एम.वी.एस. प्रसाद*
भारत में पोल्ट्री विकास एक पारिवारिक गतिविधि रहा है। हालांकि भारत सरकार की नीतियों और विेशेष अनुसंधान कार्यों तथा निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयासों से पिछले चार दशकों में वैज्ञानिक तरीके से पोल्ट्री उत्पादन में तेज़ी आई है।
पोल्ट्री क्षेत्र पूरी तरह से असंगठित खेती से आधुनिक तकनीकी कार्यक्रमों के साथ एक व्यावहारिक उत्पादन प्रणाली के रूप में उभरा है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लोगों को रोज़गार देने के अलावा पोल्ट्री क्षेत्र अनेक भूमिहीन और सीमांत किसानों के लिए अतिरिक्त आय कमाने का महत्वपूर्ण साधन है। विशेषकर गांवों में रह रहे गरीब व्यक्तियों के लिए यह पोष्टिक आहार के रूप में भी कार्य करता है।
पिछले कुछ वर्षों में पोल्ट्री क्षेत्र में अच्छी प्रगित हुई है। वर्तमान में करीब 66.45 बिलियन अंडों का उत्पादन होता है। पोल्टी मांस उत्पादन करीब 2.5 मिलियन टन है। वर्तमान में प्रति व्यक्ति अंडों की उपलब्धता प्रति वर्ष 55 अंडे है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) की रिपोर्ट के अनुसार 2011-12 में करीब 457.82 करोड़ रूपए के पोल्ट्री उत्पादों का निर्यात हुआ था।
केंद्रीय पोल्ट्रीय विकास संगठन
चार क्षेत्रों यानी चंडीगढ़, भुवनेशवर मुम्बई और हेस्सारघाटा में स्थित केंद्रीय पोल्ट्री विकास संगठनों (सीपीडीओ) ने पोल्ट्री के संदर्भ में सरकार की नीतियों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन संगठनों को विशेष रूप से उन्नत स्वदेशी मुर्गियों पर ध्यान देने के लिए कहा गया है जो प्रति वर्ष औसतन 180-200 अंडे देती हों और भोजन के उपभोग और वज़न बढ़ाने के लिहाज़ से उनका भोजन रूपांतरण अनुपात भी काफी बेहतर हो। इन संगठनों में किसानों को अपने तकनीकी कौशल में सुधार करने संबंधी भी शिक्षा दी जाती है। इसके अतिरिक्त हेस्सारघाटा देशभर में अपने संगठनों के कर्मियों को भी प्रशिक्षण दे रहा है। मुर्गे-मुर्गियों के अलावा बत्तख, पेरू, गुएना मुर्गी और जापानी बटेरा जैसी अन्य प्रजातियों पर ध्यान दिया जाता है। गुड़गांव में स्थित केंद्रीय पोल्ट्री प्रदर्शन परीक्षण केंद्र (सीपीपीटीसी) पर लेयर और ब्रोएलर प्रकारों के प्रदर्शन का परीक्षण करने की जिम्मेदारी है। यह केंद्र देश में उपलब्ध विभिन्न आनुवांशिक स्टॉक संबंधी बहुमूल्य जानकारी देता है।
नई योजना
पोल्ट्री क्षेत्र के समग्र विकास के लिए एक नई योजना शुरू की गई है। इसमें तीन घटक यानी ‘राज्य पोल्ट्री फार्मों को सहायता’, ‘ग्रामीण बैकयार्ड पोल्ट्री विकास’ और ‘पोल्ट्री एस्टेट’ हैं।
ग्रामीण बैकयार्ड पोल्ट्री विकासइस घटक के जरिए गरीबी रेखा से नीचे रह रहे व्यक्तियों को अतिरिक्त आय सृजित करने में समर्थ करने के साथ पोष्टक समर्थन देना है। 2012-13 के दौरान (दिसंबर 2012 तक) गरीबी रेखा से नीचे रह रहे करीब 95 हज़ार लाभार्थियों को लगभग 21 करोड़ रूपए की सहायता जारी की गई है।
राज्य पोल्ट्री फार्मों को सहायताइसका उद्देश्य मौजूदा राज्य पोल्ट्रीय फार्मों को मज़बूत बनाना है। 2013-13 में अब तक (आंशिक रूप से) 7 फार्मों को सहायता दी गई है। इसके साथ ही शुरूआत के बाद से सहायता प्रदान किए गए फार्मों की कुल संख्या 233 (दिसंबर 2012 तक) हो गई है।
पोल्ट्री एस्टेट
पोल्ट्री एस्टेट के गठन से उद्यमिता के कौशल प्रदान किए जाते हैं। यह मुख्य रूप से शिक्षित और बेरोज़गार युवाओं तथा छोटे किसानों को वैज्ञानिक और जैव-सुरक्षित क्लस्टर दृष्टिकोण के माध्यम से विभिन्न पोल्ट्री संबंधी गतिविधियों से लाभप्रद उद्यम के तौर पर कुछ आय का जरिया बनाना है
दो पोल्ट्री एस्टेटों को प्रायोगिक आधार पर चुना गया है। ब्रॉएलर खेती के लिए एक सिक्किम में है और लेयर खेती के लिए दूसरी ओडिशा में है। ढांचागत संबंधी सेवाएं स्थापित होने, लाभार्थियों का चयन और प्रशिक्षण होने के बाद पहले चरण का कार्य शुरू होगा
पोल्ट्री उद्यम पूंजी निधि
इस योजना का मुख्य उद्देश्य व्यक्तियों में पोल्ट्री की विभिन्न गतिविधियों से संबंधित उद्यमिता कौशल को प्रोत्साहित करना है। यह योजना अभी 2011-12 से पूंजी सब्सिडी माध्यम के जरिए चल रही है। इस योजना के तहत हायब्रिड लेयर और ब्रॉएलर पेाल्ट्री इकाइयों, तकनीकी उन्न्यन, जैसे घटक शामिल हैं। पोल्ट्रीय प्रजनन फार्मों की स्थापना, पोल्ट्री उत्पादों का विपणन, एग ग्रेडिंग, निर्यात क्षमता के लिए पैकेजिंग और भंडारण इस योजना का पहले से ही हिस्सा हैं। पीवीसीएफ के तहत 2012-13 में 506 इकाइयों को शामिल किया गया है।