कुमार गिरीश, जयपुर : संसार में रोगियों की संख्या में बढ़ोतरी क्यो हो रही है. इस का मुख्य कारण है तेल, क्योंकि शरीर के लिए सबसे महत्वपूर्ण भूमिका जल (पानी) के पश्चात, तेल की ही अहम भूमिका होती है, जो की शरीर को गति शीलता प्रदान करता है, जैसे गाडी भी बिना तेल के नही चल सकती है, वैसे ही शरीर भी बिना चिकनाई के मृतप्राय है, . तो आईये जाने की शरीर के लिए कोन सा तेल क्या गुण दायक है और कोन सा अवगुण (नुकसान) दायक..
तिल,, सरसों,, मुमफली,, नारियल,, अलसी,, रिफाईनड,, सोयाबीन, सूरजमुखी. आदि में खाने योग्य और पौष्टिक वर्धक कोन सा तेल है. जिसके खाने मात्र से ही निरोग रह सकते हैं.. .सभी प्रकार के तेलों के बारे में जानकारी दी जा रही है.सभी एक साथ जानकारी देना संभव नहीं है, अतः सभी तेलों के.अलग. अलग .. 3.भाग है..
लेखक… आचार्य बालकृष्ण (पतंजलि योग केंद्र (हरिद्वार)
पुस्तक.. आयुर्वेदिक सिद्धांत रहस्य (पृष्ठ संख्या 197..198)
………….पहला भाग. 1….
१..तिल का तेल
आयुर्वेद के अनुसार तिल का तेल. मधुर (मिठा) होता है. यह व्यवायी अर्थात पहले शरीर में फैलकर बाद में पचने वाला होता है तिल का तेल. वात +कफ +पित को नष्ट करने वाला. तथा इन त्रिदोष(वात कफ पित) को संतुलित करने वाला. बलकारक. बल को बढ़ाने वाला तथा त्वचा को सुंदर बनाने में लाभ दायक होता है! मांसपेशियों को स्थिर, मजबूत और पुष्ट करने वाला, मेघा (बुद्धिमता) को बढाने वाला, दीपन (पाचक शक्ति को बढ़ाने वाला) और मल को बांधने वाला तथा बहूमुत्र को दुर करने वाला होता है! यह योनी मार्ग को शुद्ध करता है! वातशामक द्रव्यों में तिल का तेल ही सबसे श्रेष्ठ तथा उतम माना गया है! औषधियों द्वारा संस्कारित किये (पकाने) जाने पर उन औषधियों के गुणों को भी अपने अंदर गृहण कर लेता है! इस प्रकार से यह सभी प्रकार के रोगों को नष्ट करता है!
तिल तेल की मालिश करने से वात रोग का प्रकोप, थकान और बुढ़ापे के लक्षण दुर होते हैं! दृष्टि निर्मल होती है, त्वचा स्वच्छ, सुन्दर और कांतिपूरण होती है, झुर्रियों नहीं पडती, शरीर पुष्ट होता है और नींद अच्छी आती है, सिर पर मालिश करने से, सिर दर्द, गंजापन, कम अवस्था में बाल सफेद होना, बाल झड़ना आदि शिकायतें दुर होती है!
. आयुर्वेद के अनुसार इस तेल में एक विशेष प्रकार का गुण यह पाया गया है कि यह दुबले-पतले व्यक्ति का दुबलापन दुर करता है और वही. मोटे व्यक्ति का मोटापन (मोटापा) भी दुर करता है! व्यवायी होने से तेल शरीर के स्त्रोतों में बहुत जल्दी प्रवेश कर जाता है!
दुबले-पतले व्यक्ति के स्त्रोत संकुचित होते हैं. और तेल अपने लेखन (गुण. प्रभाव) एवं तीक्ष्ण (तीखापन) आदि गुणों से स्त्रोतों को तुरन्त खोल देता है! इससे स्त्रोतों की सिकुड़न समाप्त हो जाती है और शरीर पुष्ट हो जाता है और कृशता (पतलापन) दुर हो जाती है… तो दुसरी और सुक्ष्म होने के कारण मोटे व्यक्ति के स्त्रोतों में भी पहुंच कर चर्बी को कम करता है, जिससे मोटापा घट जाता है!
आधुनिक दृष्टि से भी इस तेल में असंतृपत वसामल्ल पाया जाता है, जो मोटापे के एवं मोटापे से उत्पन्न रोग, मधुमेह, ह्दय रोग आदि में यह तेल हानिरहित और चमत्कारपूर्ण हैं
यह तेल दस्त को बांधने वाला (दस्त बंध करने वाला) और. कब्ज दूर करने वाले, दोनों ही गुणों से युक्त माना गया है, क्योंकि यह मल (पुरीष) को बांधता है और स्खलित मल को बहार निकाल देता है!
एक वर्ष के बाद घी की पौष्टिकता कम हो जाती है, परन्तु तिल का तेल जितना पुराना होता है, उतना ही अधिक गुणकारी बन जाता है!..
तेलों में तिल का तेल सबसे ज्यादा अच्छा माना जाता है! इसका प्रयोग बाहृ रूप से (मालिश करने) और आन्तरिक रूप से (खाने में सेवन हेतु) किया जाता है! . यह व्यवायी (शरीर में तुरंत फैलने वाला) भारी, बलकारक, स्थिरता प्रदान करने वाला, दस्त व वात कफ शामक (वात कफ को दुर करने वाला) स्पर्श में शीतल, पौष्टिक, लेखन, मल को बांधने वाला, बहूमुत्र निवारक, पाचक, शक्तिवर्धक, बृुदृि बढ़ाने वाला, शरीर में हल्कापन लाने वाला, (गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो) गर्भाशय को शुद्ध करने वाला, घाव, प्रमेह व मुत्र से संबंधित रोग, योनी रोग और मस्तिष्क के दर्द एवं कान के रोगों को नष्ट करने वाला है!
इसे खाने में अधिक प्रयोग किया जाता है, खाने से यह त्वचा, बालों, ह्दय और नेत्र के लिए लाभदायक है. और मालिश करने में भी लाभदायक है, चोट. मोच, घाव, जले हुए अंग और हड्डियों टूटने आदि में भी यह बहुत उपयोगी है! कान में डालने, नसय, मालिश तथा भोजन बनाने में इस का उपयोग अत्यंत लाभकारी होता है!
इसकी विशेषता है कि सिनगध होते हुए भी यह कफ को नही बढाता है, तथा मालिश करने से पित को शांत करता है! अतः इस लेख का सारांश यह है कि आयुर्वेद के अनुसार, संसार का सर्व श्रेष्ठ तेल ,खाने के लिए तथा मालिश के लिए तिल का तेल ही है!!
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गिरीश विधाधर नगर, जयपुर 9782341154