केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के लिए केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा तय किये गये वैधानिक मानकों और उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों को लागू करने की जरूरत पर बल दिया है। विश्व स्तर पर शोरगुल कार्यस्थलों पर अक्षमता के सबसे बड़े कारण के तौर पर उभर कर सामने आया है।
स्वास्थ्य मंत्री ने आज उत्तर केरल के पेरिन्थलमना में भारतीय ओटोलर्यनोलॉजिस्ट संघ (एओआई) की केरल शाखा के 13वें वार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा, ‘‘पिछली सरकारों ने शोरगुल को महज एक विघ्न मानते हुए इस वास्तविक मुद्दे की अनदेखी की है। एक विशेष कानून में देरी दरअसल तेजी से औद्योगीकरण शुरू करने से पहले पर्याप्त पर्यावरण सुरक्षा मुहैया न कराने की बड़ी भूल का एक हिस्सा है।’’ केरल के स्वास्थ्य मंत्री श्री वी.एस. शिवकुमार भी इस समारोह में उपस्थित थे। 700 से भी ज्यादा विशेषज्ञों ने इसमें शिरकत की।
डॉ. हर्षवर्धन ने ध्वनि प्रदूषण को ‘आधुनिक प्लेग’ करार देते हुए सुरक्षित ध्वनि की राष्ट्रीय पहल (एनआईएसएस) की अगुवाई करने के लिए एओआई के केरल चैप्टर की सराहना की।
उन्होंने अपनी टिप्पणी में कहा, ‘‘मेरे जैसे कान-नाक-गले (ईएनटी) के विशेषज्ञों द्वारा ध्वनि प्रदूषण पर चुप्पी तोड़ा जाना स्वागत योग्य कदम है। राज्य के लोगों के बीच इस मसले को लेकर जो व्यापक जागरूकता है वह खासकर एओआई द्वारा पिछले कई वर्षों से चलाये जा रहे जागरूकता अभियान की बदौलत संभव हो पाया है।’’
डॉ. हर्षवर्धन ने घोषणा की कि वह एक उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समूह का गठन करने की तैयारी में हैं, जो इस बात की सिफारिश करेगा कि किस हद तक पर्यावरणीय ध्वनि का स्तर स्वीकार्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मंत्रालय इन सिफारिशों को नये कानून का आधार बनायेगा। मौजूदा समय में कानून लागू करने वालों के पास एकमात्र उपाय सीपीसीबी द्वारा तैयार किया गया ध्वनि प्रदूषण (नियमन एवं नियंत्रण) नियम, 2000 है। यह माना जाता है कि देश भर में स्थानीय पुलिस इन्हीं नियमों को लागू कर रही है। हालांकि, इनके बारे में बेहद कम जागरूकता है।
डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि शोरगुल से निरंतर प्रभावित होने का असर तब जाकर नजर आता है जब समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है। उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपने निष्कर्षों में बताया है कि ध्वनि प्रदूषण से सिरदर्द, दिल की बीमारियां, तनाव से जुड़ी समस्याएं, उच्च रक्तचाप और मनोवैज्ञानिक समस्याएं हो सकती हैं। इस वजह से सुनने की शक्ति कम हो जाना तो आरंभिक असर है, लेकिन मनोवैज्ञानिक असर दीर्घकालिक होते हैं जो आगे चलकर स्थाई जख्म का स्वरूप ले लेते हैं।