डा. देविंदर सिंह लेखक : शिक्षा संस्थानों और उनमें पढ़ने वाले छात्रों को भारत के संविधान द्वारा स्थापित संस्थाओं, जैसे कि उच्चतम न्यायालय, संसद इत्यादि पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है कि इन उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले विद्यार्थी ही कल को अध्यापक, नेता, जज, डाक्टर, इंजीनियर, वकील इत्यादि बनेंगे और देशवासियों की आशाओं के अनुरूप वे देश और संस्थाओं को और मजबूत करेंगे, ऐसा विश्वास सबको होना चाहिए। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए देश का संविधान, कानून और शिक्षा नीति प्रभावी ढंग से लागू हो, ऐसा सुनिश्चित करना हर सरकार की जिम्मेदारी है…
नौ फरवरी और उसके बाद के घटनाक्रम पर हम नजर डालें तो उसमें हमें पता चलता है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों के एक समूह ने कश्मीर, अफजल गुरू, पाकिस्तान के पक्ष में नारेबाजी की और उसके लिए सबसे पहले कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी हुई। उसके बाद उमर खालिद और उसके साथियों को हिरासत में लिया गया। इन सब पर राजद्रोह का दोष लगाया गया है और उसका मुकदमा भी चलाया जाएगा। प्रश्न यह उठता है कि क्या विश्वविद्यालय परिसर के कुछ विद्यार्थी इकट्ठे होकर देश के खिलाफ और देश के दुश्मनों के हक में नारेबाजी करके भारत की सुरक्षा को खतरा पैदा करते हैं? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें भारत के संविधान के प्रावधानों को जानने की आवश्यकता है।
भारत का संविधान, सभी नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है। अगर हम संविधान की पृष्ठभूमि में जाकर देखें, तो हमें पता चलेगा कि 1947 में जब भारत को आजादी मिली और संविधान बनाने की प्रक्रिया, जो आजादी से पहले ही शुरू हो चुकी थी, में मौलिक अधिकारों को विशेष स्थान मिला। बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमें उसी स्तर की प्राप्त हुई जो विकसित लोकतांत्रिक देशों जैसे अमरीका, इंग्लैंड इत्यादि के नागरिकों को प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद-19 में दी गई इस स्वतंत्रता पर भारत की सुरक्षा, संप्रभुत्ता, अखंडता, न्यायालय का अपमान इत्यादि के आधार पर प्रतिबंध लगाया गया है। जेएनयू विश्वविद्यालय की घटना के सम्मिलित तीनों विषयों में से एक विषय, जो अफजल की फांसी से संबंधित है, वह मुद्दा अपने-आप में विवादों से परे है। इसकी विवेचना शैक्षिक खोज में की जा सकती या फिर न्यायालय के सामने दलील देने के उद्देश्य से की जा सकती है। जाहिर सी बात है जब छात्रों का समूह नारेबाजी कर रहा था, तब ऐसा करना कानूनी रूप से गलत था।
दूसरा विषय कश्मीर की आजादी के संबंध में या जिसको हम अपनी विदेश और गृह नीति के अंतर्गत अपना आंतरिक मुद्दा मानते हैं और इस बात को अब न केवल दुनिया के बड़े लोकतांत्रिक देश, बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ भी मानने लगा है। इसलिए इस मुद्दे को देश के अंदर उठाना न केवल गैर जरूरी है, बल्कि राष्ट्रीय हितों के भी खिलाफ भी है। तीसरा विषय जो पाकिस्तान के पक्ष में नारेबाजी करने से संबंधित है, किसी भी रूप में उचित नहीं हो सकता, क्योंकि वह भारत से शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने वाला पड़ोसी राज्य है। भारतीय दंड संहिता की धारा-124(ए) में राजद्रोह के अपराध का प्रावधान है। इसमें यह बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति देश में कानून के द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा पैदा करेगा तो यह दंडनीय अपराध है। कानूनी तौर पर यदि इस धारा के तहत जब मुकदमा चलाया जाता है, तब नारेबाजी से ही राजद्रोह साबित हो जाए, ऐसा न्यायालय शायद ही निष्कर्ष निकाले, क्योंकि राजद्रोह का अपराध साबित करने के लिए ठोस सबूत, जैसे हिंसा करना या हिंसा के लिए भड़काना ही जरूरी है। अब संविधान से परे भी एक सवाल उठता है। ‘हर नागरिक अपने देश भारत को प्यार करता है और ऐसा प्यार हमेशा करता रहेगा, क्या ऐसा संविधान में लिखना जरूरी था या जरूरी है और ऐसा न करके संविधान निर्माताओं ने कोई गलती की है?’ इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें आजादी के बाद और संविधान के काल पर दृष्टि डालनी पड़ेगी। संविधान निर्माता बड़े ही बुद्धिजीवी और महान देशभक्त थे। उन्होंने हमें संविधान में वे सब अधिकार दिए, जिनसे वे लोग वंचित थे और उन्होंने इन अधिकारों को प्राप्त करने के लिए लंबी लड़ाई भी लड़ी और कुर्बानियां भी दीं।
इन अधिकारों में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रमुख है, लेकिन जैसे ही यह अधिकार हम भारत के स्वतंत्र नागरिकों को मिला, तो हमने इसका भरपूर फायदा उठाया। यूं कहिए इतना फायदा उठाया कि इसमें दूसरे नागरिकों और अन्य वर्गों, समाज और राष्ट्र को कितना नुकसान हुआ, हम यह भी भूल गए। सन् 1975 में जब संविधान की समीक्षा की गई, तब यह पता चला कि देश के नागरिक अधिकारों पर ज्यादा केंद्रित हो गए हैं और कर्त्तव्यों को भूल गए हैं। भारत एक कर्त्तव्य प्रधान देश है, इसलिए संविधान निर्माताओं ने नागरिकों के लिए किसी प्रकार के कर्त्तव्यों का उल्लेख नहीं किया। सन् 1976 के संशोधन के द्वारा एक अध्याय मौलिक कर्त्तव्यों का संविधान में जोड़ा गया। यह अध्याय नीति-निर्देश के सिद्धांतों की तरह ही है और इसका उल्लंघन करने पर किसी तरह की सजा का प्रावधान नहीं है। इस प्रकार मौलिक कर्त्तव्य स्कूलों के पाठ्यक्रम में मौलिक अधिकारों के साथ-साथ पढ़ाए जा रहे हैं, जो उपयोगी भी हैं।
इन मौलिक कर्त्तव्यों में एक कर्त्तव्य यह भी है कि नागरिक संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रीय प्रतीकों और राष्ट्रगान का आदर करें। देश की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें, परंतु मौलिक कर्त्तव्यों में भी यह स्पष्ट तौर पर नहीं लिखा है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को देश का सम्मान करना है और देश का अपमान करने पर दंड दिया जाएगा। मैं यह व्यक्तिगत तौर पर समझता हूं कि देश के नागरिकों को स्वाभाविक तौर पर ही अपने देश का सम्मान करना चाहिए, गर्व करना चाहिए और देश पर मर मिटने का साहस भी होना चाहिए। देश का अपमान करना वास्तव में एक संगीन अपराध है। हाल की घटनाओं को देखते हुए शायद देश के नागरिक इस चीज की जरूरत महसूस कर रहे हैं कि देश के संविधान और कानून दोनों ही कड़े किए जाएं और देश के अपमान को संगीन अपराध का दर्जा दिया जाए।
हमारा संविधान सरकार की आलोचना करने का अधिकार सब नागरिकों को प्रदान करता है। अब सरकार की आलोचना अधिकार है, पर सरकार से घृणा अपराध है। भारत में कानून राजद्रोह पर बना है न कि देशद्रोह के संबंध में, इसलिए इसका प्रयोग हमेशा विवादों में रहता है। जाहिर तौर पर इसकी अंतिम व्याख्या करने का अधिकार सिर्फ न्यायालय के पास है। शिक्षा संस्थानों और उनमें पढ़ने वाले छात्रों को भारत के संविधान द्वारा स्थापित संस्थाओं, जैसे कि उच्चतम न्यायालय, संसद, विदेश व गृह मंत्रालय इत्यादि पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है कि इन उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले विद्यार्थी ही देश के महान अध्यापक, नेता, उच्च अधिकारी, जज, डाक्टर, इंजीनियर, वकील इत्यादि बनेंगे और देशवासियों की आशाओं के अनुरूप वे देश और संस्थाओं को और मजबूत करेंगे, ऐसा विश्वास सबको होना चाहिए। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए देश का संविधान, कानून और शिक्षा नीति प्रभावी ढंग से लागू हो, ऐसा सुनिश्चित करना हर सरकार की बड़ी जिम्मेदारी है, जिसमें विपक्ष को भी सरकार के साथ सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए।
( डा. देविंदर सिंह लेखक, विधि विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं )