मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिषविद् : पुराणों के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रकृष्ण अष्टमी तिथि बुधवार , रोहिणी नक्षत्र व बृष राशि में अभिजीत मुहूर्त के अधीन हुआ है। ज्योतिषीय योगों के अनुसार यह एक दुर्लभ संयोग होता है, इसीलिए भगवान कृष्ण पूरे संसार में अपनी लीलाओं, गीता ज्ञान और कर्म प्रधान जीवन के लिए आज भी उतने ही सार्थक हैं जितने 5000 साल पूर्व थे।
इस बार 5 सितंबर , शनिवार को भी ये सभी दुर्लभ योग ,हैं जब अद्र्घव्यापिनी अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, बृषस्थ वंद्रमा का पुण्यप्रदायक योग बन रहा है। इस दिन चंद्रमा रात्रि 8$45 पर उदय होगा । शुक्रवार , 4 सितंबर की रात 3 बज कर 56 मिनट पर अष्टमी लग जाएगी और अगले दिन अर्थात 5 सितंबर , शनिवार की रात्रि 3 बजकर 02 मिनट तक रहेगी। रोहिणी नक्षत्र रात्रि 24$10 तक रह्रेगा ।
परंपरानुसार एवं स्थानीय परिस्थितिवश मथुरा व गोकुल में हर बार की तरह भगवान कृष्ण के जन्म पर नन्दोत्स्व अगले दिन मनाया जा रहा है। भारत के कई नगरों में मथुरा की परंपरा के अनुसार चला जाता है परंतु शुद्घ ज्योतिष के आधार पर ही व्रत एवं महोत्सव मनाने का अपना ही महत्व एवं सार्थकता रहती है।
व्रत कब और कैसे रखा जाए?
व्रत के विषय में इस बार किसी प्रकार भी भ्रांति नहीं हैं। फिर भी कई लोग, अद्र्घरात्रि पर रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी और अष्टमी पर व्रत रखते हैं। कुछ भक्तगण उदयव्यापिनी अष्टमी पर उपवास करते हैं।
शास्त्रकारों ने व्रत -पूजन, जपादि हेतु अद्र्घरात्रि में रहने वाली तिथि को ही मान्यता दी। विशेषकर स्मार्त लोग अद्र्घरात्रिव्यापिनी अष्टमी को यह व्रत करते हैं। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल,चंडीगढ़ आदि में में स्मार्त धर्मावलम्बी अर्थात गृहस्थ लोग गत हजारों सालों से इसी परंपरा का अनुसरण करते हुए सप्तमी युक्ता अद्र्घरात्रिकालीन वाली अष्टमी को व्रत, पूजा आदि करते आ रहे हैं। जबकि मथुरा, वृंंदावन सहित उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों में उदयकालीन अष्टमी के दिन ही कृष्ण जन्मोत्सव मनाते आ रहे हैं। भगवान कृष्ण की जन्मसथली मथुरा की परंपरा को आधार मानकर मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के दिन ही केन्द्रीय सरकार अवकाश की घोषणा करती है। वैष्णव संप्रदाय के अधिकांश लोग उदयकालिक नवमी युता जन्माष्टमी व्रत हेतु ग्रहण करते हैं।
सुबह स्नान के बाद ,व्रतानुष्ठान करके ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र जाप करें । पूरे दिन व्रत रखें । फलाहार कर सकते हैं। रात्रि के समय ठीक बारह बजे, लगभग अभिजित मुहूर्त में भगवान की आरती करें। प्रतीक स्वरुप खीरा फोड़ कर , शंख ध्वनि से जन्मोत्सव मनाएं। चंद्रमा को अघ्र्य देकर नमस्कार करें । तत्पश्चात मक्खन, मिश्री, धनिया, केले, मिष्ठान आदि का प्रसाद ग्रहण करें और बांटें। अगले दिन नवमी पर नन्दोत्सव मनाएं।
भगवान कृष्ण की आराधना के लिए आप यह मंत्र पढ़ सकते हैं-
ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषां पते!
नमस्ते रोहिणी कान्त अघ्र्य मे प्रतिगृह्यताम्!!
स्ंातान प्राप्ति के लिए –
इस की इच्छा रखने वाले दंपत्ति, संतान गोपाल मंत्र का जाप पति -पत्नी दोनों मिल कर करें, अवश्य लाभ होगा।
मंत्र है- देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते!
देहिमे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:!!
दूसरा मं़त्र-
! क्लीं ग्लौं श्यामल अंगाय नम: !!
विवाह विलंब के लिए मंत्र है-
ओम् क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्ल्भाय स्वाहा।
इन मंत्रों की एक माला अर्थात 108 मंत्र कर सकते हैं।