चुनाव परिणामों के उपरान्त; जोड़-तोड़ की राजनीति शुरू हुई, फिर बहुजन समाज पार्टी, तथा विजयी निर्दलीय विधायकों, और यू के डी पी के एक विधायक द्वारा, समर्थन हासिल कर, कांग्रेस पार्टी ने बहुमत सिद्ध किया. राज्यपाल ने, जब कांग्रेस पार्टी को, सरकार बनाने हेतु आमंत्रित किया, तो कई दिनों तक, कांग्रेस के विजयी दल का नेता नहीं चुना जा सका. कई बड़े नेता मुख्यमंत्री बनने की आस लगाए बैठे थे. जैसे ही विजय बहुगुणा के रूप में, मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा हुई; हरीश रावत और उनके कई समर्थक, प्रदीप टम्टा और हरक सिंह रावत, आदि ने गहरा असंतोष ज़ाहिर करते हुए, घमासान मचाना शुरू कर दिया. बात घोषित मुख्यमंत्री के, शपथ समारोह के रद्द होने तक बढ़ गई. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मुख्यमंत्री ने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार शपथ ग्रहण की.
दूसरी तरफ़, असन्तुष्टों में असंतोष जारी रहा. हरीश रावत संसद से अनुपस्थित रहे, तो प्रदीप टम्टा व हरक सिंह रावत, मुखर होकर, हाईकमान के फैसले को ग़लत बताते रहे.
इस विषय पर, कई अन्य कांग्रेसियों से बात करने पर, उन्होंने इसे सामान्य बात, घर की बात, आदि कह कर, कुछ दिनों में, मामला शांत हो जाने की बात कही. हुआ भी कुछ ऐसा ही, मामला कम से कम ऊपर से शांत होने लगा. परन्तु हरक सिंह रावत, लगातार मंत्रिमंडल में शामिल न होने की बात कहते रहे. उन्हें मुख्यमंत्री के पद से छोटा, कोई भी पद लेना मंज़ूर नहीं था.
उनकी नाराज़गी को देखते हुए, कांग्रेस हाईकमान परेशान न हुआ हो; ऐसा नहीं हो सकता है. कई दिनों तक लगातार नाराज़ रहने के बाद, पिछले दिनों, उनके तेवरों में आयी नरमी, और साथ ही उनकी बातों में छुपे, कुछ इशारों को देखते हुए, लगता है कि सोनिया जी ने, उन्हें उप-मुख्यमंत्री बनाने का सपना दिखा दिया है. मुख्यमंत्री ना सही उप-मुख्यमंत्री ही सही, आख़िर ‘उप’ के बाद आने वाला शब्द ‘मुख्यमंत्री’ ही तो है!.
अब देखना यह है; कि यह बात सच होगी, या फिर, चतुर हाईकमान ने, फिलहाल अपने, इस रूठे सिपाही- ‘हरक सिंह रावत’ के तेवरों को, ठंडा करने के लिए, उसके सामने, कूटनीति की; एक ‘गाजर’ लटका कर रख दी है!.