एक घटना जिसने दिल्ली ही नहीं पूरे देश को हिला के रख दिया
ललित मोहन, रुद्रपुर. दिल्ली की सडकों पर दौड़ती बस में 16 दिसंबर 2012 की रात एक 23 साल की लडकी के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद, उसकी और उसके साथी की लोहे की छड़ से निर्ममता से पिटाई की गयी. इसके बाद दोनों को चलती बस से नीचे फेंक दिया गया. यह खबर छुप नहीं पायी. मीडिया के माध्यम से जब इस दुखद घटना की जानकारी देश को हुई तो पूरा देश दंग रह गया. हर शहर, हर गाँव में इस घटना का विरोध किया गया. हर जगह युवाओं ने सड़कों पर प्रदर्शन कर अपना गुस्सा ज़ाहिर किया.
संसद में भी इस घटना की चर्चा हुई, लेकिन वही पुराने अंदाज़ में. सांसदों ने इस घटना की निंदा की, और सभा के बाद मीडिया को अपने बयान भी दिए. नेतागणों ने सोचा होगा बलात्कार तो आम बात है इसमें क्या नया हुआ, ये तो होता रहता है. 2014 में नए चुनाव होने हैं उन पर ध्यान लगाया जाए. मगर अगले दो दिनों में इंडिया गेट और रायसीना हिल्स के सामने जब दिल्ली की जनता ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई, तो नेतागणों के माथे पर शिकन आनी शुरू हो गयी. बलात्कार की खबर आम होने के बाद 21 दिसंबर की शाम लगभग 350 लोग जब मोमबत्तियां जला कर इंडिया गेट पर एकत्रित हुए थे तो सब ने यही सोचा था कि यह विरोध यहीं तक सिमट कर रह जाएगा.
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22 दिसम्बर को शनिवार था और इस दिन सुबह से ही युवा, बच्चे, बूढ़े सभी अपना विरोध दर्ज करने इंडिया गेट और रायसीना हिल्स पर जुटने लगे. लोगों ने राष्ट्रपति से मिलने का प्रयास किया तो कुछ लोगों को उनसे मिलने जाने भी दिया गया. बाकी लोगों को बाहर ही रोका गया और शांतिपूर्वक विरोध करने के बावजूद उनके ऊपर पानी की तेज़ धार छोड़नी शुरू कर दी गयी. जब इंडिया गेट पर उपस्थित लोगों को इस बात का पता चला तो वह भी रायसीना हिल्स की तरफ आ गए और दिल्ली पुलिस व भारत सरकार के खिलाफ नारे लगाने लगे. विरोध कर रहे लोगों के हाथों में बैनर, तख्तियां आदि थीं, जिन पर ‘हमें न्याय चाहिए’, ‘बलात्कारियों को फांसी दो’ जैसे नारे लिखे हुए थे. भीड़ को बढ़ता देख पुलिस ने पानी की धार और तेज़ कर दी, और प्रदर्शनकारियों को पीछे धकेलना शुरू कर दिया.
लोगों पर जब दिसंबर की भारी ठण्ड में पानी छोड़ा गया तो लगने लगा था कि ठन्डे पानी की बौछारों के साथ लोगों का जोश भी ठंडा हो जाएगा और वह भीगे बदन के साथ वापस लौट जायेंगे और अगले दिन अपने घर से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं करेंगे. परन्तु अगले दिन इंडिया गेट के आस-पास के मेट्रो के कई स्टेशनों को बंद करने के बाद भी वहाँ पर लोगों का सैलाब आने से नहीं रुक पाया. परन्तु 23 दिसंबर के इस सैलाब में अब ऐसे लोग भी शामिल हो चुके थे जो शांतिपूर्ण विरोध के हिमायती नहीं थे. इसलिए उनके प्रदर्शन में उग्रता आ गयी और इस तरह एक शांतिपूर्ण आन्दोलन हिंसक हो गया. पुलिस और जनता के बीच जमकर पथराव हुआ. पुलिस ने महिला हो या पुरुष दोनों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा.
इतना ही नहीं मीडिया के लोगों को भी नहीं बक्शा गया.मीडिया कर्मी भी घायल हुए उनके सामान को भी भारी नुक्सान पहुँचा. पुलिस ने मीडिया के सीधे प्रसारण में बाधा पहुँचाने के इरादे से मीडिया की गाड़ियों में तेज़ पानी की धार मार कर उन्हें बर्बाद कर दिया. लेकिन इससे पुलिस के कारनामे छुप नहीं पाए, पूरा देश दिन भर हो रहे घमासान का सीधा प्रसारण देखता रहा. दूसरी तरफ अरविन्द केजरीवाल और बाबा रामदेव ने भी दिल्ली में विरोध प्रदर्शन कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई, परन्तु उनकी तरफ किसी ने अधिक ध्यान नहीं दिया.
रात को ‘प्राइम टाइम’ में लगभग सभी टेलीविज़न चैनलों पर इसी घटना की चर्चा होती रही. अलग-अलग पार्टियों के नेता अपने रटे-रटाये अंदाज़ में घटना की चर्चा करते रहे. सरकार ने भी हिंसा को गंभीरता से लेते हुए अगले दिन इंडिया गेट व उसके आस-पास के इलाके को छावनी में बदलने का निर्णय ले लिया. इस प्रकार सड़क मार्गों समेत मेट्रो के कई स्टेशनों को बंद कर दिया गया. प्रदर्शनकारी इंडिया गेट पर तो एकत्र नहीं हुए परन्तु कुछ लोगों ने जन्तर मंतर पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन जारी रखा.
इसी बीच इंडिया गेट पर प्रदर्शनकारियों को खदेड़ते समय घायल हुए एक 47 वर्षीय सिपाही, सुभाष चन्द्र तोमर जो तीन दिनों से राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती थे की म्रत्यु हो जाने की खबर सामने आयी. सभी ने इस घटना पर दुख व्यक्त किया. पिछले 6 वर्षों में कभी भी छुट्टी ना लेने वाले सिपाही के मारे जाने से भी यही सिद्ध हुआ; पुलिस हो या जनता गाज हमेशा निर्दोष पर ही गिरती है. हालांकि सिपाही के राजकीय सम्मान के साथ किये गए अंतिम संस्कार में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी शामिल हुई.
शाम होने के साथ दिल्ली पुलिस ने अपने सिपाही के आश्रितों की पूरी मदद करने की बात कही. दिल्ली पुलिस ने अपने एक दिन का वेतन मृतक कांस्टेबल के आश्रितों को देने की घोषणा के साथ उन्हें दी जाने वाली विभिन्न राशियों के बारे में मीडिया को बताया. मृतक के पुत्र को उनके स्थान पर नौकरी देने की बात भी कही गयी. साथ ही लोगों को मृतक शुभाष चन्द्र तोमर की पत्नी के नाम से चेक देने की अपील भी की गयी. आनन-फानन में पुलिसकर्मी की गैर इरादातन हत्या के आरोप में कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया गया. लेकिन इस सिपाही के सम्बन्धियों ने मीडिया के माध्यम से एक ऐसा सवाल किया जिसका जवाब किसी के पास नहीं हो सकता है. वह सवाल था- लोगों ने पीट पीट कर मार डाला, वह तो आदेश का पालन करने के लिए वहाँ पर थे, अब वो दुनिया में नहीं है, क्या कोई उन्हें हमें लौटा सकता है?
दिल्ली पुलिस ने सिपाही सुभाष चन्द्र को भीड़ के द्वारा पीटे जाने पर उनके शरीर में चोट आने की बात कही थी. परन्तु इस सिपाही के लडखड़ा कर ज़मीन पर गिर जाने पर उसकी मदद के लिए सामने आयी एक युवती और उसे अस्पताल ले कर जाने वाले एक युवक के मीडिया को दिए बयानों ने जनता की नाराजगी झेल रही पुलिस को और भी परेशानी में डाल दिया. बाद में इस घटना की कुछ तस्वीरों ने यह स्पष्ट कर दिया की सिपाही जब भागते हुए ज़मीन पर गिरे थे उस समय उन्हें किसी ने भी नहीं मारा था. एक अन्य व्यक्ति जो की पिछले कुछ समय में मीडिया का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए तमाशा करता रहा है, ने मृत सिपाही को भीड़ में उपस्थित आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के द्वारा मारे जाने का आरोप लगाया. जिसका बाद में अरविन्द केजरीवाल ने खंडन किया. एक निजी समाचार चैनल इंडिया टी वी ने बाद में इस नए चश्मदीद की हकीकत अपने दर्शकों के सामने रखी.
बलात्कार से पीड़ित लडकी का बयान लेने वाली अधिकारी ने दिल्ली पुलिस पर जांच को प्रभावित करने के आरोप लगाए थे. जिसकी शिकायत उन्होंने लिखित में की थी. इस शिकायत को दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने गृह मंत्री से भी किया था. जिसका जवाब देते हुए दिल्ली पुलिस ने प्रेस कांफ्रेंस के दौरान विवेक विहार की एस. डी. एम. के द्वारा लगाए आरोपों को गलत बताया. और कहा- ‘अगर उन्हें ठीक से जाँच नहीं करने दी गयी थी, तो उन्हें वापस चले जाना चाहिए था’
प्रधानमंत्री में घटना के सात दिन बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि- उनकी भी तीन बेटियाँ हैं. उनसे पहले गृहमंत्री भी अपनी बेटियों का ज़िक्र कर चुके थे. राष्ट्रपति महोदय की भी बेटियों के पिता हैं. उनकी बेटियों से बात करने मीडिया के लोग पहुँच गए वह भी खबरों में आ गयीं.
सरकार ने एक फास्ट ट्रैक कोर्ट बना कर इस प्रकार के मामलों की एक माह के भीतर इसकी सुनवाई करने की बात कही है. संसद के विशेष सत्र के प्रस्ताव व सर्वदलीय बहस की मांग को सरकार दवारा अस्वीकार कर दिया गया है. शीला दीक्षित ने कहा है की किसी अपराधी को पकड़ लेना ही काफी नहीं है, लोग खुद को सुरक्षित महसूस करें ऐसा माहौल बनना चाहिए.
फिल्म जगत में भी इस घटना की निंदा हुई. अमिताभ बच्चन ने कहा है वह महिलाओं को समाज का आधा हिस्सा मानते है और सबसे पीड़ित लडकी के जल्दी स्वास्थ्य होने की प्रार्थना करने का अनुरोध करते हैं.
फिलहाल सब शांत होता दिख रहा है. मेट्रो के बंद किये स्टेशनों को खोलने के आदेश दे दिए गए हैं. देखना है हफ्ते भर के जनता के गुस्से का उबाल यहीं शांत हो जाता है या फिर यह आगे भी जारी रहेगा. जिस तरह बिना किसी राजनीतिक पार्टी के बुलावे के आम जनता स्वयं एकजुट होकर संसद में बैठे सभी नेताओं को नगण्य समझ कर, सीधे राष्ट्रपति के द्वार पर गुहार लगाने पहुँच गयी थी उसे देख कर यही लगता है, की वह दिन दूर नहीं जब पीड़ित जनता खुद ही फैसला करने लगेगी, और नेता अपनी जान बचाते फिरेंगे.