विक्रम प्रताप : वेद का अर्थ है ज्ञान, या वह विद्या जिससे सभी सांसारिक, अधिभौतिक ओर आध्यात्मिक विद्याओं का ज्ञान होता है। वेद ईश्वरीय ज्ञान है। वेदों का ज्ञान शाश्वत् सार्वदैशिक सर्वाकालिक एवं मानवमात्र के लिए सामन रूप से कलयाणकारी है। ईश्वरीय ज्ञान होने के कारण वेद-ज्ञान मूल है। वेद नित्य हैं। प्रलय हो जाने पर भी वे ईश्वर के ज्ञान में रहते हैं।वेद, वैदिक धर्म की आत्मा है। ऐसा सभी हिन्दू धर्म शास्त्र मानते हैं। वेद स्वतः प्रमाण हैं अन्य हिन्दू धर्मशास्त्र जैसे ब्राह्मणग्रंथ, आरण्यक, उपनिषदें, स्मृतियां, पुराण, आगम-निगम, रामायण-महाभारत वेदानुकूल होने पर ही प्रामाणिक हैं, अन्यथा नहीं। वेद-निरुक्त हिन्दुओं को मान्य नहीं हैं।
चारों वेदों के चार प्रमुख विषय हैं- ऋग्वेद का मुखय विषय ज्ञान, यजुर्वेद का कर्म, सामवेद का उपासना, और अथर्व का विषय विज्ञान है। वेदों में मनुष्य को लगातार अधिकतम सर्वांगीण विकास करने की प्रेरणा दी गई है। वेद सम्पूर्ण ज्ञान के मूलमंत्र हैं। वेदों में मूलरूप से सभी विद्याऐं हैं। वेद सत्य विद्याओं का पुस्तक होने के कारण प्रत्येक वैदिक धर्मों को वेदों का पढ़ना-पढ़ाना अनिर्वा है। इसीलिए हिन्दुओं के सभी संस्कार एवं कर्मकाण्ड वेकल वेदमंत्रों ख,ारा किए जाते हैं। वेद हिन्दू धर्म का आधार और आस्था के केन्द्र हैं। इसीलिए कहा गया है ‘वेदोह्णखिलो धर्म मूलम्’ (मनु. २ः ६) ‘नास्ति वेदात्परं शास्त्रां’ यानी ‘वेद से बढ़कर अन्य कोई शास्त्र नहीं है’ (म.भा. अनु प. १०५.६५)। वेदों में मानव इतिहास नहीं है। परन्तु सभी नाम वेदों से लिए गए हैं।
संक्षेप में में हिन्दुओं के धर्म, दर्शन, संस्कृति, आचार संहिता एवं नैतिक मूल्यों का मूल आधार वेद ही हैं।