आयुर्वेद के प्रमेहा चैप्टर में किडनी संबंधी रोगों के ईलाज पर विस्तार चर्चा की गई है। इस बावत डॉ. रामनिवास पराशर बताते हैं कि प्रमेहा चैप्टर में कफ संबंधी 10, पीत संबंधी 6 एवं बात संबंधी 4 प्रकार के बीमारी एवं इसके ईलाज के बारे में बताया गया है। इस चैप्टर में किडनी संबंधी सभी दोषों के निवारण का उपाय बताया गया है। किडनी संबंधी बीमारी का बेहतर ईलाज आयुर्वेद में होने की बात को स्वीकारते हुए डॉ. रामनिवास पराशर का कहना है कि एलोपैथ बीमारी को डिले करता है यानी उसके होने की गति को धीमा करता है, उसके पास किडनी संबंधी बीमारियों का ईलाज नहीं है। डायलिसिस भी कोई ईलाज नहीं है बल्कि किडनी की सफाई का एक माध्यम है।
किडनी में 20 प्रतिशत से ज्यादा सिकुडऩ नहीं है तो उसे आयुर्वेद से रिकवर किया जा सकता है। भारतीय धरोहर से बात करते हुए वे आगे कहते हैं कि अगर पेसेंट डायलाइसिस पर है तो वो डायलाइसिस के साथ-साथ आयुर्वेदिक दवा भी ले सकता है। उनका कहना है कि एंथ्रोपैटिक फैक्टर के कारण एनिमिया यानी खुन की कमी होती है। डॉ. पराशर का मानना है कि अगर पैथोलोजिकल काम एलौपैथ का एवं दवा आयुर्वेद का चलाया जाए तो किडनी संबंधी बीमारियों का ईलाज बेहतर तरीके से किया जा सकता है। इस संबंध में वे चाहते हैं कि सरकार एक गाइडलाइन बनाएं जिसमें आयुर्वेद एवं एलोपैथ के कंबीनेशन से किडनी संबंधी बीमारियों का ईलाज कराया जाए।
साभार : भारतीय धरोहर
(डॉ. रामनिवास पराशर आयुर्वेद में एमडी एवं आयुर्वेदा एवं पंचकर्म में सलाहकार हैं)