अवधेश कुमार
आजकल भ्रष्टाचार से लडाई चल रही है, सभी के निशाने पर केन्द्र की यूपीए सरकार और काँग्रेस पार्टी है. भ्रष्टाचार के विरुद्ध आम आदमी ने कमर कस ली है. बाबा रामदेव जी हों या अन्ना हजारे, संघ ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध लडाई में सबको सहयोग और नैतिक समर्थन देने की बात की है. अब काँग्रेस और सरकार के प्रतिनिधि कह रहे हैं कि इन सबके पीछे संघ है. वैसे तो संघ ने स्पष्ट कर दिया है कि इन आंदोलनों को संघ का सिर्फ नैतिक समर्थन है. लेकिन अगर संघ या कोई भी अन्य संस्था भष्टाचार के विरुद्ध लडाई लड रही है या इसमें सहयोग कर रही है तो इसमे गलत क्या है?
अन्ना हजारे जी की जन लोकपाल की माँग में पेचीदा कुछ नहीं. क्या आपको अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और मोनिका लेंविस्की प्रकरण याद नहीं जब अमेरीकी राष्ट्रपति को महाभियोग का सामना करना पडा था. जन-लोकपाल सिर्फ प्रधानमंत्री के गलत कार्यों की निगरानी करेगा, ठीक वैसे ही जैसे प्रधानमंत्री के आयकर में कुछ गलत सूचना देने पर आयकर अधिकारी उनसे पूछताछ कर सकता है. अब अगर देश के लिये मह्त्वपूर्ण इस मुद्दे पर संघ अन्ना का समर्थन करता है तो इसमें क्या गलत है ?
बाबा रामदेव जी का काले धन के खिलाफ चलाया जा रहा आंदोलन नया नहीं है, न ही वर्तमान में हुए घोटालों से इसका संबंध है. यह आंदोलन पिछले २ वर्षों से सतत रूप से पूरे देश में चल रहा था, लेकिन नित नये खुलासों से त्रस्त जनता ने बाबा का समर्थन किया तो काँग्रेसी नेतृ्त्व के पसीने छूट गये. क्या काला धन को भारत से बाहर भेजे जाने पर रोक नहीं लगनी चाहिये और क्या गया धन वापस नहीं आना चाहिये. यह अवैध रूप से लूटी गयी जनता की सम्पत्ति है, इसे वापस लाने में अगर संघ बाबा रामदेव के साथ खडा है तो क्या गलत है. लेकिन देश के चाटुकार और ख्याति प्राप्त करने के लालच में लगे बुद्धिजीवी जनता को लगातार गुमराह कर आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि जनता अगर खुद से सोच विचार करने लगी तो टीवी पर चलने वाली इन तथाकथित बुद्धिजीवियों की दुकाने बंद हो जायेंगी.
कुल मिलाकर हम देखेंगे कि काँग्रेस के निशाने पर हमेशा संघ रहा है, इसका कारण संघ के पीछे हिन्दुत्व की वह विचारधारा है जो भारतीय जनमानस में या कहें कि भारत के कण कण में व्याप्त है. संघ ने अपनी कोई विचारधारा नहीं बनायी, वह उन्हीं विचारों को लेकर चला जिसे लोग सदियों से मानते थे, समझते थे और दैनिक जीवन में उसका पालन करते थे. संघ ने बस ऐसे ही लोगों को एकत्र कर एक अनुशासित संगठन का रूप दे दिया या यह कहें कि संघ ऐसे ही जागरुक व्यक्तियों के द्वारा समाज का निर्माण करने में लगा है.
पीछे कुछ वर्षों का इतिहास देखें तो समाज स्वयं ही अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध खडा होने लगा है, चाहे जम्मू में बाबा अमरनाथ के लिये भूमि आंदोलन हो, दक्षिण में हुआ रामसेतु आंदोलन हो या अभी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन, इन आंदोलनों का नेतृ्त्व करने वाले आम समाज के लोग हैं, जिन्हे संघ ने अपना नैतिक समर्थन दिया है.
देश के विकास में संघ का योगदान विद्या भारती द्वारा चलाये जा रहे २८ हजार से ज्यादा विद्यालयों से समझा जा सकता है जिसमें लाखों विद्यार्थी उचित शिक्षा प्राप्त कर राष्ट्र निर्माण में लगे हैं. पूरे देश में १.५ लाख से अधिक सेवा प्रकल्प चलाने वाला यह संगठन देश समाज को नयी दिशा देने में लगा है और यही काँग्रेस की सबसे बडी परेशानी है. आदिवासियों के बीच वनवासी कल्याण आश्रम का कार्य हो या आसपास की बस्तियों में किया जाने वाला सेवा कार्य, संघ के स्वयंसेवकों का नि:स्वार्थ भाव से किया गया कार्य सबका मन मोह लेता है. चाहे चीन के साथ युद्ध हो या चरखी दादरी का विमान दुर्घटना काण्ड हो, देश समाज पर आने वाले संकट के समय भी संघ के स्वयंसेवकों की सेवा एवं त्याग भावना अद्वितीय है. चीन के साथ युद्ध के समय स्वयंसेवको के योगदान को देखते हुए काँग्रेसी प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने संघ के स्वयंसेवकों को गणतन्त्र दिवस के अवसर पर होने वाली परेड में शामिल होने का निमंत्रण दिया था और अल्पकालीन सूचना पर भी ३००० स्वयंसेवकों ने परेड में हिस्सा भी लिया था.
सुबह लगने वाली प्रभात शाखा में भाग लेने से लेकर अपने घर, पास पडोस और कार्यालयों में एक स्वयंसेवक अपने दैनिक क्रिया कलापों के द्वारा समाज में एक अमिट छाप छोडता है और समाज को अपना बनाने में कोई कसर नहीं छोडता, इन्ही कारणों से समाज हमेशा संघ के साथ रहता है और संघ के स्वयंसेवकों को इस बात का गर्व भी होता है और स्वयंसेवक हमेशा इस बात का ध्यान भी रखता है कि उसे अपने क्रिया कलाप द्वारा समाज में एक आदर्श प्रतिस्थापित करना होता है.
पूर्वोत्तर में अलगाववाद से जूझती कांग्रेस सरकार और देशी मीडीया को भले ही यह सांप्रदायिक लगता हो, लेकिन संघ ने विभिन्न स्थानों पर पूर्वोत्तर के छात्रों के लिये आवासीय विद्यालयों की स्थापना की है, जिसमें पूर्वोत्तर के विद्यार्थियों को आधुनिक एवं रोज़गार परक शिक्षा के साथ साथ भारत माता की जय बोलना सिखाया जाता है. इसका जीता जागता प्रमाण मेरठ के शताब्दी विहार में स्थित माधव कुन्ज में देखा जा सकता है. आप खुद सोचिये, मेरठ में भारत माता की जय बोलना सीखकर एक बच्चा पूर्वोत्तर के अपने राज्य में जाकर जब अपनी रोज़ी रोटी कमाता हुए भारत माता की जय बोलेगा तो आपको कैसा लगेगा. क्या यह अलगाववाद पर एक कारगर प्रहार नहीं है.
जागरूक जनता पर शासन करना आसान नहीं इसलिये भारत माता की जय, और वन्देमातरम जैसे क्रांतिकारी शब्द काँग्रेस को सांप्रदायिक लगते है और इन्ही कारणो से एक सशक्त विचारधारा वाला यह संगठन काँग्रेस की नज़र मे खटकता रहता है और काँग्रेस नेतृ्त्व इसे बदनाम करने का कोई मौका नहीं छोडना चाहता.
प्रतिकूल परिस्थितियों में भी त्याग, बलिदान और सेवा के प्रतीक स्वयंसेवकों एवं जीवनव्रती प्रचारकों के दम पर अपना लोहा मनवाने वाला यह संगठन देश को परम वैभव पर ले जाने के लिये कृ्त संकल्पित है……………………मन मस्त फकीरी धारी है, बस एक ही धुन जारी है … भारत माता की जय
भारत माता की जय.