रवि जैन , भारत चेतना मंच : जो शख़्स किसी बात को रुक – रुक कर बोले या बोलते समय अचानक आवाज़ ना निकले उस स्थिति को हकलाहट कहते हैं। यह स्थिति बात को शुरू करने से पहले या बीच में पैदा हो सकती है। आम बोलचाल की भाषा में हम इसे अटक-अटक कर बोलना भी कहते हैं ।
हकलाहट के जीवन की तुलना उस शख़्स के जीवन के साथ कर सकते हैं जो कि एक अन्धेरे कमरे में बंद रहता है। जो चाह कर भी कमरे से बाहर नहीं निकल सकता। जिसकी सब इच्छाएं सब चाहतें उस कमरे में दफ़न रहती हैं। वह सब कुछ कर सकता है पर उस कमरे में से बाहर नहीं निकल सकता।
वह व्यक्ति उस कमरे की खिड़की से बाहर की दुनिया देख सकता है। लेकिन कभी उस दुनिया में शामिल नहीं हो सकता। वह एक घुटन भरा जीवन व्यतीत कर रहा होता है। उसकी सब इच्छाएं सब मनोरथ उसी कमरे तक सीमित रहते हैं। वह अकेला पड़ जाता है और उसका कोई भी ऐसा मित्र नहीं होता जो कि उसकी इन
इच्छाओं यां उसको समझ सके।
यां फिर हम इसकी तुलना एक ऐसे योद्धा से कर सकते हैं जो कि जिन्दगी के युद्धस्थल में अपने दुश्मन रूपी दोस्तों से घिरा होता है। और उनके द्वारा किए गए कटाक्ष भरे हमलों को अकेला सहता हुआ जीवन व्यतीत करता है। वह जीवन में बहुत कुछ करने की काबलियत रखता है पर हकलाहट कि वजह से कुछ ना कर पाने के कारण अपने आप को हारा हुआ महसूस करता है। वह एक अच्छे व्यक्तित्व का मालिक होते हुए भी लोगों के लिये एक मजाक का पात्र बन कर रह जाता है।
संसार में हकलाहट के विषय पर अलग – अलग विद्वानों का अलग – अलग मत है। एक मत यह कहता है कि हकलाहट एक दिमागी समस्या है। मतलब यह है कि हकलाहट दिमाग में पैदा हुई किसी कमी की वजह से उत्पन्न होती है। चूंकि मैं यह बात पहले भी बता चुका हूँ और यह सपष्ट भी है कि हकलाने वाले व्यक्ति दिमागी रूप से काफी परिपक्व होता है मतलब की वह एक तेज़ दिमाग का मालिक होता है
वहीं हकलाहट के विषय पर दूसरा मत यह कहता है कि यह एक बुरी आदत है जो की समय के साथ – साथ बड़ी और मजबूत होती जाती है। जो कि काफी हद तक सही भी है। पर मैं कहता हूँ कि अगर यह एक बुरी आदत है तब यह हर समय स्थिर क्यों नहीं रहती मतलब किसी गाने को गाते समय यां अपने किसी चीर – परिचित से बातचीत करते समय यह समस्या उत्पन्न क्यों नही होती।
हकलाहट के विषय पर एक मत यह भी है कि यह एक जैनेटिक ( genetic ) समस्या है। मेरे कहने का यह तात्पर्य है कि मोटापे और मधुमेह रोग की तरंह हकलाहट कि समस्या भी पीड़ित व्यक्ति को उसके माता – पिता यां रिश्तेदारों से विरासत में मिलती है। लेकिन मेरे पास ऐसे कई उदाहरण हैं अथवा हकलाहट की समस्या से ग्रस्त
ऐसे कई व्यक्तियों को जानता हूँ जो कि इस मत को भी नकारते हैं।
एक मत यह भी कहता है कि यह समस्या किसी बीमारी अथवा किसी चोट की वजह से उत्पन्न होती है। परंतु स्पष्ट रूप से इस मत को साबित करना कठिन है ।परंतु यह स्पष्ट है कि यह समस्या बचपन में ज्यादा डांट – फटकार और हकलाहट की समस्या से ग्रस्त किसी व्यक्ति की नक़ल करने से यह समस्या उत्पन्न हो सकती है।
1 हकलाहट की समस्या क्यों पैदा होती है
किसी व्यक्ति में हकलाहट की समस्या क्यों उत्पन्न होती है इस बात पर काफी समय
से बहस छिड़ी हुई है। कोई इसे मानसिक समस्या कहता है और कोई इसे माता – पिता या
अपने किसी रिश्तेदार से विरासत में मिली बीमारी कहते हैं। और नीम – हकीम ,
डाक्टरों के पास इसका इलाज ढूंढते हैं । कुछ भोले भाले लोग इसे दैवीय प्रकोप
मान कर औझाओं और तात्रिंको के पास अपना समय और पैसे बरबाद करते हैं।
अपने निजी अनुभव के आधार पर मैं आपको हकलाहट होने के पीछे कुछ कारणों का
उल्लेख करने का प्रयत्न करता हूँ।
इसका एक कारण यह है कि जब हम किसी बात को बोलते हैं तो हम साथ – साथ सांस लेते
हैं। यानि के हम हर 15 यां 20 सैकेण्ड के अंतराल में अपनी एक बात यां एक लाइन
एक ही सांस में बोलते हैं । इस तथ्य को आसान भाषा में हम अगर बोलें तो मैं यह
कहना चाहता हूँ कि हम बातचीत करते हुए हर 15 से 20 सैकेण्ड के अंतराल में सांस
लेते हैं । सामान्य व्यक्ति को ऐसा करने में किसी प्रकार कि कोई दिक्कत पेश
नहीं आती। परन्तु एक हकलाने वाले व्यक्ति को 15 से 20 सैकेण्ड के इस समय के
बीच तालमेल बनाना कठिन हो जाता है। और यही तालमेल उस हकलाने वाले व्यक्ति की
परेशानी का कारण बनती है।
अगर हम एक सामान्य व्यक्ति की तुलना एक हकलाहट की समस्या से ग्रस्त किसी
व्यक्ति से करें तो हम हकलाहट के सही कारणों का पता लगा सकते हैं । यह बात
प्रमाणित की जा चुकी है कि एक हकलाने वाले व्यक्ति का दिमाग सामान्य व्यक्ति
के दिमाग कि तुलना में काफी तेज़ होता है । अगर हम गौर करेंगे तो पायेंगे कि
एक बच्चा जो कि हकलाहट की समस्या से ग्रस्त है । उसकी बाक़ी सभी गतिविधियां
जैसे पढ़ना – लिखना , कम्प्यूटर चलाना , और विडियो गेम खेलना आदि सामान्य
बच्चों की तुलना में बेहतर ढंग से कर लेते हैं।
परन्तु इसका दूसरा पहलू देखें तो जानेंगे कि यही तेज़ दिमाग उसकी हकलाहट का
मुख्य कारण बनता है । एक सामान्य व्यक्ति एक समय में एक ही बात को सोचता है और
बोलता है। इसके विपरीत हकलाने वाले व्यक्ति के दिमाग में एक समय में कई बातें
चल रही होती है । और इससे पहले वह हकलाना शुरू कर दे वह अपनी बात को जल्दबाजी
में बोलने लगता है। यही जल्दबाजी हकलाहट का कारण बन जाती है।
2 हकलाहट की समस्या कब पैदा होती है ।
यह कहना मुश्किल है कि हकलाहट की समस्या कब पैदा होती है । चूकीं हकलाहट की
समस्या कोई बीमारी नहीं है । यह समस्या डर और भय की मिलाजुली परिस्थिति में
पैदा होती है । जब कोई व्यक्ति कोई बात करते वक़्त हकलाने लगता है तो उसकी बात
को सुनने वाला शख़्स उसकी बातों की तरफ़ ध्यान ना देते हूए उसके हकलाने के
कारण उस पर हँसने लगता है । उसकी यह हँसी हकलाने वाले को उसकी बेइज़्ज़ती का
अहसास करवाती है जो की उस व्यक्ति के डर का कारण बन जाती है । यही डर उस
व्यक्ति की सबसे बड़ी समस्या यानि हकलाहट का कारण बन जाती है ।
भविष्य में जब भी कभी उस व्यक्ति यह डर सताएगा तब उसे हकलाहट की समस्या का
सामना करना पड़ेगा ।
हकलाहट की समस्या पर काबू पाना और एक जगंली घोड़े को अपने वश में करना दोनों
एक समान है। कहने का तात्पर्य यह है कि एक जगंली घोड़े को अपने वश में करने के
लिये या उस पर नियंत्रण करने के लिये समय लगता है। और एक बार इसको अपने वश में
कर लेने के बाद वह आपके नियंत्रण में आ जाता है। फिर ज़रूरत होती है उस
नियंत्रण को बरकरार रखने की ताकि वह फिर से आपके नियंत्रण के बाहर ना हो जाए।
इसके लिए आपको समय – समय ध्यान रखना पड़ता है।
हकलाहट की समस्या भी कुछ इसी प्रकार है। कुछ विशेष प्रकार के व्यायाम और उचित
देख-रेख से यह समस्या काफी हद तक नियंत्रण में आ जाती है। परन्तु इसका यह अर्थ
नहीं है कि यह समस्या भविष्य में सदा के लिये समाप्त हो गई है। कुछ ख़ास कारण
जैसे चितिंत रहने , अत्यधिक क्रोधित होने यां समय – समय पर हकलाहट के प्रति
जागरूक ना होने से यह समस्या फिर उभर कर सामने आ जाती है।
3 हकलाहट की समस्या कहाँ सबसे ज़्यादा या सबसे कम पैदा होती है ।
हकलाहट की समस्या का सीधा संबंध डर और आत्मविश्वास से जुड़ा है । जिन
परिस्थितियों में डर की सीमा ज़्यादा और आत्मविश्वास में कमी होगी वहाँ हकलाहट
की समस्या सबसे ज़्यादा होगी और इसके विपरीत जिन परिस्थितियों में डर की सीमा
कम और आत्मविश्वास अधिक होगा वहाँ हकलाहट की समस्या बहूत ही कम होगी ।
उदाहरण के तौर पर अगर हकलाहट की समस्या से पीड़ित व्यक्ति से कोई अजनबी
व्यक्ति कोई बात करने लगेगा तो उसे यह डर रहेगी की अगर वह उस व्यक्ति के सामने
बात करते समय हकलाने लग गया तो सामने वाला उसकी इस स्थिती का मज़ाक़ बना लेगा
। जिसकी वजह से सामान्य की अपेक्षा और भी ज़्यादा हकलाने लग जाएगा ।
और ठीक इसके विपरीत जब वह अपने परिचित लोगों या अपने पारिवारिक सदस्यों के
सामने कुछ बोलने लगेगा तो उसे अपनी समस्या का मज़ाक़ बनाने का डर नहीं रहेगा
और वह बहूत ही कम यां बिलकुल नहीं हकलाएगा ।
4 हकलाहट की समस्या को कैसे क़ाबू में किया जाए ।
हकलाहट की समस्या को क़ाबू में करने के लिए सबसे पहले उस व्यक्ति में यह पता
लगाना होता है की उसकी हकलाहट की समस्या हकलाहट की कौन सी क़िस्म से संबंधित
है । जो कि इस बात पर निर्भर करती है कि यह शुरू कैसे हुई यां हकलाहट के शुरू
होने के पीछे क्या कारण था।
मैं हकलाहट की समस्या को मैं मुख्यता 2 किस्मों में बाँटता हूँ।
1 हकलाहट की पहली मुख्य किस्म को मैं जन्मजात हकलाहट का नाम देता हूँ । जो कि
आमतौर पर हमें देखने को मिलती है।
१ इस तरह कि हकलाहट 4 से 8 वर्ष की आयु में शुरू होती है।
२ इस तरह की हकलाहट से ग्रस्त बच्चे का दिमाग काफ़ी तेज़ होता है।
३ पहले शब्द में समस्या ज्यादातर इस श्रेणी में पाई जाती है।
४ यह अकसर तेज बोलते हैं।
५ बच्चे स्वभाविक तौर पर शर्मीले होते हैं
६ उनका सोचने का मादा यानी आई क्यू लेवल काफी ऊंचा होता है। पढ़ाई में सबसे
आगे होते हैं। आदि
2 नकल करने से हकलाहट की समस्या का होना।
इस तरह की हकलाहट की समस्या उन लोगों में पाई जाती है जो किसी हकलाहट से
ग्रस्त व्यक्ति की नक़ल करते हैं। यह पहले तो बिलकुल ठीक बोलते हैं पर जब किसी
हकलाहट से ग्रस्त व्यक्ति की नक़ल ज़्यादा देर तक करते हैं। तब उन्हें भी यह
समस्या शुरू हो जाती है। इसके मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं।
१ यह समस्या किसी भी आयु में शुरू हो सकती है।
२ इस समस्या से ग्रस्त व्यक्ति डरा हुआ महसूस करता है।
३ यह समाज से अलग थलग रहने की कोशिश करता रहता है।
५ बोलते समय अचानक ही रुक जाता है। आदि
हकलाहट की क़िस्म का पता लगाने के बाद उस समस्या को क़ाबू में करने संबंधित
कार्य करने चाहिए । जो की निम्नलिखित हैं ।
जन्मजात हकलाहट की समस्या को क़ाबू करने के लिए
१ हकलाहट की समस्या को क़ाबू में करने के लिए व्यक्ति का सकारात्मक सोच का
होना ज़रूरी है ।
२ हकलाहट की समस्या से संबंधित व्यक्ति को हर रोज़ सुबह के समय श्वास से
संबंधित व्यायाम करने चाहीए ।
३ संबंधी व्यक्ति को किताबें बोल-बोल कर पढ़नी चाहीए । इन किताबों को धीमी गति
और ऊँची आवाज़ में पढ़ना चाहिए ।
४ ख़ाली समय में कोई ना कोई गीत गुनगुनाने से इस समस्या पर काफ़ी हद तक क़ाबू
में किया जा सकता है ।
५ अगर किसी शब्द को बोलने में कठिनाई हो रही है तो ख़ाली समय में उस शब्द को
बार बार बोलने का प्रयास करें ।
६ सदैव ख़ुश और तनावमुक्त रहने की कोशिश करें क्योंकि यह समस्या उदासी और तनाव
की स्थिती में ज़्यादा उभर कर सामने आती है ।
नक़ल करने के कारण हूई हकलाहट की समस्या को क़ाबू करने के लिए
किसी हकलाहट की समस्या से पीड़ित व्यक्ति की नक़ल करने के कारण उस व्यक्ति में
पैदा हूई हकलाहट की समस्या को क़ाबू करना जन्मजात हकलाहट की समस्या की अपेक्षा
थोड़ा कठिन होता है । क्योंकि इस प्रकार की समस्या से पीड़ित व्यक्ति को पहले
तो ख़ुद को ही पता नहीं होता की वह किसी नक़ल करते हूए ख़ुद इस समस्या का
शिकार हो गया है और जब तक उसे इस बात का पता चलता है तब तक बहूत देर हो जाती
है ।
नक़ल करने से पैदा हूई हकलाहट की समस्या को क़ाबू में करना ज़रा मुश्किल होता
है क्योंकि इस प्रकार से पैदा हूई समस्या में पीड़ित व्यक्ति अपना आत्मविश्वास
खो देता है और किसी से बात करने से डरने लगता है । उसका यह डर और आत्मविश्वास
की कमी उसकी हकलाहट की समस्या को और बढ़ा देती है । इस प्रकार की समस्या से
पीड़ित व्यक्ति सहमा सहमा सा रहता है । इसका कारण यह है की पहले ते उस व्यक्ति
को खुद को ही पता नहीं होता की वह हकलाने की नक़ल करते हूए ख़ुद इस समस्या का
शिकार हो गया है । चूकीं उसके मुताबिक़ वह सही बोल सकता है और उसे हकलाहट जैसी
कोई समस्या नहीं है परन्तु जब वह कभी बोलते समय रुक जाता है यां यूँ कह लें की
हकलाने लगता है तो वह अपनी इस परिस्थिति पर हैरान परेशान हो जाता है । इससे
उसका आत्मविश्वास कम होने लगता है ।
अपनी इस समस्या से निजात पाने के लिए सबसे पहले उसे अपने खोए हूए आत्मविश्वास
को वापिस पाना होता है । इसके लिए संबंधीत व्यक्ति को किसी अजनबी जगह में जाकर
अजनबीयों से बातचीत करना चाहीए । यानि इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति को किसी
ऐसे शहर , गाँव या क़स्बे में जाकर वहाँ के दुकानदारों से ख़रीदोफरोत करने के
बहाने उनसे बातचीत करनी चाहीए । इससे यह होगा कि अगर कहीं वह व्यक्ति उन
दुकानदारों से बातचीत करते समस्या रुक जाता है यां हकलाने लग जाता है तो उसे
अपनी हकलाहट की समस्या को कारण हूई बेइज़्ज़ती की चितां नहीं होगी और ना उसे
किसी बात का डर होगा क्योंकी वह दुकानदार जिनके सामने वह हकला रहा है वह कौन
सा उसे जानते हैं और ना ही कभी भविष्य में उनसे मुलाक़ात होनी है ।
इस प्रकार संबंधीत व्यक्ति का डर समाप्त हो जाता है और धीरे-धीरे उसका खोया
हुआ आत्मविश्वास भी लौट आता है । परंतु हकलाहट की समस्या को काबू में करना और
एक जगंली घोड़े को अपने वश मे करना दोनों एक समान है। यह काम मुश्किल ज़रूर है
परन्तु नामुमकिन नहीं । जिस प्रकार घोड़े को अपने वश में करने के लिये समय ,
धैर्य और विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार हकलाहट पर काबू
पाने के लिये इन तीनों चीजों की आवश्यकता होती है।
हकलाहट की समस्या को क़ाबू में करने के लिये समय की आवश्यकता होती है। यह आप
के उपर निर्भर करता है की आप कितना समय हकलाहट की समस्या पर काबू पाने के
लिये खर्च करते हैं। अगर इस बात को एक उदाहरण के द्वारा बताया जाए तो यह ऐसा
है जैसे आपने नया – नया साइकिल को चलाना सीखना हो। इसकी समय सीमा इस बात पर
निर्भर करती है कि आप जितनी रूचि और ईमानदारी साइकिल को चलाना सीखने में
दिखाते हैं उतनी ही जल्दी आप साइकिल चलाना सीख जाते हैं।
इसके लिए आपको धैर्य रखने कि आवश्यकता होती है कई बार हकलाहट को काबू पाने के
लिये किये गए आपके प्रयास में समय अधिक लग जाता है। और आप इससे ऊब कर यां
निराश होकर अपने प्रयास को बीच में ही छोड़ देते हैं। जो कि भविष्य में आपके
द्वारा कि गई एक गलती साबित होती है ।
हकलाहट पर काबू पाने के लिये विशेष प्रकार के प्रशिक्षण कि आवश्यकता होती है।
जिसके लिए आपको विशेष तौर पर प्रशिक्षित व्यक्तियों यां स्पिच थैरेपि से
जुड़े डाक्टरों कि आवश्यकता होती है। कुछ लोग जिनका मनोरथ सिर्फ धन कमाना होता
है। वह आपको बेतुकी सी दवाएं और बे-ढगीं और बिना किसी अर्थ की तकनीक से आपकी
हकलाहट की समस्या को हल करने का दावा करते हैं। जिससे निश्चित ही आपको कोई लाभ
प्राप्त नहीं होता और आपका इस सब से विश्वास उठ जाता है । अतं में आप हकलाहट
को एक लाइलाज बीमारी समझ कर इस पर भविष्य में नियंत्रण करने के लिये कोई भी
प्रयास नहीं करते।
हकलाहट किसी घर की दीवार पर लगे पीपल के वृक्ष की तरह होती है। क्योंकि पीपल
का पौधा जब किसी दीवार पर लग जाता है। तब उसे पूरी तरह से नष्ट करना थोड़ा
मुश्किल होता है। इसे जितनी बार काटने की कोशिश करेंगे यह उतनी बार ही वापिस
उग आएगा। इसे पूरी तरह से नष्ट करने के लिये बार बार काटना पड़ेगा। मेरा कहने
का यह मतलब है की बार बार यह धयान रखना पड़ेगा कि यह फिर से ना उग जाए ।
किसी कारणवश अगर हमने ध्यान रखना बदं कर दिया और यह पौधे से पेड़ बनाना शुरू
कर देगा और साथ साथ घर की दीवार को भी नुकसान पहुंचाता जाएगा। इसीलिए अगर इस
तरहं के नुकसान से अपने घर को बचाना है तो समय समय पर पीपल के पौधे को काटते
छाटँते रहें । यह ना हो कि यह एक दिन इतना बढ़ जाए कि आपके पूरे घर को ही
नुकसान पहुंचाना शुरू कर दे ।
ठीक इसी प्रकार हकलाहट को भी उसकी शुरूआत में ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए।
उसे ( हकलाहट ) इतना नहीं बड़ने देना चाहिए कि यह आपके जीवन को नुकसान
पहुंचाना शुरू कर दे । किसी कारणवश अगर यह बढ़ गयी है तो समय। समय पर इसे
नियमित व्यायाम से ठीक करने की कोशिश करते रहें जो कि थोड़ी मुश्किल जरूर है
लेकिन नामुमकिन नहीं। यह ना हो कि एक दिन हकलाहट इतनी बढ़ जाए कि यह आपकी घर
दीवार की तरहं आपके जीवन को भी नुकसान पहुंचाना शुरू कर दे ।
अपना देश अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति अपनी भाषा अपना गौरव
वंदे मातरम्