आशुतोष कुमार सिंह : अभी तक हम एलोपैथिक दवाओं के साइडइफेक्ट यानी कि दुष्प्रभावों से ही परिचित थे, परंतु अब प्रमुख बीमारियों का इलाज करने में उसकी अक्षमता भी सामने आने लगी है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति एलोपैथी ने आयुर्वेद का लोहा मान लिया है कि जिस मर्ज का इलाज एलोपैथी में नहीं है, वह आयुर्वेद में है। कम-से-कम किडनी की बीमारियों के इलाज में यह साबित हो रहा है। आयुर्वेदिक दवा न सिर्फ किडनी की बीमारी को बढऩे से रोकती है बल्कि खराब किडनी को काफी हद तक ठीक भी कर सकती है। यही कारण है कि किडनी के उपचार में आयुर्वेद की प्रभावी दवाओं के इस्तेमाल की पैरवी अब एलोपैथी के डॉक्टर भी करने लगे हैं।
पिछले दिनों सोसाइटी ऑफ रिनल न्यूट्रिशियन एंड मेटाबोलिज्म (एसआरएनएमसी) के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में किडनी के ईलाज में आयुर्वेद को शामिल करने का मुद्दा छाया रहा। इस सम्मेलन में डॉक्टरों ने कहा कि एलोपैथ में किडनी का कोई प्रभावी ईलाज नहीं है। एलोपैथ की दवाइयां किडनी की बीमारी को कुछ समय तक रोक सकती हैं लेकिन उसका निदान नहीं कर सकती। सम्मेलन में खासतौर से आयुर्वेदिक दवा नीरी केएफटी की किडनी की बीमारी को बढऩे से रोकने और खराब किडनी को काफी हद तक ठीक करने में मिल रही सफलता पर विशेष चर्चा हुई। सम्मेलन में भाग ले रहे डॉक्टरों का कहना था कि ऐलोपैथ में किडनी का का कई प्रभावी इलाज नहीं है। अंतत: मामला डायलसिस या फिर किडनी के ट्रांसप्लांट पर आकर टिक जाता है। लेकिन आयुर्वेद का पुनर्नवा, जिसका इस्तेमाल नीरी केएफटी में किया जाता है, किडनी की खराब कोशिकाओं की ठीक करने में सक्षम है। इस आयुर्वेदिक दवा में 15 जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल होता है।
दिल्ली के प्रसिद्ध गंगाराम अस्पताल के किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ. मनीष मलिक ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि किडनी के बढ़ते मरीजों की संख्या देखते हुए इसके कारगर इलाज का तरीका ढूंढना जरूरी है। ऐसे में डॉक्टरों को एलोपैथी चिकित्सा पद्धति के ढांचे से बाहर निकलकर आयुर्वेद जैसे वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति में मौजूद विकल्पों को सहजता से अपनाना चाहिए। किडनी के मरीजों को यदि शुरू में ही आयुर्वेदिक दवाइयां दे दी जाएं तो उनके किडनी को और ज्यादा खराब होने से रोका जा सकता है। इस सेमिनार में स्वीडन और हांगकांग समेत कई देशों के चिकित्सक मौजूद थे।
साभार : भारतीय धरोहर