समय परिवर्तनशील है और हमेशा रहेगा भी. यही परिवर्तनशील समय पिता और पुत्र के बीच मतभेद पैदा कर देता है. जब यही पुत्र पिता बन जाता है तो उसके और उसके पुत्र के बीच यही मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं. इसी परिवर्तनशील समय को कुछ लोग “जनरेशन गैप” भी कह देते हैं. यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है. सायद समस्त जगत इस सत्य को स्वीकार करता है.
कुछ लोग इस सत्य का सदुपयोग करते हैं तो कुछ दुरुपयोग भी करते हैं. दुरुपयोग करने वाले लोग ना-ना प्रकार से इस सत्य को अपने स्वार्थ-सिद्धि के लिए इस्तेमाल करते आये हैं. तीन गप्पी गप मारने के लिए अपने दादाजी का दुरुपयोग करते थे. सर्दी का मौषम था. गांव की चौपाल पर हुक्का गुड़गुड़ाते हुवे लोग बातचीत कर रहे थे. सब लोगों का एक ही मत था की इस बार तो रिकार्डतोड़ सर्दी पड़ रही है. झट से तीन गप्पियों में से एक गप्पी बोला- अरे सर्दी तो पड़ती थी मेरे दादा जी के ज़माने में. तब सर्दियों में कोई बच्चा रोता था तो उसके आंसू गाल पर बहते बहते बर्फ बन जाते थे.
दूसरा गप्पी, जो पहले का ही हमउम्र था, बोला- अरे उससे ज्यादा सर्दी पड़ती थी मेरे दादाजी के ज़माने में. तब सर्दी के दिनों जब गाय को दुहने के बाद जब मेरी दादी घर के अंदर आती थी तो बाल्टी का दूध आइसक्रीम बन जाता था.
तीसरा गप्पी कहाँ पीछे रहने वाला था, वह बोला- अरे छोडो इन बातों को, सर्दी तो मेरे दादा जी के ज़माने में पड़ती थी. मेरी दादी जब भैंस को दुहती थी तो हमारी भैंस दूध की बजाय डायरेक्ट कुल्फी देती थी.
तीनों गप्पियों की बकबास सुन कर गांव वालों ने तीनों को चौपाल से मार भगाया. अब तीनों गप्पी गांव के बाहर आकर एक दूसरे को दोष देकर मंत्रणा करने लगे की हमारी गप में कहाँ कमी रह गयी. पहले और दूसरे गप्पी ने तीसरे गप्पी को हिदायत दी – तुम बहुत ही ज्यादा गप मार देते हो, कुछ काम किया करो. तीसरे गप्पी ने अपनी मज़बूरी बतायी – यार, जब में गप्प मरता हूँ तो मुझे ध्यान ही नहीं रहता की गप्प ज्यादा हो रही है.
उसके साथी दो गप्पियों ने कहा- अब से जब भी तुम्हरी गप ज्यादा हो रही होगी तो हम दोनों में से कोई तुमको कुहनी मार कर आगाह कर देगा. तीसरे गप्पी ने कहा- ठीक है, फिर मैं उस गप को थोड़ा कम कर दूंगा.
कुछ समय बाद उसी गांव में एक सांप निकल आया और गांववालों ने उसको मार दिया. गांववाले चर्चा कर रहे थे कि इतना लम्बा सांप तो गांव में पहली बार निकला. अचानक पहला गप्पी बोला – इससे दुगुना बड़ा सांप तो मेरे दादाजी ने मार था. दूसरा गप्पी कहने लगा- अरे मेरे दादाजी ने इससे तिगुना बड़ा सांप मार था. तीसरा गप्पी आगे आया और बोला- तुम्हारे दादाजी के ज़माने को छोडो, एक बार मेरे दादा जी ने लगभग 250 फुट लम्बा सांप मारा था.
तभी पहले गप्पी ने उसको धीरे से कुहनी मारदी. गप्पी समझ गया की गप ज्यादा हो गयी है और बोला- तब गांववालों में से किसी ने कहा इसकी लम्बाई 100 फुट है तो किसी ने कहा 150 फुट और कुछ ने कहा 200 फुट. जब बात नहीं बनी तो गांव वालों ने औसत निकाल कर 150 फुट उस सांप की लम्बाई मानी थी.
अब दूसरे गप्पी ने धीरे से कुहनी मारी तो तीसरा गप्पी बोला – तब मैं तीसरी कक्षा में पढ़ता था. मेरे दादाजी बहुत ही सख्त मिजाज थे. उन्होंने कहा कोई औसत नहीं निकलेगा. मैं इसकी लम्बाई नाप लेता हूँ. उन्होंने मुझ से कहा – पप्पू, जरा अपना फुट्टा ला. मैं फुट्टा लेकर आया और मेरे दादाजी ने सांप को नापा तो उसकी लम्बाई 100 फुट निकली.
पहले गप्पी ने उसको फिर कुहनी मारी तो तीसरा गप्पी जोर से चिल्लाया- अब जितनी भी कुहनी मारो मैं सांप को फुट्टे से नाप चूका हूँ. अब कम नहीं करूँगा.
ये दादा जी का ज़माना भी बड़ा अजीब है. अभी हाल ही में दिल्ली में कोई तीसरे गप्पी की ही तरह चीख चीख कर कह रहा था- मेरे दादा जी के ज़माने में देश की खूबसूरत महिलाएं अपने गहने पहन सज-धज कर रात भर कन्याकुमारी से कश्मीर तक घूमा करती थीं.
इसलिए मैं अब इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ की दुनियां का सबसे बड़ा आश्चर्य “दादाजी का जमाना” ही है.
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