चंडीगढ, 19 मई, 2016: इसे निरंकार का खेल ही समझा जाए कि कल यहां एक विशेष सत्संग कार्यक्रम में निरंकारी जगत् द्वारा जहाँ सत्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज को उनके महान परोपकारों के लिए श्रद्धांजलि अर्पित की गई, वहीं सत्गुरु माता सविन्दर जी का उनके उत्तराधिकारी के रूप में स्वागत किया गया।
संत निरंकारी मंडल चंडीगढ ब्रांच के संयोजक श्री मोहिन्द्र सिंह जी ने बताया कि चण्डीगढ मनिमाजरा पचकुला मोहाली व भारत तथा अन्य देशों से आये संत निरंकारी मिशन के लाखों श्रद्धालु भक्तों ने बाबा जी की अन्तिम यात्रा में भाग लिया और उसके बाद एक विशाल सत्संग कार्यक्रम में उनके परोपकारों को याद किया। इस श्रद्धांजलि समारोह में अनेक गणमान्य व्यक्तियों तथा सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। देश भर तथा अन्य कई देशों से शोक प्रस्ताव भी प्राप्त हुए जिनसे पता चलता है कि बाबा हरदेव ंिसह जी महाराज ने संसार के हर वर्ग पर कितना गहरा प्रभाव छोड़ा है।
श्रद्धांजलि समारोह में मिशन के प्रचारक तथा प्रबंधक महात्माओं के अलावा परिवारजनों ने भी बाबा जी को याद किया। भक्ति संगीत हो या विचार, सभी ने कहा कि बाबा जी ने संसार भर को ब्रह्मज्ञान के लिए प्रेरित किया। उन्हें विश्वास था कि जब सभी ईश्वर, को एक करके जान लेंगे तो मानव से मानव की दूरियाँ समाप्त हो जाएंगी और प्रेम, करूणा, सद्भाव, नम्रता, सहनशीलता तथा भाईचारे की भावनाएं भी सृदृढ़ हो जाएंगी। बाबा जी द्वारा समाज कल्याण के कार्यों का भी उल्लेख किया गया।
सत्गुरु माता सविन्दर जी का स्वागत करते हुए महात्माओं ने विश्वास व्यक्त किया कि वह अपने भक्तों का उसी तरह मार्ग दर्शन करती रहेंगी जिस तरह बाबा हरदेव सिंह जी ने अपने 36 वर्षों के सत्गुरु रूप में किया। सभी ने आशीर्वाद मांगा कि हम आपके सभी आदेशों-उपदेशों पर चल सकें।
समारोह में उपस्थित जन-समूह को आशीर्वाद प्रदान करते हुए सत्गुरु माता सविन्दर जी ने कहा कि सभी उनके साथ मिलकर मिशन को उन ऊँचाईयों तक पहुंचाने का प्रयास करें जहाँ बाबा जी इसे देखना चाहते थे।
सत्गुरु माता सविन्दर जी का जन्म युमनानगर के श्री मनमोहन सिंह जी तथा माता अमृत जी के परिवार में 12 जनवरी, 1957 को हुआ परन्तु उन्हें श्री गुरमुख सिंह जी तथा मदन माता जी ने गोद ले लिया और उनका पालन पोषण किया। सविन्दर जी को मसूरी के कान्वेन्ट ऑफ जीसस एण्ड मेरी स्कूल में 1966 में दाखिल किया गया जहाँ से उन्होने 1973 में सीनियर कैंब्रिज परीक्षा पास की। वह विद्यार्थी के रूप में अपनी कुशलता तथा परिश्रम के लिए जानी जाती थी और अपने विनम्र स्वभाव से सभी को प्रभावित करती।
तत्पश्चात् 1973 में उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली के दौलतराम कॉलेज में प्रवेश प्राप्त किया परन्तु संत निरंकारी मिशन के 28वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के एक दिन पहले, 14 नवम्बर, 1975 को उनका विवाह बाबा हरदेव सिंह जी के साथ हो गया।
जब 1980 में बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने संत निरंकारी मिशन के अध्यात्मिक गुरु की जि़म्मेदारी संभाली तो निरंकारी जगत ने सविन्दर जी को ’पूज्य माता सविन्दर जी’ के नाम से संबोधित करना आरम्भ कर दिया। तभी से माता जी ने बाबा जी के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर मिशन की सेवा आरम्भ कर दी। उन्होंने बाबा जी की हर कल्याण यात्रा, चाहे वह देश की हो या दूरदेशों की, माता जी उनके साथ रहे। उन्होंने बाबा जी के साथ प्रत्येक सत्संग कार्यक्रम तथा समागम में भाग लिया और मिशन की अन्य गतिविधियों में भी पूर्ण रूचि दिखाई। वह बाबा जी की व्यक्तिगत जरूरतों का विशेष ध्यान रखती और उनके आस-पास के वातावरण को भी स्वच्छ रखती। जब भी कोई व्यक्ति बाबा जी से मिलने और आशीर्वाद प्राप्त करने आते तो माता जी उनकी उसी प्रकार सेवा करती जैसे कोई कुशल गृहणी अपने सगे-संबंधियों तथा विशेष अतिथियों का ख्याल रखती हैं।
पूज्य माता सविन्दर जी युवाओं के लिए एक विशेष प्रेरणा स्रोत बनी रही। उन्हें प्रभावित करने का माता जी का अपना ही ढंग रहा। फलस्वरूप अनेक युवा मिशन के कार्यक्रमों में भाग लेने लगे और आज की दुनिया के प्रभाव से बच गए।
आज प्रात: बाबा हरदेव सिंह जी महाराज के फूल चुनने की रस्म अदा की गई जिसमें उनके परिवारजनों, सगे-संबंधियों, सन्त निरंकारी कार्यकारिणी समिति के सदस्यों तथाा अन्य प्रबंधक महात्माओं ने भाग लिया। सभी ने आदरपूर्वक निगम बोध घाट से बाबा जी की अस्थियां प्राप्त करके उन्हें यमुना में प्रवाहित किया। इसी प्रकार उनके दामाद अवनीत सेतिया की अस्थियां भी यमुना में प्रवाहित की गई।