शिखा शर्मा , चंडीगढ़ : मैं जल रहा हूं, तड़प रहा हूं. मेरा पत्ता-पत्ता जल रहा है. टहनी-टहनी झुलस रही है, मेरी जड़ें सुलग रही है. आग की लपटें मुझ से लिपटी हुई है. ये जालिम आग मुझे अंगार बना रही है. आग की तपन मेरे वन्यमित्रों तक भी पहुँच रही है. आग की लपटें देखकर वन्यजीव भी इधर-उधर भाग रहे रहे है. कुछ जल गए है कुछ जल रहे है कुछ दहाड़ रहे है, गुर्रा रहे है, चिल्ला रहे है. आग बस आग और यहां सिर्फ आग का ही अकाल रूप बिखरा है.
गर्मी आते ही हर साल जंगलों में अनगिनत मेरे जैसे पेड़ जलते है. इस गर्मी में मैं जल रहा हूं और मेरे साथ मेरे वन्य मित्र भी आग का निबाला बन रहे हैं. वहीं मित्र जो भोर में चहक-ठिठोली से आनंदित करते थे. वर्षों से जो मेरी छांव तले हंसी ठिठोली करते थे. वे सब जल रहे है. कुछ मेरे पत्तों से लिपटे है, कुछ पंक्ति बनाकर एक रट चल रहे है, कईयों ने घोंसला बनाकर घर बनाया है, तो कोई मेरी छाया में विश्राम फरमाते थे. सब एक एक करके जल रहे है. हमारी खामोश चिल्लाहट सुनने वाला कोई नहीं है. हम कहीं भाग भी नहीं सकते. हमारा एक दूसरे के लिए अथाह प्रेम है न मैं कहीं जा सकता हूं और न ही मेरे वन्यमित्र. हम साथ में हैं तभी हम “जंगल” है. शहर से दूर ऊँची चोटी, पहाड़ों पर हमारा रैन-बसेरा है. दुनिया की तमाम हलचलों से हमारा कोई लेना नहीं. बस देना ही देना है. जीवित प्राणियों के लिए शुद्ध हवा, मजबूत लकड़ी, वन्यजीवों के लिए रिहाईश, उनका भरण-पोषण, भूमि की मिट्टी को अपनी जड़ों से जकड कर मजबूत बनाना. अरे ये सब…. हम सभी पेड़ सिर्फ देते है लेते कुछ नहीं, लेकिन जैसे ही ज्येष्ठ आता है बस एक आग की आहाट सब तबाह कर देती है. न जाने ये आग क्यों हमारी इस देनदारी से भी खुश नहीं हैं. हम एक स्थान पर अटल है लेकिन हमारी देनदारी निरंतर है और ये आग…..ये आग बेबाक होकर हमारी खुशियों झुलसाकर रखकर देती है.
शायद ही इस आग को ये नहीं पता कि मुझे जलकर किसी का कोई फायदा नहीं होने वाला, बल्कि नुक्सान ही हिस्से आएगा. हमें जलाकर अरबों-खरबों की वन सम्पदा जल रही है. मेरे वन्यमित्र जल रहे है. ये सब जलाकर सिर्फ नुकसान हिस्से आ रहा है, प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है. मैं अभी भी कह रहा हूँ. आग लगाने वालों और इसे भड़काने वालों को कह दो…. रोक दो जंगलों को जलना नहीं तो धरती पर निर्वाह करने वालों का जीना दुर्भर हो जाएगा. उनको जाकर कह दो हमारी भी प्राकृतिक मौत होती है, लेकिन जिस तरह से हमारा वर्तमान चल रहा है इससे सबका भविष्य विनाश की तरफ जा रहा है.
पूरे जंगल में आग का कोहराम मच गया है. इसकी लपटें मेरे आसपास के सभी जंगलों लपेटें में ले रही है. वे खामोश चिल्ला रहे है, लेकिन आग का तांडव बरकरार है. ये किसी की चीख-चिल्लाहट नहीं सुन रही. इस बद्जलिम आग ने अब मुझे पूरी तरह से जला दिया है. मेरा विशालकाय दरख्त पेड़ अब आखिरी सांस ले रहा है. अगर किसी ने मेरी चीख सुनी हो तो आग को आगे बढ़ने से रोक दो. इससे पहले प्रकृति का विनाश हो जाए…. रोक दो इसे. हमें प्राकृतिक मौत मरने दो. यूं कुछ जलाने से, कुछ काटने से और कुछ उखाड़ने से हमारे विनाश के साथ अपने विनाश को न्यौता न दो.