रविंदर पडलिया : सीमा सुरक्षा बल का अपना एक इतिहास है, बेसक छोटा है पर बहुत ही महत्वपूर्ण और गौरवशाली है. CRPF के पास भी उसका एक गौरवसाली अतीत है. उसी प्रकार, आसाम राइफल हो या SSB, या फिर हो ITBP, ये भी किसी से पीछे नहीं हैं. देश के सभी अर्ध-सैनिक संगठनों का जन्म एक विशेष उद्देश्य को ध्यान में रख कर हुवा है जो कि उनके नाम से ही झलकता है. ये सभी संगठन अपने अपने उद्देश्यों को भली प्रकार प्राप्त करते आये हैं. सम्पूर्ण देश यह बात जानता है. इनका काम और सैनिकों के काम में किसी प्रकार का अंतर नहीं है. इसीलिए, देशवासी इन अर्ध-सैनिक संगठनो के जवान और सेना के जवान में कोई अंतर भी नहीं समझते हैं और मोटे तौर पर सभी को “फौजी” शब्द से ही जानते हैं. देश के दुश्मनों के द्वारा यदि देश की सीमा पर हमला किया जायेगा तो ये अर्ध-सैनिकों के जवान ही सबसे पहले उनको रोकेंगे. इतना ही नहीं, इन अर्ध-सैनिकों को देश समय-समय पर उन अनेकों कार्यों के लिए भी इस्तेमाल करता आया है जो इनके मूल कार्य से अलग हैं.
समय समय पर देश के नेतागण अपने भाषणों में इन अर्ध-सैनिकों की तारीफ बहुत ही लच्छेदार शब्दों के साथ करते आये हैं परन्तु वे इनके साथ हमेशा सौतेला बर्ताव करते आये हैं जो आज भी जारी है. वैसे तो सौतेले वर्ताव की कहानी बहुत ही लम्बी है लेकिन इस देश के जागरूक नागरिकों को कुछ उदहारण देना चाहूंगा ताकि वे फैसला कर सकें कि इन कर्मठ अर्ध-सैनिकों के साथ केंद्र सरकार और राज्य सरकारें कितना अत्याचार कर रही हैं:-
1 – यदि किसी युद्ध या अन्य ऑपरेशन जो सेना और अर्ध-सैनिकों द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा हो, उसमें कुर्बानी देने वाले सैनिको को “शहीद” का दर्जा दिया जाता है लेकिन अर्ध-सैनिकों को नहीं. दो वर्ष पहले उत्तराखंड राज्य में आयी आपदा के दौरान एक हैलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था जिसमें कुर्बान नभ-सेना के जवानों को “शहीद” माना गया लेकिन ITBP के जवानों को नहीं.
2 – एक सैनिक सेवानिवृत होने के बाद यदि बीमार हो जाता है तो देश के लगभग हर छोटे-बड़े सहरों के निजी चिकित्सालयों में अपना और अपने परिवार के सदस्यों का उपचार मुफ्त में करा सकता है. और दूसरी तरफ, ठीक इसके विपरीत, एक अर्ध-सैनिक और उसके परिवार को सेवानिवृत्ति के बाद बीमार होने पर मरने के लिए बेसहारा छोड़ दिया गया है.
3 – एक सैनिक, वह सेवा में हो या सेवानिवृत हो गया हो, उसको कैंटीन से सस्ता सामान उपलब्ध कराया जाता है लेकिन, अर्ध-सैनिक को ये सुविधा न दे कर यहाँ पर भी बेसहारा छोड़ दिया गया है.
4 – सैनिकों को सेवा-स्थान से घर तक आने-जाने के लिए किराये में रियायत मिलती है भले ही वह एक वर्ष में कितनी भी बार छुट्टी जाए. अर्ध-सैनिक को यह सुविधा केवल डेड़ (1.5) बार ही मिलती है.
5 – सैनिकों को देर सबेर सामान पद – सामान पेंसन की सुविधा भी मिल ही जाएगी क्योंकि केंद्र सरकार इस बात को मान चुकी है. लेकिन यह केंद्र सरकार यहाँ पर भी अर्ध-सैनिक को भूल गयी है.
अर्ध-सैनिकों के साथ होने वाले सौतेले व्यवहार की और भी अनेकों मिशाल हैं.
अब बात करते हैं राज्य सरकारों की. एक बहुत पुरानी कहावत है – “जिस पत्नी का पति ही उसका सम्मान नहीं करता है वो सबकी भाबी बन जाती है”. एक अर्ध-सैनिक के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. जब केंद्र सरकार ही अपने अर्ध-सैनिक का ध्यान नहीं रखेगी तो राज्य सरकार उसका ध्यान क्यों रखेगी? उत्तराखंड राज्य की सरकार का तो कहना है कि उसके पास राज्य में रहने वाले अर्ध-सैनिकों के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है और नाही उसके पास कोई विभाग है जो अर्ध-सैनिकों के कल्याण को देखे.
यहाँ पर मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि मैं चाहता हूँ सैनिकों को और भी अच्छी सुविधा मिले. सामान पद-सामान पैंसन की सुविधा भी शीघ्र ही लागू हो. पूरे देश को इसमें खुसी होगी. इस लेख का तात्पर्य तो इतना ही है कि अर्ध-सैनिक को भी यही सुविधा सामान रूप से मिले.
अब सवाल उठता है कि यह सौतेला व्यवहार इन अर्ध-सैनिकों के साथ हो क्यों रहा है? अतीत और वर्तमान का विश्लेषण करने से ऐसा लगता है कि अर्ध-सैनिको के साथ होने वाले इस अन्याय के लिए जिम्मेवार है इन बातों को सरकार के सामने शसक्त रूप से प्रस्तुत ना किया जाना. इन अर्ध-सैनिक संगठनों के उच्च अधिकारी आईपीएस होते हैं और उनके कल्याण का ध्यान रखने के लिए उनके पास आईपीएस की एक संस्था है. अर्ध-सैनिक संगठनों में ये आईपीएस अपने राज्य पुलिस से केवल कुछ वर्षों के लिए ही आते हैं और उसके बाद अपने राज्य में वापस चले जाते हैं. ऐसे में उनको इन अर्ध-सैनिकों के कल्याण की चिंता क्यों होगी? विश्लेषण करने से यह भी निष्कर्ष निकला कि सभी आईपीएस ऐसे नहीं होते हैं लेकिन अर्ध-सैनिकों के हित में कार्य करने वाले आईपीएस अधिकारीयों की गिनती बहुत ही छोटी है. इसके साथ यह भी सत्य है कि इन अधिकारीयों के द्वारा प्रस्तावित कल्याण-कार्यों को इनके वापस अपने राज्य में जाने के बाद भुला दिया जाता रहा है और ये अपने अंजाम तक नहीं पहुँचते .
इसलिए, अर्ध-सैनिकों के कल्याण के लिए प्रस्तावित कार्यों में निरन्तता बनाये रखने के लिए एक अर्ध-सैनिक कैडर बनाये जाने की आवशकता है. राज्यों से आईपीएस अधिकारीयों का आन बंद कर दिया जाना चाहिए या फिर इनकी संख्या बहुत ही कम कर दी जाय.
आशा है, केंद्र सरकार और राज्य सरकारें इन अर्ध-सैनिकों के कल्याण के प्रति अपनी उदासीनता को त्याग कर कुछ सकारात्मक कदम जरूर उठाएंगे.
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