कुमार गिरीश : इस पेय के सेवन से शारीर में स्फूर्ति व मस्तिष्क में शक्ति आती है | पाचनक्रिया में सुधार होता है और भूख बढ़ती है | सर्दी, बलगम, खांसी, दमा, श्वास, कफजन्य ज्वर और न्युमोनिया जैसे रोग होने की सम्भावना कम हो जाती है | इसे ‘ओजस्वी चाय’ नाम दें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी |
सामग्री: (१) गुलबनपशा २५ ग्राम
(२) छाया में सुखाये हुए तुलसी के पत्ते २५ ग्राम
(३) तज २५ ग्राम
(४) छोटी इलायची १२ ग्राम
(५) सोंफ १२ ग्राम
(६) ब्राह्मी के सूखे पत्ते १२ ग्राम
(७) छिली हुई जेठीमध १२ ग्राम
विधि: उपरोक्त प्रत्येक वस्तु को अलग-अलग कूटकर चूर्ण बना के मिश्रित कर लें | जब चाय-कॉफी पीने की आवश्यकता महसूस हो, तब मिश्रण में से ५-६ ग्राम चूर्ण लेकर ४०० ग्राम पानी में उबालें | जब आधा पानी बाकी रहे तब नीचे उतारकर छान लें | उसमें दूध-खांड मिलाकर धीरे-धीरे पियें | चीन जैसे देशों में तो आयुर्वेदिक चाय का प्रचलन बढ़ रहा है, फिर हमारे देशवासी चाय-कॉफी पीकर अपनी तबाही क्यों करें ?
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(1) ‘ टेनिन ‘नाम का जहर १८% होता है , जो पेट में छाले तथा गैस पैदा करता है |
(2) ‘ थिन ‘ नामक जहर ३ % होता है , जिससे खुस्की चढ़ती है तथा यह फेफड़ों और सिर में भारीपन पैदा करता है |
(3) ‘ कैफिन ‘ नामक जहर २.७५ % होता है , जो शरीर में एसिड बनाता है तथा किडनी को कमजोर करता है |
(4) ‘ वालाटाइल ‘ नामक जहर आतों के ऊपर हानिकारक प्रभाव डालता है |
(5) ‘ कार्बोलिक अम्ल ‘ से एसिडिटी बनती है |
(6) ‘ पैमिन ‘ से पाचनशक्ति कमजोर होती है |
(7) ‘ ऐरोमोलीक ‘ अंतड़ियों के ऊपर हानिकारक प्रभाव डालता है |
(8) ‘ साइनोजन ‘ अनिद्रा तथा लकवा जैसी भयंकर बीमारियाँ पैदा करती है |
(9) ‘ आक्सेलिक अम्ल ‘ शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक है |
(10) ‘ स्टिनायल ‘ रक्तविकार तथा नपुंसकता पैदा करता है |
इसलिए चाय अथवा कॉफी कभी नहीं पीनी चाहिए और अगर पीना ही पड़े तो आयुर्वैदिक चाय अथवा काढ़ा ही पीना चाहिए।📝.. गिरीश 🔥 जयपुर