेरी शामिल हैं।
अकेले दम पर कांग्रेस केवल देश के 6 फीसदी हिस्से पर शासन कर रही है।
वहीं बीजेपी और उसके सहयोगी 13 राज्यों जम्मू कश्मीर गुजरात महाराष्ट्र राजस्थान झारखंड हरियाणा पंजाब आंध्रप्रदेश मध्यप्रदेश छत्तीसगढ गोवा अरुणाचल और असम में सत्ता में हैं । इसके अलावा बाकी राज्यों में क्षेत्रीय दलों और वामपंथी सरकारें हैं।
कांग्रेस की इस हालत पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी फेसबुक पर लेख में लिखा- कांग्रेस के सामने इस समय तेजी से किनारे पर चले जाने का खतरा पैदा हो गया है। क्या वो 2019 में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को चुनौती देने वाली मुख्य पार्टी होगी या फिर क्षेत्रीय दलों के घालमेल वाले गठबंधन से पीछे रहेगी । पार्टी के नेता किस तरह की सर्जरी की बात कर रहे हैं । क्या कांग्रेस वंशवादी पार्टी बनी रहेगी या फिर जमीनी नेताओं को तरजीह देकर संगठनात्मक पार्टी के तौर पर उभरेगी।
साल 2014 में राहुल के नेतृत्व में पार्टी को अपने इतिहास की सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा था, जब लोकसभा में उनके सांसदों की संख्या सिर्फ 44 रह गई थी।
उसके बाद भी पिछले दो सालों में पार्टी में कोई बदलाव नहीं किया गया, और वह एक के बाद एक झटके खाती गई। अब देखना ये है कि इन नतीजों से कांग्रेस कुछ सबक सीखती है या नहीं ।