मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिशविद्, चंडीगढ़ ; सामान्यतः जन साधारण में यह प्रबल धारणा है कि नवरात्रि के दौरान , कोई भी षुभ अथवा मांगलिक कार्य बिना मुहूर्त जाने भी किया जा सकता है। इस धारणा का अनुमोदन काफी धर्म एवं ज्योतिश मर्मज्ञ भी करते हैं। इसी धारणा के अनुसार कई परिवार, विवाह का आयोजन भी इसी अवधि में रख लेते है। उनका विष्वास यही रहता है कि मां का नाम लेकर विवाह कर दो सब ठीक होगा। हालांकि इस विष्वास में कोई दो राय नहीं हो सकती फिर भी एक अन्य मतानुसार नवरात्रि के दौरान विवाह करना उचित नहीं है।
यों तो इस वर्श नवरात्रि की अवधि में वैसे भी विवाह का कोई ज्योतिशीय दृश्टि से मुहूर्त नहीं है फिर भी इन 9 दिनों के अंदर विवाह करना क्यों वर्जित माना गया है ?
वास्तव में नवरात्रि का पर्व, स्वच्छता, पवित्रता , सादगी ,सात्विकता , आत्मिक षारीरिक एवं मानसिक षुद्धता, ब्रहमचर्य पालन, सादगी से जुड़ा हुआ है। इसी के लिए व्रत का पालन किया जाता है। अनेक उपासक कपड़े धोने, षेव करने, श्रंृगार करने, मदिरा सेवन , मांसाहार , संसर्ग ,चारपाई पर सोने आदि तक से परहेज करते हैं ताकि व्रत ख्ंडित न हो तथा नवरात्रि में की गई आराधना का फल प्राप्त हो सके।
चूंकि विवाह का उदेष्य संतान प्राप्ति व वंष वृद्धि है और इस अवधि में विवाह का अभिप्राय है परिवार तथा कार्यक्रम से जुड़े सभी लोगों के संयम पर कुठाराघात करना। वैसे भी नवरात्रि के व्रत में रात्रि का और भी अधिक महत्व है और अधिकांष विवाह रात्रि में ही संपन्न होते हैं।
यही नहीं नवरात्रि में कन्याओं एवं महिलाओं की अधिकतम भागेदारी रहती है जिसके कारण न तो व्रत पालन ही ठीक सेे हो पाता है और न ही विवाह का आनंद ही लिया जा सकता है। अतः नवरात्रि में विवाह न किया जाए तो ही तर्कसम्मत व षास्त्र सममत रहता है।
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