भारतीय स्वदेशी पीठ : भारत की जनसख्या लगभग 125 करोड़ है और अगर एक व्यक्ति को आधा लीटर दूध की प्रतिदिन आवश्यकता हो तो लगभग 62.5 करोड़ लीटर दूध तो रोज चाहिए।
इसका सीधा सा मतलब है कि
62.5×30=1875 करोड़ लीटर प्रति माह और
1875×12=22,500 करोड़ लीटर दूध प्रति वर्ष।
आप समझ रहे हैं भारत में प्रति वर्ष लगभग 22,500,00,00,00,000 लीटर दूध की आवश्यकता है और यह जरूरत सिर्फ उस दूध की है जो पीया जा रहा है और उसे बाद दूध के बने उत्पाद जैसे दही, मिठाइयाँ,खोवा, पनीर, और घी
अकेले पतंजलि लगभग 10,000 टन घी का उत्पादन प्रति माह करती है इसके अलावा भारत में करीब 100 ब्रांड से ज्यादा हैं जो घी बेच रहे हैं।
इसके अलावा सैकड़ों कंपनियां दूध से चॉकलेट बना रही हैं तो साथियों, कभी आपने यह सोचा है कि इतना दूध आ कहाँ से रहा है कि
प्रतिवर्ष 22,500 करोड़ लीटर दूध पी भी जाते हैं, उसके बाद उसका इतना सारा सामान बना कर खा लेते हैं और भारत की दूध की कंपनियां जैसे अमूल, मदर डेरी, वीटा, सरस और न जाने लौं कौन सी कंपनियां दूध और उसके उत्पाद एक्सपोर्ट भी करती हैं और भारी मुनाफ़ा भी कमा रही हैं।
क्या आपने किसी डेरी कंपनी को घाटे के कारण बंद होते सुना है, शायद नही क्योंकि कोई भी कंपनी घाटे में है ही नहीं।
इसका कारण है ये सभी कंपनियां देशी दूध इकट्ठा करके उसे प्रोसेस करके उसे एक्सपोर्ट करती हैं और वहां से घटिया किस्म का दूध का पाउडर आदि इम्पोर्ट करके आपको सप्लाई करती हैं और भारी मुनाफ़ा भी कमाती हैं। अब इनके द्वारा पिलाये जाने वाले दूध से आप चाहे मरें या बीमार हों इनपर कोई फर्क नहीं पड़ता और न ही कोई कानूनी कार्यवाही हो सकती है।
आज के अखबार में एक खबर आई कि हरियाणा की वीटा डेरी ने अपने दूध के खरीद के दाम 50रू से घटा कर 47 रू कर दिए। अब आप खुद सोचें कि कोई भी कंपनी जो करोड़ो रू लगा कर एक डेरी खोलती है हजारों लोगो को बयकृ और अनुबंध पर रखती है वह 50रू लीटर का दूध खरीद कर उसे ट्रांसपोर्ट कर, पैक कर आपको 38रू में दे कर प्रति लीटर 12 रू और प्रोसेसिंग शुल्क और ट्रांसपोर्ट शुल्क खुद वहन करेगी।
एक सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति भी समझ सकता है कि वीटा डेरी जनकल्याण के लिए तो काम कर नहीं रही जो प्रतिवर्ष करोड़ों रू आपको दूध केनाम पर खर्च कर दे।
आप सामान्य सी बात समझे कि जब जब डॉलर के दाम में अंतर आएगा तब तब सारी दूध का व्यापार करने वाली कंपनियां अपने दामों में परिवर्तन करेंगी मतलब अगर ये सारी कंपनियां यहां का दूध यही बेच रही हैं तो डॉलर का इनपर फर्क नहीं पढ़ना चाहिए, जो कि पड़ता है।
सीधा सा मतलब है कि गंदा है पर धंधा है।
ये भारत के लचर क़ानून और यहां की नपुंसकों की राजनीति ही है जो हमारे घटिया और दोहरे मापदण्ड वाले नेता दूध की गुणवत्ता को उसके उत्पादन से तुलना करते हैं।
भारत में क्वालिटी ऑफ़ फ़ूड की जांच के नाम पर तमाम संस्थाएं हैं पर वहाँ भी निक्कमे और नाकारा लोग ही हैं जो यह सब होने देते हैं कारण चाहे उनका अज्ञान हो, मजबूरी हो या कमीशन का लालच, पर मरता तो आम आदमी ही है।
भारतवर्ष में विदेशी (बहुराष्ट्रीय)/ देशी कंपनी को चॉकलेट बनाने की खुली छूट देना कहां तक उचित है। हॉलैंड डेनमार्क स्वीडन और New Zealand में दूध का व्यापार 100% सहकारिता आधारित है।
इंग्लैंड में केवल मान्यता प्राप्त सहकारी संस्था से ही दूध खरीदा जा सकता है। अमेरिका और कनाडा में भी निजी कंपनियों को दूध के बाजार पर केवल 3% की अनुमति मिली है, और वह भी किसी सहकारिता संगठन की शर्तों पर। ऐसे में भारत को क्या जरूरत पड़ गई की विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनी के स्वागत में लाल कालीन बिछाए। जबकि मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था वाले देशों ने भी उंहें अनुमति नहीं दी है।
विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनी को अधिग्रहण के लिए आमंत्रित किया जा रहा है। दूध एक अनिवार्य पदार्थ है जबकि चीज, चॉकलेट विलासिता है। नेस्ले गैलेक्स आदि कंपनी पर दूध की मांग पूरी करने की बाध्यता नहीं है।
बच्चों को दूध उपलब्ध कराने के बजाय डेयरि पदार्थों को बनाने के लिए इकट्ठा किया जा रहा है। अब विदेशियों को ‘बीफ’ खाने के लिए ‘स्पेशल लाइसेंस’ देगी हरियाणा सरकार गत वर्ष गौ संरक्षण को लेकर कठोर कानून और भाषा का प्रयोग करने वाले हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर खट्टर अब विदेशी अतिथियों के लिए बीफ अर्थात गौ मांस परोसने को लेकर सकरात्मक रुख अपना रहे हैं l
हरियाणा सीएम खट्टर ने पिछले वर्ष अक्टूबर में यह कहकर विवाद पैदा कर दिया था कि अगर मुसलमान देश में रहना चाहते हैं तो उन्हें बीफ खाना छोड़ना होगा।
इसके बाद खट्टर सरकार ने गत वर्ष मार्च में हरियाणा में गोवंश संरक्षण और गोसंवर्धन विधेयक पारित कराया था। हरियाणा सरकार के इस विधेयक को नवंबर में राष्ट्रपति की ओर से भी स्वीकृति मिल गई थी।
गोवंश संरक्षण और गोसंवर्धन कानून के अनुसार राज्य में गोवंश के कत्ल करने पर 3 से 10 साल तक की कैद और एक लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है। इसके अलावा पशु वधशालाओ के लिए गायों का निर्यात करने वालों को भी तीन से 7 साल तक कैद की सजा और 30 से 70 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।
खट्टर सरकार के इस फैसले की सभी हिन्दू संगठनों ने प्रशंसा की थी व कई मुस्लिम संगठनो के द्वारा भी इस फैसले का स्वागत किया गया था l
लेकिन अब खट्टर सरकार ने विदेशी अतिथियों को गौ मांस के सेवन करने को लेकर विवादित बयान दिया हैl हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है कि वह सूबे में रह रहे विदेशी लोगों को बीफ खाने की अनुमति देने पर विचार कर सकते हैं।
मीडिया रिपोर्टो के अनुसार सीएम खट्टर का कहना है कि राज्य में बीफ के प्रतिबंध को लेकर लागू कड़े कानूनों में वह विदेशी लोगों के लिए विशेष तौर पर कुछ ढील दे सकते हैं। खट्टर ने कहा कि राज्य में गौ मांस पर प्रतिबन्ध सिर्फ हरियाणवी परंपरा को बनाए रखने के लिए है।
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, सीम खट्टर ने कहा कि, ”अगर हमें उन लोगों (विदेशियों) के लिए कोशिश करनी पड़े ताकि वे ऐसा कर सकें (बीफ खा सकें) तो निश्चित तौर पर हम ऐसा करेंगे। यह स्पेशल लाइसेंस हो सकता है।”
सीएम खट्टर ने जोर देकर कहा कि, “राज्य में बीफ बैन हरियाणा की परंपराओं को ध्यान में रखकर लगाया गया, हर किसी के खानपान का निजी तरीका होता ह, खासतौर पर वे जो बाहर से आए हैं, हमें उस बात का विरोध नहीं है।”
अब आप खुद समझें कि इस देश में सरकारें आपके लिए बनी हैं या विदेशियों के लिए।
अपना देश अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति अपनी भाषा अपना गौरव
वंदे मातरम्