‘बीते हुए लम्हों कि कसकसात तो होगी, ख्वाबों ही में हो चाहे मुलाक़ात तो होगी‘
ललित मोहन, मुंबई, 7 मार्च 2012. हिंदी फ़िल्मी संगीत के स्वर्ण युग के महान संगीतकार रवि ने 7 मार्च को अपनी देह को त्याग दिया. पुराने दौर की गिने-चुनी जीवित हस्तियों में से एक संगीतकार ‘रवि’ भी थे. उनका जन्म 3 मार्च 1926 में दिल्ली में हुआ था. वर्ष 1950 में, 24 वर्ष की आयु में, वह अपनी आँखों में, पार्श्व गायक बनने का सपना सजाकर मुंबई आये थे. उन्होंने ‘मेहंदी’, ‘घर संसार’, ‘नयी माँ’, ‘दो बदन’,’राखी’,’चौदहवीं का चाँद’, ‘मेहरबान’,’नयी रोशनी’, ‘नज़राना’,’घूँघट’, ‘भरोसा’, ‘नीलकमल’, ‘वचन’, ‘दस लाख’, ‘आदमी और इंसान’, ‘हमराज़’, ‘गुमराह’, ‘वक़्त’, ‘निकाह’, ‘एक महल हो सपनों का’, ‘दूर का राही’, ‘दिल्ली का ठग’, ‘प्यार किया तो डरना क्या’ आदि फिल्मों में संगीत दिया. 1961 में ‘घराना’ और 1965 में ‘खानदान’ फिल्म के लिए, उन्हें फ़िल्म फेअर पुरूस्कार से नवाजा गया था . उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से भी सम्मानित किया था.
उनके द्वारा रची गयी कुछ धुनों के बोल हैं-‘नीले गगन के तले धरती का प्यार पले’, ‘रहा गर्दिशों में हरदम’, ‘बाज़ी किसी ने प्यार की जीती या हार दी’, ‘आजा तुझको पुकारे मेरा प्यार’, ‘इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ’, ‘चौदहवीं का चाँद हो या आफताब हो’, ‘आज मेरे यार की शादी है’,’बाबुल की दुआएं लेती जा’, ‘औलाद वालो फूलो फलो’,’तेरी आँख का जो इशारा न होता तो बिस्मिल कभी दिल हमारा न होता’, ‘हम भी अगर बच्चे होते नाम हमारा होता बबलू-डबलू और दुनिया कहती हैप्पी बर्थ डे टू यू ‘, ‘चंदा मामा दूर के’,’आगे भी जाने न तू पीछे भी जाने न तू’ , ‘बड़ी देर भाई नंदलाला तेरी राह तके ब्रज बाला’, ‘जय रघुनन्दन जय सिया राम’, ‘तोरा मन दर्पण कहलाये’, ‘दिल में किसी के प्यार का जलया हुआ दिया’, ‘वो दिल कहाँ से लाऊँ तेरी याद जो भुला दे’, आदि.
बी आर चोपड़ा कैम्प के वह ‘इनहाउस’ संगीतकार रहे. बी आर चोपड़ा द्वारा बिर्मित और दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक ‘महाभारत’ में भी उन्होंने ही संगीत दिया था. स्वतंत्र रूप में संगीत देने से पूर्व वह संगीतकार-गायक हेमंत कुमार के सहायक रहे. हेमंत कुमार द्वारा संगीतनिर्देषित फ़िल्म ‘नागिन’ के मशहूर गीत में बीन की धुन रवि साहब ने ही बनायी थी. जिसे रिकोर्डिंग में उन्होंने ‘हारमोनियम’ से और कल्याणजी भाई ने ‘क्ले-वायलिन’ से बजाया था.
1986 के बाद हिन्दी फिल्मों के गिरते स्तर के कारण उन्होंने हिन्दी फिल्मों से हट कर मलयाली फिल्मों में संगीत देना शुरू किया, और वहाँ भी उन्होंने मलयालम गीतों का हिन्दी भाषा में अनुवाद करवा कर, उसे समझने के बाद ही उसकी धुन बनाई. उन्हें मलयाली फिल्मों में दिए गए संगीत के लिए राष्ट्रीय पुरूस्कार से भी नवाज़ा गया.
लंबे समय से बीमारी के चलते मुंबई के बोम्बे हॉस्पिटल में भर्ती थे. उनके जाने से हिन्दी फ़िल्म संगीत के चाहने वालों में दुःख की लहर फैल गयी है.रवि साहब ने फ़िल्म ‘ उस्तादों के उस्ताद’ के लिए एक गीत- ‘सौ बार जनम लेंगे, सौ बार फ़ना होंगे,ऐ जाने वफ़ा फिर भी हम तुम न जुदा होंगे‘ की धुन बनायी थी. उम्मीद है रवि साहब फिर से जनम लेंगे और फिर से खूबसूरत संगीत के रचना करेंगे. हमेशा गीत के भाव को समझ कर बाद में उसकी धुन बनाने वाले संगीतकार रवि शंकर शर्मा को भावभीनी श्रद्धांजलि !
ईश्वर ने चाहा तो रवि साहब के बारे में अभी और लिखूंगा. जो लिखा वह उनके जुदा होने की खबर थी. उनके संगीत की गाथा तो अभी कहनी बाकी है. जब भी किसी खबर को लिखता हूँ तो सोचता हूँ; चलो थोड़ी जानकारी भी जोड़ दूँ, ताकि सुधी पाठकों को कुछ अधिक मिल जाए. अभी खबरों के रूप में जो भी लिखा है ; वह सिर्फ़ ‘अल्पाहार’ था, ‘खुराक’ तो अभी बाकी है… बस ज़िंदगी रहनी चाहिए…
हमारी देश की माटी ने एक से बढ़ के एक संगीतकार दिए हैं..रवि साहब ने फिल्म संगीत में अपना अनूठा कौशल दिखा के अपनी जो मौजूदगी दर्ज कराई है, वह शब्दों के परे है..मगर वाकई शब्द कौशल से उनको श्रद्धांजलि देते हुए इतनी अच्छी गागर में सागर प्रस्तुति काबिले तारीफ़ है! ललित जी धन्यवाद!