नीरज कुमार जोशी : मैं कभी भी अर्थशास्त्र का विद्यार्थी नहीं रहा हूँ। जहाँ तक मुझे याद है मैंने आठवीं कक्षा के बाद कभी भी अर्थशास्त्र का अध्ययन नहीं किया इसलिए मैं इस विषय पर अधिक विद्वता भी नहीं रखता हूँ। लेकिन पिछले कई वर्षों से राष्ट्रवादी चिंतक आदरणीय भाई श्री राजीव दीक्षित जी को सुनता रहा हूँ एवं उनके द्वारा बताये गए ज्वलंत मुद्दों पर सरकारी स्तर पर आंकड़े प्राप्त करने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का उपयोग करता रहा हूँ। राजीव भाई को सुनने एवं सूचना का अधिकार अधिनियम से प्राप्त जानकारी को समझने के बाद मैं एक विश्लेषित लेख आप लोगों के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ। इस लेख से सम्बंधित आंकड़ों के लगभग सभी दस्तावेज मेरे पास उपलब्ध हैं इसलिए यदि किसी भी विद्वान पुरुष को मेरे इस लेख से आपत्ति हो तो कृपया निचे कमेंट बोक्स में सुझाव दे सकते हैं।
इतिहास गवाह है कि आठ सौ साल की गुलामी से पूर्व अर्थव्यस्था में भारत सोने की चिडिया कहलाता था। आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन के अनुसार पहली सदी से लेकर दसवीं सदी तक भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। पहली सदी में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) विश्व के कुल जीडीपी का 32.9% था; सन् 1000 में यह 28.9% था; और सन् 1700 में 24.4% था। ब्रिटिश काल में भारत की अर्थव्यवस्था का जमकर शोषण व दोहन हुआ जिसके फलस्वरूप 1947 में आज़ादी के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था अपने सुनहरी इतिहास का एक खंडहर मात्र रह गई।
सन 1947 में मिली तथाकथित आजादी के बाद जिन लोगों के हाथ में देश के सिंहासन की बागडोर आयी उन्होंने अर्थव्यस्था को मजबूत बनाने के नाम पर एक ऐसी अंधी दौड़ में भागना शुरू कर दिया कि हर काम के लिए विदेशी संस्थाओं से कर्ज लेना हमारी आदत में शामिल हो गया और हमारा देश एक बहुत बड़े कर्ज के दुष्चक्र में फँस गया और किसी ज़माने का सोने की चिड़िया यह देश एक कर्ज आधारित अर्थव्यस्था बन कर रह गया है।
वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर पिछले चार बजट पर एक नजर डाला जाय तो भारत का नेशनल बजट (अनुमानित) सन २०१२-१३, २०१३-१४, २०१४-१५, २०१५-१६ में क्रमश: १४३०८२५ करोड़ रुपये, १५५९४४७ करोड़ रुपये, १६८११५८ करोड़ रुपये, १७७७४७७ करोड़ रुपये है। बजट के आंकड़े पड़ने के बाद मैंने वित्त मंत्रालय से सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ के तहत पत्र लिखकर पूछा था कि –
प्रश्न- भारत देश के ऊपर कुल कितना विदेशी कर्ज है, इनमें से कितना रुपया IMF और WORLD BANK का है और कितना अन्य देशों का है? प्रतिवर्ष कितना रुपया विदेशी कर्ज का ब्याज चुकाने में खर्च होता है?
वित्त मंत्रालय की आर्थिक कार्य विभाग के तरफ से जो आंकड़े उपलब्ध करवाये गए उन्हें पढ़कर मैं बहुत दुखी हुआ। आप की जानकारी के लिए मैं ये आंकड़े यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ-
उत्तर- भारतीय रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर उपलब्ध नवीनतम ब्यौरे के आधार पर भारत का कुल विदेशी ऋण जून, २०१५ के अंत तक ३०७५७८५ करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। इनमें से IDA का १५८४६५ करोड़, अंतराष्ट्रीय पुनर्निमाण और विकास बैंक का ७९३१५ करोड़ रुपये और IMF के ३५६७१ करोड़ रुपये बकाया है IDA और IBRD दोनों ही विश्व बैंक की एजेंसियां हैं। २०१४-१५ के दौरान भारत ने ब्याज भुगतान के रूप में १२६०२ मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया।
मेरा विश्लेषण – उक्त आकंड़ों से मतलब साफ है कि आज यदि भारत की कुल जनसंख्या एक अरब सत्ताइस करोड़ मानकर चलें तो प्रति व्यक्ति पर कुल २४२२० रुपये का कर्ज है और पिछले वर्ष २०१४-१५ में हमारी खून पसीने की कमाई से १२६०२ मिलियन अमेरिकी डॉलर ( वर्तमान में लगभग ८३२७४.५८३ करोड़ रुपया) केवल विदेशी कर्ज का ब्याज देने के रूप में लुटा दिया गया। २०१४-१५ के दौरान यदि कुल बजट १६८११५८ करोड़ रुपये था और ८३२७४.५८३ करोड़ रूपया विदेशी कर्जे के ब्याज चुकाने में खर्च कर दिया गया। हर वर्ष इसी भांति हमारी खून पसीने की कमाई पर लगाये गए टैक्स कलेक्शन से एक बड़ा हिस्सा तो विदेशी कर्ज का ब्याज चुकाने में ही खर्च हो जाता है फिर नेताओं की स्वदेशी और विदेशी यात्रायें, भोग-विलास, सुख-सुविधाएँ, तनख्वाह, भत्ते, सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह, भत्ते आदि पर एक बड़ा हिस्सा खर्च कर दिया जाता है फिर प्रति वर्ष कुछ बड़े बड़े भ्रष्टाचार भी उजागर हो ही जाते हैं तो विकास के लिए बचा क्या? क्यों विकास का ढोल पीटती हैं सभी राजनैतिक पार्टियाँ। वर्ष २०१४ में भारत का कुल GDP केवल ६.८३ % of World GDP है जबकि सन १७०० में यही २४.४% of World GDP था। विकास के बड़े बड़े दावे कर रहे ये राजनैतिक दल इस बात का भी ध्यान नहीं रखते हैं कि देश की गरीब जनता के लिए तो सबसे आवश्यक वस्तु नमक को भी टैक्स के दायरे से बाहर नहीं रखा गया है। आज भारत सरकार यदि चाहे कि भारत की अर्थव्यस्था को पूर्ण कर्जमुक्त कर दिया जाय तो भी कम से कम दो से तीन वर्ष का पूरा का पूरा बजट राशि केवल कर्ज चुकाने में खर्च हो जायेगी जबकि भारत के नेता, कर्मचारीग, सेना, अनुसन्धान, सेवा क्षेत्र आदि पर कुछ भी खर्च न किया जाये तो और काम उतना ही असंभव है जितना कि कुत्ते की पूँछ को सीधा करना क्योंकि बाकी सब को छोड़ भी दिया जाय तो भी हमारे नेता और सरकारी कर्मचारी दो साल तो छोडो, दो महीने भी नहीं बल्कि दो दिन की तनख्वाह भी राष्ट्र के नाम समर्पित नहीं करेंगे क्योंकि इनके दिलों में देश नहीं है यदि होता तो सबसे पहले ये भारत की चौरासी करोड़ गरीब जनता का ख्याल दिल में लाते ना कि सातवां वेतन आयोग लागू करवाने का ।
इनके अतरिक्त हमारे देश की कुल पूंजी का एक बहुत बड़ा हिस्सा तो विदेशों से आयात करने में ही खर्च हो जाता है क्योंकि हमारा आयात हमारे निर्यात से काफी ज्यादा है। नवीनतम आंकड़ों के आधार पर अप्रैल –अगस्त २०१४-१५ का व्यापर घाटा ही ३८४७३६.५ करोड़ रुपये है क्योंकि कुछ जरूरी आयात के अतरिक्त कई गैर जरूरी आयात भी हमारे द्वारा किये जा रहे हैं। हमारे नवयुवक तो आज इलेक्ट्रॉनिक सामानों से लेकर जूते-चप्पल और अंडरवियर-बनियान तक की खरीद्दारी में भी पूरी तरह विदेशी बन कर रह गए हैं। किसी को यदि समझाने का प्रयास किया जाये तो कहते हैं कि विदेशी सामानों में क्वालिटी बहुत होती है जबकि स्वदेशी सामानों में क्वालिटी नहीं होती है। इन्हें ये समझ नहीं है कि इनके खून पसीने की कमाई का एक बड़ा हिस्सा तो विदेशी मुल्कों को अमीर बनाता जा रहा है और इधर हमारा किसान और मजदूर भूख गरीबी से तंग आकर आत्म-हत्या कर रहा है, कई बार ये कहते हैं कि देखो अमेरिका ने कितना ग्रोथ कर लिया, वहां की सड़कें देखो, टेक्नोलॉजी देखो, विज्ञान देखो कहाँ पहुँच गया और एक हमारा देश है छि…. उनके कथन से लगता है कि भारत में जन्म लेना जैसे वो खुद का सबसे बड़ा दुर्भाग्य मानते हों। मेरे भाई आँखें खोलो अभी भी देर नहीं हुई है मैं आप लोगों से हाथ जोड़कर निवेदन करता हूँ कि इस पूरे लेख को पढ़कर समझिए और लोगों को भी समझाइये। आने वाली महाभयंकर आर्थिक गुलामी से देश को बचाना चाहते हो और अपना भविष्य सुरक्षित करना चाहते हो तो स्वदेशी आन्दोलन के इस महायज्ञ में हमारा साथ दें और करें “विदेशी सामानों का पूर्ण बहिष्कार एवं स्वदेशी को करें स्वीकार”। आप कहेंगे कि विदेशी का यदि इतना बड़ा नुकसान है तो सरकार ये काम क्यों नहीं करती है तो बड़े प्यार से बता दूँ कि कि भाई जो लोग विदेशी फंड के बूते चुनाव जीतकर सत्ता के मद में चूर हों वो सरकारें केवल FDI पूंजी निवेश करवा सकती हैं विदेशी का बहिष्कार नहीं क्योंकि बहिष्कार का उनमें दम नहीं लेकिन आप कर सकते हैं। आने दो FDI आप यदि विदेशी सामान नहीं खरीदोगे तो विदेशी कम्पनियाँ आपके देश से एक पैसा भी नहीं लेकर जा सकती हैं।
अंत में मैं अपने गुरु महान राष्ट्रवादी चिन्तक आदरणीय भाई स्वर्गीय श्री राजीव दीक्षित जी की पांचवीं पुण्य स्मृति पर उन्हें अश्रुपूर्ण ह्रदय से श्रधा सुमन अर्पित करता हूँ।
जय हिन्द जय भारत
वनदे मातरम्