राजीव शुक्ला : एक सच जो हिन्दू समाज से सोची समझी शाजिश से नहीं बताया जा रहा हे , भारतीय ग्रंथों को बहुत लोगों ने अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए गलत गलत तरीके से प्रयोग किया है ऐसा प्रतीत होता हे की यह सब मात्र एक विशेष समुदाय को खुश करने के लिए किया गया ।
दोस्तों हमारे नेताओं ने भारतीय ग्रंथों में लिखे हुए श्लोक को पूर्ण रुप से लोगों तक नहीं पहुंचाया है । आज मैं आपको एक बहुत ही चौंकाने वाला श्लोक बताने जा रहा हूं जिसे अधिकतर हर भारतीय में सुना है । और इस श्लोक को बहुत ही फिल्मों में सुना भी गया हे परन्तु अधूरा ।
दुर्भाग्यवश इस श्लोक को कुछ राजनीतिक स्वार्थों के लिए पूरा न बताकर भारत वासियों के साथ छल किया गया। उन्हें पूर्ण श्लोक कभी बताया ही नहीं गया ।
दुर्भाग्यवश भारत एक ऐसा देश है जहां के अधिकतर लोग अपने ग्रंथों में लिखी श्लोकों से वंचित हैं । दोस्तों जरा सोचो की महाभारत के इस श्लोक अधूरा क्यों पढाया जाता है ?? वह कौन लोग थे जिन्होंने इस श्लोक को अधूरा पढाया ।
“अहिंसा परमो धर्मः” (यह गलत हे, पूर्ण नहीं हे )
जबकि पूर्ण श्लोक इस तरह से है।
“अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: l”
(अर्थात् यदि अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है (उस हिंसा को हिंसा नहीं बल्कि अपराधी को दंड देना कहते हैं)
क्या हमारे कोइ भी भगवान् बिना शस्त्र के हैं? नहीं ना… हम सभी ने देखा है कि हमारे भगवान् हमेशा शस्त्र और आशीर्वाद की मुद्रा में ही होते हैं आप ने कभी सोचा ऐसा क्यों, क्यूंकि वो निर्दोष को क्षमा करते हैं और पापी को दंड देते हैं, ध्यान रहे ये श्लोक तब लिखे गए थे जब अब्रहमिक धर्म (ईसाई और इस्लाम) इस विश्व में आये ही नहीं थे, लेकिन सनातन धर्म इस जगत में कब से किसी को अंदाज़ा नहीं है और धर्म के लिए हिंसा का अभिप्राय सनातन धर्म के रक्षार्थ लिखा गया जिसमे एक तुलसी की भी पूजा की जाती है और दुष्कर्मो के लिए अनिवार्य मृत्यु का विधान है जिससे की समाज की भयमुक्त किया जा सके.
भारत में हमारी हिंदू विरोधी सरकारे भी हिन्दुओ को आधा ही श्लोक बताने की शौकीन हैं..कारन हिन्दुओ का शोषण जरी रखा जा सके.
Ganesh Dhar Dwivedi : एक बात समझ में नही आती कि महात्मा गांधी ने यह श्लोक अधूरा ही क्यों कहा उन्होंने आगे यह क्यूँ नही कहा कि “धर्म हिंसा तथैव च” अर्थात धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना भी धर्म है ।परंतु ये श्लोक अधूरा कहा भी तो एक ऐसे व्यक्ति ने जिसे ‘महात्मा’कहा गया ; महात्मा अर्थात महान +आत्मा=महान है जो आत्मा । एक महात्मा पूरे विश्व के कल्याण की कामना करता है।पर इन्होंने अपने ही देश के कल्याण के बारे में नही सोचा।
इस श्लोक की उत्पत्ति हमारे श्रेष्ठ भारत के महाकाव्य महाभारत में हुई। जब महाभारत ग्रंथ में पांडवो को 12 वर्षों का वनवास मिलता हैं तो वो अनेक ऋषि-मुनियों के संपर्क में आते हैं जिनसे उन्हें भांति-भांति का ज्ञान मिलता है। इसी अवधि में उनका ऋषि मारकंडेय से भी परिचय होता है। ऋषि मारकंडेय के मुख से उन्हें कौशिक नाम के ब्राह्मण और धर्मनिष्ठ व्याध के बीच के वार्तालाप की बात सुनने को मिलती है। यह श्लोक उसी के अंतर्गत उपलब्ध है
“अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: ”
इस श्लोक के अनुसार अहिंसा ही मनुष्य का परम धर्म हैं और जब जब धर्म पर आंच आये तो उस धर्म की रक्षा करने के लिए की गई हिंसा उससे भी बड़ा धर्म हैं। यानि हमें हमेशा अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए लकिन अगर हमारे धर्म पर और राष्ट्र पर कोई आंच आ जाये तो हमें अहिंसा का मार्ग त्याग कर हिंसा का रास्ता अपनाना चाहिए। क्यूंकि वह धर्म की रक्षा की लिए की गई हिंसा ही सबसे बड़ा धर्म हैं। जैसे हम अहिंसा के पुजारी है लकिन अगर कोई हमारे परिवार को कोई हानि पहुंचता हैं तो उसके लिए की गई हिंसा सबसे बड़ा धर्म हैं। वैसा ही हमारे राष्ट्र के लिए हैं
Jay Shri Ram
bhai ye shlok kha se liya gya hai kis kitab se jra hame btaye
bhai ye shlok kha se liya gya hai kis kitab jra hame bate
मोदी ने उस को पुरा किया! प्यार से समझ दो, नाही तो ठोक दो!
Maha Bharat Padh te ho ki nehi yadi nehi padh te ho padho usime likha hein…