रविंदर पडलिया : ‘देश’ केवल जमीन के टुकड़े को नहीं कहते हैं. ‘देश’ शब्द का मतलब होता है जमीन का टुकड़ा और उस पर रहने वाले लोग. इसलिए, जब हम “भारतवर्ष देश” कहते हैं तो उसका मतलब होता है भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा से घिरा जमीन का हिस्सा और उस पर रहने वाले लोग. और हाँ, भारतवर्ष में रहने वाला हर इंसान भारतीय है. इसलिए ‘देश’ की जब बात करते हैं तो धर्म को अलग रख कर बात करनी चाहिए. धर्म तो भगवान की इबादत करने के तरीके बताता है. इसका मतलब हुवा की हर धर्म के लोग भगवान को मानते हैं अर्थात, नास्तिक नहीं हैं. हाँ, भगवान के नाम अलग अलग हो सकते हैं.
अब जब देश की बात करते हैं तो, जैसा पहले बताया जा चूका है, उसमें वहां रहने वाले इंसान भी शामिल हैं. ये इंसान गरीब या अमीर हो सकते हैं, किसान या मजदुर हो सकते हैं, सैनिक, अर्ध-सैनिक या पुलिश भी हो सकते हैं, सरकारी कर्मचारी या निजी कंपनियों के कर्मी भी हो सकते हैं. और हाँ, उस देश के नेता भी इसमें शामिल हैं. नेता तो देश के होते हैं पर क्या ये देश भी नेताओं का होता है?
आज भारत देश के एक इंसान को इसलिए फांसी दे दी गयी क्यों कि उसने इसी देश के सैकड़ों अन्य इंसानों को बिना किसी कारण के मौत के घाट उतार दिया. यहाँ तक तो बात समझ में आती है लेकिन एक खास राजनैतिक दल के कुछ ख़ास नेता लोगों का मानना है कि ये गलत हुवा है. इसी दल के एक नेता ने तो यहाँ तक कह दिया कि ये सरकार ही आतंकवादी है. देश के प्रधानमंत्री या किसी राज्य के मुख्यमंत्री के तो ये नेता पुतला फूंकते हैं लेकिन देशद्रोहियों के नाम के साथ ‘श्री’ या ‘साहब’ शब्द लगाकर उनको सम्मान देते हैं. हमारे देश के लिए उससे भी बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण बात तो यह हैं कि यह काम उस राजनैतिक दल के उच्च नेतागण कर रहे हैं जो अपनेआप को देश कि सबसे पुरानी पार्टी ही नहीं बल्कि देश को आजादी दिलाने वाली पार्टी कहते भी नहीं थकते.
यदि इस पार्टी के नेता चाहते तो स्वतंत्रता सेनानी सरदार भगत सिंह, राजगुरु, नेताजी शुभास चन्द्र बोष आदि आदि आज हमारे बीच जिन्दा होते. कश्मीर समस्या को 1948 में UNO लेजाकर इस समस्या को देश का कभी भी ठीक ना होने वाला नासूर बनाने वाले नेता इसी पार्टी के थे. अपनी तुच्छ व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा – देश पर राज करने के लिए देश के दो टुकड़े इसी पार्टी के नेताओं ने किये. इस पार्टी के नेताओं की इसीप्रकार देश-विरुद्ध कार्यों की सूचि बहुत बड़ी है.
आज भी इस पार्टी के कुछ नेताओं की हरकतों में कोई बदलाव न आना इस बात का द्योतक है कि सायद इस पार्टी के डीएनए में यह बात शामिल हो चुकी है. इसका मतलब तो यह हुवा कि ‘देश’ शब्द कि परिभाषा में ‘इंसान’ शब्द के अंतर्गत ये नेता लोग भी आते हैं. देश में रहने वाला इंसान अपने देश के साथ गद्दारी कभी भी नहीं कर सकता है. यह तो एक प्राकृतिक नियम है. पर ये नेता इस प्राकृतिक नियम का भी उलंघन कर रहे हैं तो इसको क्या कहा जाये ?
हम परिभाषा को बदली कर नहीं सकते, नाही प्राकृतिक नियमों का उलंघन कर सकते हैं, इसलिए, विश्लेसन करने से इस नतीजे पर पहुंचे है कि ये नेतागण इंसान ही नहीं हैं. इसका अर्थ यह हुवा कि ये जानवर हैं. और जानवरों को बांध कर रखना चाहिए. इस पार्टी के नेताओं से अनुरोध है कि अपनी पार्टी के ऐसे नेताओं पर लगाम लगाएं.