देहरादून , चन्द्रशेखर जोशी : १० दिसम्बर २०१२ को शिक्षा मित्रों पर जबर्दस्त लाठी चार्ज के बाद बने विपरीत माहौल से राज्य सरकार दबाव में आई, मुख्यमंत्री ने प्रतिनिधिमंडल को बुलाकर कई घोषणाएं की जिसमें शिक्षा मित्रो पर कोई मुकदमा कायम न करने तथा अगले दिन अपने निवास पर वार्ता हेतु बुलाया परन्तु ११ दिसम्बर को कांग्रेस विधायक हरीश धामी, मयूख महर, सुबोध उनियाल, मनोज तिवारी, हिमेश खर्कवाल, शैलारानी रावत, विक्रम सिंह नेगी मुख्यमंत्री के निवास पर शिक्षा मित्रों को लेकर पहुंचे तो मुख्यमंत्री ने कहा कि इस समय सत्र के लिए देर हो रही है, लिहाजा शिक्षा मित्रों से दोपहर एक बजे विधानसभा में वार्ता करेगें।
विधानसभा में एक बजे यह लोग फिर सीएम से मिलने पहुंचे तो सीएम ने वित्त मंत्री इंदिरा हदयेश को भी वार्ता हेतु न्यौता भेजा परन्तु वित्त मंत्री इंदिरा हदयेश नहीं आयी, इसके बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि सत्र के बाद वार्ता करेगें। सत्र समाप्त होते ही मुख्यमंत्री वहां से अपने आवास पर चले गये। इससे कांग्रेस विधायक समेत शिक्षा मित्रों को स्वयं को ठगे जाने जैसा अहसास हुआ। शिक्षा मित्रों ने कहा है कि सरकार यह न समझे कि शिक्षा मित्रों पर लाठीचार्ज के बाद आंदोलन समाप्त हो जाएगा। लाठीचार्ज के बाद शिक्षा मित्र अधिक शक्ति के साथ पुलिस और सरकार की बर्बरता का सामना करेगें। वक्ताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री का रवैया बताता है कि उन्हें न शिक्षामित्रों के भविष्य की चिंता है और न ही स्कूलों में पढ रहे बच्चों के भविष्य की।
ललित द्विवेद्वी प्रदेश अध्यक्ष शिक्षा मित्र महासंघ ने कहा कि शिक्षामित्र गत दस वर्षो से शिक्षक के रूप में कार्य कर रहे हैं, उन्हें समान कार्य के लिए समान वेतन मिलना चाहिए लेकिन सरकार और विभागीय अधिकारी उनकी अनदेखी कर रहे हैं जिस कारण शिक्षा मित्रों का भविष्य अधर में हैं। मित्र अपने स्थान से टस से मस नहीं होंगे। पुलिस की बर्बरता ने उनके हौसले तोडे नहीं और बढा दिये हैं।
ठगे जाने का असली अहसास तो तब हुआ जब पुलिस ने शिक्षा मित्रों पर मुकदमा कायम करने की कार्यवाही शुरू की, सीओ मसूरी हरबंश सिंह की ओर से शिक्षा मित्रों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया, शिक्षा मित्रों पर बलवा, मारपीट, सरकारी कामकाज में बाधा डालने, सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने, ७-क्रिमिनल एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया। वहीं दूसरी ओर लाठीचार्ज में घायल दो दर्जन से अधिक शिक्षा मित्रों का अस्पताल में ही इलाज चल रहा है। घायल शिक्षा मित्रों को देखने का सिलसिला भी जारी है।
ज्ञात हो कि उत्तराखण्ड में वर्ष २००१ में प्राथमिक विद्यालों में शिक्षा मित्र ओर हाई स्कूल व इंटर कालेजों में शिक्षा बंधु नियुक्त किये गये थे, जिसमें शिक्षा मित्रों को २२५० और शिक्षा बंधुओं को तीन हजार रूपये मानदेय दिया गया, कुछ समय उपरांत शिक्षा बंधओं को स्थाई नियुक्त दे दी गयी लेकिन शिक्षा मित्रों को स्थाई नहीं किया गया, जिस कारण तब से शिक्ष मित्र आंदोलनरत है। उत्तराखण्ड के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में ३८१७ शिक्षा मित्र तैनात है जो सूबे में प्राथमिक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, पहाड के दुर्गम क्षेत्रों में तैनात ये शिक्षा मित्र बहुत कम वेतन में गुजारा कर रहे हैं इनकी ओर राज्य सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया।
अब एक बार फिर कांग्रेस सरकार ने शिक्षा मित्रों को छला, पहले महिलाओं तक को बर्बर तरीके से पीटा गया, मामले की संवेदनशीलता को देख वार्ता की बात की फिर अगले दिन ही वार्ता ही नहीं की, मुख्यमंत्री व उसके वित्त समेत अन्य विधायक मंत्री व सचिवों के साथ शिक्षा मित्रों की वार्ता में एक बार फिर शिक्षा मित्र छले गए। पूरा दिन शिक्षा मित्रों का एक प्रतिनिधिमंडल विधानसभा में बैठा रहा, लेकिन एक के बाद एक समय सीमा देने के बाद अन्ततः सदन समाप्त होते ही मुख्यमंत्री अपने आवास की ओर चल दिए। शिक्षा मित्रों ने इसे उनके साथ साजिश करार दिया है। उन्होंने सरकार की मंशा पर सवाल खडे करते हुए कहा कि धरने पर बैठे आंदोलनकारियों की ताकत को देखकर मुख्यमंत्री दबाव बनने के डर से पूरे दिन वार्ता करने से कतराते रहे। बीते दिन विस के बाहर शिक्षा मित्रों पर पुलिस के बर्बर लाठीचार्ज के बाद बने जनदबाव के चलते मुख्यमंत्री ने मंगलवार सुबह को शिक्षा मंत्रियों से वार्ता का आश्वासन तो दे दिया, लेकिन वित्त मंत्री के साथ आपसी कोआर्डिनेशन न होने के चलते सुबह दोपहर व सायं तीनों बार बैठक स्थगित करनी पडी। अंत में प्रतिनिधिमंडल निराश लौट गया।
प्रदेश महामंत्री रविन्द्र खाती ने कहा कि अब वह वार्ता के लिए कोई पहल नहीं करेंगे और बार बार वह बिना कोई हल निकाले वार्ता भी नहीं करेंगे। बाहर सभा में अल्मोडा के जिलाध्यक्ष शिक्षा मित्र अजरुन बिष्ट ने कहा कि यह कोई राजनीतिक भीड नहीं है कि मात्र किसी के उकसावे पर शुरू और खत्म हो जाए। यहां रोजी रोटी का सवाल है। जो खुद आवश्यकताओं के लिए सडक पर आई है।
शिक्षा मित्रों को समर्थन देने आए क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के भूपाल ने लाठीचार्ज की निंदा करते हुए इसे लोकतंत्र के लिए घातक बताया। उन्होंने कहा कि सरकार की जिम्मेदारी है कि शिक्षा मित्रों को सुविधाएं मुहैया करवाए। खजाना खाली होने की दलील पर उन्होंने कहा कि मंत्री व विधायकों को सुविधाएं व लाल बत्ती पर बेहूदा खर्च के समय क्यों नहीं सरकार का खजाना खाली रहता है। वहीं भाकपा माले के गढवाल सचिव इन्द्रेश मैखुरी ने कहा कि इस शर्मनाक घटना के लिए सिपाही से लेकर एसएसपी तक को निलंबित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोगों की भावनाओं को कैश कर जो चुनावों में गलत टिकट मिलने पर जनता के सामने जार जार रोते रहे वह आज कहां हैं। उन्होंने कहा कि आज बीते दिनों से शिक्षा मित्रों की ज्यादा तादात देखकर लग रहा कि सरकार का डंडा फेल हो गया है।