आओ कुछ दिन बिताऐं हम अपने गाँव में,
हाल पूछैंगे घरों का बैठ ठण्डी छाँव में||
फिर सजाऐंगे बंजर घरों को मिलकर के हम,
देवपूजा भी करैंगे मन्दिर में चलकर के हम||
जिसकी मिट्टी में पले थे आओ उसकी खोज लैं,
डुबके,चैंसा भात का भी साथ मिलकर भोज लैं||
राह में काँटे उगे हैं आओ मिलकर काट लैं,
जो दु:खी हौंगे उधर जाकर के कुछ दु:ख बाँट दैं||
युवकों को कर दें खड़ा चलकर के उनके पाँव में,
आओ कुछ दिन बिताऐं हम अपने गाँव में||
मिलकर के हम हल करैंगे विकास के अवरोध को,
रोप आऐंगे पुलम,आड़ू मिरच की पौध को||
साफ कर आऐंगे नौले और पानी पनेर को,
कर क्रय लाऐंगे उनसे मडुआ घी झिंगोर को||
उनकी उपज काे खरीदैंगे उनके श्रम के भाव में,
आओ कुछ दिन बिताऐं हम अपने गाँव में||
(डॉ विद्यासागर कापड़ी जी उत्तरांचल उत्थान परिषद् केंद्रीय कार्यकारणी के सदस्य हैं ।आशु कवि हैं।उनकी हर रचना ग्रामविकास को समर्पित है ।)