शिखा शर्मा, चंडीगढ़ : मन को बड़ी पीड़ा होती है जब शिक्षित और समझदार लोग ऐसे काम कर देते है जिनसे पूरे समाज पूरे देश को शर्मिंदा होना पड़ता है. उससे भी बड़ा आघात तब होता है जब किसी घटना को बिना जांच-परख किए उल्टा सीधा दिखाया जाता है. इसमें न केवल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बल्कि सोशल मीडिया भी कसर पूरी कर रहा है. एक समाचार को तोड़मरोड़ कर अलग-अलग चैनल पर अलग –अलग तरीके से दर्शाया जाता है. सोशल मीडिया पर भी तंज कसे जाते है. चंद पंक्तियां लिख कर विचार सांझे किए जाते है. टीआरपी पाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बिना जांचे खबर प्रसारित कर देते है या फिर ये कहना भी गलत नहीं होगा कि कहीं न कहीं मीडिया भी राजनीति की रोटियां सेंकता है. सोशल एक्टिविस्ट भी वही देखकर अपने आचार-विचार सांझा करते है और जब सच्चाई सामने आती है तब उसे हटा दिया जाता है.
मैं बात कर रही हूं देहरादून में भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक द्वारा पार्टी प्रदर्शन के दौरान एक घोड़े को पीटने की. खबर की तह तक जाने से पहले दर्शाया गया कि विधायक ने गुस्से में आकर पुलिस फ़ोर्स के घोड़े शक्तिमान को पीट दिया जिससे घोड़े की टांग लहूलुहान हो गई. घोडा इतना जख्मी हो गया कि उसका उठाना मुश्किल था. विधायक को घोर अमानवीय, निंदनीय और क्रूर कृत्य करने वाला मनोविकृत नेता बताया गया. हमारे देश के लोगों को मीडिया पर विश्वास होता है और उसी पर यकीन करते है जो दिखाया या समझाया जाता है. ऐसे में नेता द्वारा कथित तोड़ी गई टांग की बात पर भी बड़ी आसानी से यकीन कर लिया, लेकिन असमंजस तब पैदा हुआ जब उसी खबर को दोबारा से दिखाया गया. इस बार जिस नेता को कोसा- कप्टा गया उसी को सहजता के साथ निर्दोष बताया गया. खबर को ज़ूम करके दिखाया गया कि नेता का डंडा शक्तिमान को लगा ही नहीं वह तो लोहे के एंगल से टकराकर घायल हुआ. सोशल मीडिया पर अद्यतन किया गया वायरल हुई वीडियो के साथ छेड़छाड़ की गई. विधायक को बचाने के लिए वीडियो से छेड़छाड़ की गई. यह अभी भी कहना मुश्किल है कि सच क्या है. दोनों में से कौन सी बात सत्य है? पहली जिसे नेता को दोषी बताया गया या फिर दूसरी जिसमें उसी नेता को निर्दोष बताया गया. अगर पहली बात सत्य है तो टीआरपी पाने के लिए खबर को फटाफट प्रसारित कर दिया गया और अगर दूसरी बार दिखाई गई खबर सत्य है तो इसका सीधा मतलब यही है कि राजनीती के दवाब के कारण उसी विधायक को निर्दोष दिखा दिया गया .
दोनों बातों का अर्थ क्या है? सच क्या है? जनता किस बात पर विश्वास करें? मीडिया ने तो प्रसारित कर दिया लेकिन दर्शक किस बात पर यकीन करें? प्रश्न केवल इसी समाचार का नहीं है. अब तक अनगिनत ऐसी ख़बरें प्रसारित की गई है जिन्हें फिर से अलग-अलग तरीके से दिखाया गया. प्रश्न यह भी है कि देश में बढ़ रही हिंसाएं छोटी-छोटी बातों से बढ़कर दंगों में तब्दील हो रही है. मुझे मीडिया से आपत्ति नहीं. आपत्ति तब हो जाती है जब खबरें तोड़-मरोड़ कर पेश की जाती है. अगर मीडिया बिना किसी दबाव बिना किसी जल्दबाजी के सच सिर्फ सच दिखाए तभी समाचार की गुणवत्ता और जनता का मीडिया पर भरोसा बरकरार रह पाएगा.