गौ सेवक ,कुमार गिरीश साहू, जयपुर : प्राचीन काल से तुला दान का इंसान के जीवन में बहुत ही महत्व रहा है। जब इंसान समस्याओ से बुरी तरह घिर जाता है। ज्योतिष के सभी उपाय नाकाम हो जाता है तो बड़ी से बड़ी समस्या का हल तुला दान होता है मनुष्य गम्भीर बिमारी या गृह दोष, पितृदोष आदि से पीडि़त होता है तो अपने भार के बराबर सामान दान करता है ।
हर समस्या के हल के लिए तुला दान अचूक उपाय है
दान का शाब्दिक अर्थ है – ‘देने की क्रिया’। सभी धर्मों में सुपात्र को दान देना परम् कर्तव्य माना गया है। हिन्दू धर्म में दान की बहुत महिमा बतायी गयी है। आधुनिक सन्दर्भों में दान का अर्थ किसी जरूरतमन्द को सहायता के रूप में कुछ देना है।
और आज के दौर में सबसे ज्यादा बुरी हालत में गौ माता ही है, कुछ लोग मुर्ख होते हैं जो करोड़पति ब्राम्हण को ही दान देते रहते हैं, इस से क्या भला होने वाला है
तुला (तराजू) के रूप में वह विष्णु का स्मरण करता है, फिर वह तुला की परिक्रमा करके एक पलड़े पर चढ़ जाता है, दूसरे पलड़े पर ब्राह्मण लोग सोना रख देते हैं। तराजू के दोनों पलड़े जब बराबर हो जाते हैं, तब पृथ्वी का आह्वान किया जाता है। दान देने वाला तराजू के पलड़े से उतर जाता है, फिर सोने का आधा भाग गुरु को और दूसरा भाग ब्राह्मण को उनके हाथ में जल गिराते हुए देता है। यह दान अब दुर्लभ है, सिर्फ धर्मशास्त्र में इसका वर्णन पढ़ने को मिलता है।
राजाओं के साथ मंत्री भी यह दान करते थे। इसके साथ ग्राम दान भी किया जाता था। इस दान से दान देने वाले को विष्णु लोक में स्थान मिलने की बात कहीं गई है। आजकल तुला-पुरुष दान में सोना इस्तेमाल नहीं किया जाता। दानकर्ता के वजन के बराबर अनाज या दूसरी चीजें दान की जाती हैं। प्रतिकूल ग्रहदशाओं में या सभी प्रकार की खुशहाली के लिए यह दान किया जाता है, तुलादान करने का पुण्य फल बहुत मिलता है।
पौराणिक आख्यान के अनुसान प्रयाग की पवित्र धरती पर प्रजापति ब्रह्मा ने सभी तीर्थों को तौला था। शेष भगवान के कहने से तीर्थों को तौलने का इन्तजाम किया गया था, इसका उद्देश्य तीर्थों और तीर्थ से भी अधिक बढकर के कौन सा पुन्य फल दायी है इस की पुण्य गरिमा का पता लगाना था। ब्रह्मा ने तराजू के एक पलड़े पर सभी तीर्थ, सातों सागर और सारी धरती रख दी। दूसरे पलड़े पर उन्होंने गौ माता को रख दिया। अन्य तीर्थों का पलड़ा हल्का होकर आकाश में ध्रुव मण्डल को छूने लगा, लेकिन गौ माता का पलड़ा धरती को छूता रहा।
ब्रह्मा की इस परीक्षा से हमेशा के लिए तय हो गया कि गौ माता से बढ़कर कोई नहीं है.
इस लिए गौ माता को तुलादान अत्यन्त फल दायी है, गौ शालाओं में किया गया दान करोडो वर्षो तक साथ रहता है!