करानल में ग्रामीण वासियों ने भारी जलूस निकाला जिसमे हर जाती के लोगो ने भाग लिया , सब की एक ही आवाज थी माँ पद्मावती हर हिन्दू का सम्मान व स्वाभिमान हे। इस जलूस में बीजेपी किसान मोर्चा मण्डल अध्य्क्ष विनोद राणा ,हिन्दू जागरण मंच जिला अध्यक्ष बिजेन्द्र राणा, भूत पूर्व सरपंच बलविंदर , विशाल राणा,नित्रपाल, राकेश राणा ,योगेश ,महिपाल लांगयांन बीजेपी sc मोर्चा उपाध्यक्ष, नरेंद्र राणा युवा मोर्चा मंडल बीजेपी,नगर नगरपालिका मार्किट कमेटी के चेयरमैन संजय राणा बीजेपी,मास्टर रणसिंह खण्ड उपाध्यक्ष,व समस्त हिन्दू युवाओं ने दी चेतावनी दी की ‘पद्मावती को खिलजी की प्रेमिका बताना बर्दाश्त से बाहर हे । हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए मात्र केवल क्षत्रियों को नही अपितु हम सब हिंदुवो को आगे आना होगा हिंदुत्व विरोधी शक्ति समाज को तोड़ने पर पूरी ताकत से लगी हैं रोजाना कोई न कोई मुद्दा जातिगत बना कर हमें अलग किया जाता रहा हैं।जागे ओर जगाये:- विनोद राणा गोन्दर
संजय लीला भंसाली की फ़िल्म ‘पद्मावती’ रिलीज से पहले विवादों में है. फ़िल्म के विरोध में प्रदर्शनों का दौर जारी है. इसकी रिलीज पर रोक लगाने के लिए विभिन्न राज्यों में लोग सड़कों पर उतर रहे हैं.
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि फिल्म में महारानी पद्मवाती को लेकर ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने कोशिश की जा रही है. रविवार को गांधीनगर में राजपूत समाज की बड़ी सभा बुलाई गई, जिसमें फ़िल्म पर बैन की मांग की गई.
इधर, पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने भी फ़िल्म का विरोध किया है. उन्होंने फ़िल्म में ऐतिहासिक तथ्यों से कथित तौर पर छेड़छाड़ करने पर निर्माताओं को माफ़ी मांगने को कहा है. गांधीनगर की सभा राजपूत करणी सेना की तरफ़ से बुलाई गई थी. संस्थान के संस्थापक लोकेंद्र सिंह कालवी ने कहा है कि इस फ़िल्म को राजपूत समाज किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेगा.
कालवी ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, “अगर 16 हजार स्त्रियों के साथ जौहर करने वाली पद्मवती को अलाउद्दीन खिलजी की प्रेमिका दर्शाया जाएगा, ये बर्दाश्त कैसे किया जाएगा?” पद्मावती में राजपूत मर्यादा का पूरा ख़्याल रखा है: भंसाली
गांधीनगर में करणी सेना की सभा में जुटे राजपूत समाज के लोग उन्होंने आगे कहा, “आज पूरे देश फ़िल्म को लेकर आक्रोश है. लोग फ़िल्म पर बैन लगाने की मांग कर रहे हैं. हमारे बुज़ुर्गों के ख़ून से इतिहास लिखा गया है. आज उसपर कालिख पोतने का प्रयास नहीं चलेगा.”
करणी सेना इस महीने उत्तर प्रदेश, बिहार सहित अन्य राज्यों में फ़िल्म के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करेगी. सिर्फ राजपूत समाज ही नहीं, राजनीतिक पार्टियां के प्रवक्ता भी अपने बयानों में फ़िल्म पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं. ‘खिलजी था क्रूर व बलात्कारी शासक’
भारतीय जनता पार्टी भी रानी पद्मावती को हिंदू और राजपूत समाज के स्वाभिमान का प्रतीक और अलाउद्दीन खिलजी को क्रूर शासक बता रही है. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने बीबीसी से कहा, “फिल्म पद्मावती इतिहास आधारित फिल्म है. इसकी मुख्य किरदार हैं रानी पद्मावती. वो देश की राजपूत और हिंदू समाज में स्वाभिमान का प्रतीक हैं.”
जीवीएल नरसिम्हा राव फ़िल्म की रिलीज से पहले स्पेशल स्क्रीनिंग चाहते हैं. वो कहते हैं, “फ़िल्म में अलाउद्दीन खिलजी एक मुख्य किरदार हैं, जो एक अक्रांता हैं. सबसे क्रूर और बर्बरता करने वालों शासकों में अलाउद्दीन खिलजी का नाम शामिल है.”
उन्होंने आगे कहा, “हमलोगों पर एक हज़ार साल तक विदेशियों ने शासन किया है. यह बर्बर शासन का दौर रहा. उन सभी में हिंदू धर्म को लेकर किसी न किसी तरह से असिहष्णुता का भाव था.”
“उसी के कारण हिंदू मंदिरों को लगातार 11वीं से लेकर 18वीं शताब्दी तक शासकों ने तोड़ने और हिंदू समाज पर असहनीय कर लगाने की कोशिश की.”
‘पद्मावती’ के सेट में लगाई आग, जलकर हुआ खाक
कांग्रेस के सुर
कांग्रेस के सुर भी भाजपा से अलग नहीं है. कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल ने ट्विटर पर एक वीडियो जारी किया है जिसमें उन्होंने कहा कि इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने का अधिकार किसी का नहीं है.
उन्होंने कहा, “मैं मानता हूं कि अगर इस फिल्म में इतिहास के साथ छेड़छाड़ हुआ है तो वो ग़लत है. करणी सेना को पहले फ़िल्म दिखाई जानी चाहिए उसके बाद रिलीज़ हो. आपत्तियां दूर होने के बाद ही इस फ़िल्म को रिलीज किया जाना चाहिए.”
शक्ति सिंह गोहिल ख़ुद राजपूत समाज से आते हैं. इनसे पहले कांग्रेस के किसी नेता ने पद्मावती को लेकर खुलकर विरोध का इजहार नहीं किया था. गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में माना जा रहा है कि वो इस बयान से राजनीतिक फ़ायदा लेना चाहते हैं.
पिछले सप्ताह फ़िल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली ने एक वीडियो जारी कर फ़िल्म पर हो रहे विवाद पर स्पष्टीकरण दिया था.
भंसाली ने कहा था, “मैं रानी पद्मावती की कहानी से हमेशा से प्रभावित रहा हूं. ये फ़िल्म उनकी वीरता और बलिदान को नमन करती है.”
उन्होंने कहा, “कुछ अफ़वाहों की वजह से फ़िल्म विवादों में हैं. अफ़वाह है कि फ़िल्म में रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच प्रेम संबंध दिखाए गए हैं. मैं इस बात को पहले भी नकार चुका हूं. लिखित प्रमाण भी दिया है, एक बार फिर दोहरा रहा हूं कि हमारी फ़िल्म में रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच ऐसा कोई सीन नहीं है जो किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाए.”
भंसाली ने कहा, “हमने इस फ़िल्म को बहुत ज़िम्मेदारी से बनाया है. राजपूत मान और मर्यादा का ख़्याल रखा है.” रवि प्रताप ने भंसाली को कहा की अगर भंसाली इतनी हिम्मत हे तो अकबर पर फिल्म बनाकर दिखा , सब जानते हैं की
अकबर एक वहशी दरिंदा था जिसने मां को भी नहीं छोड़ा अगर भंसाली में इतनी हिम्मत हे तो अकबर पर फिल्म बनाकर दिखाये ,
जबकि ऐसा कुछ भी नही हैं
मैं अपने जीवन काल में प्रथम बार राजपूत समाज को सड़कों पर देख रहा हूँ | अपने बुजर्गों से भी कभी नहीं सुना की राजपूत अपने अधिकारों के लिए कभी कुछ मांगने के लिए या अपना कुछ छिनने से रोकने के लिए, कभी सड़कों पर उतरें हो या कोई आंदोलन ही किया हो | यहां तक की जब सरकार ने राजघरानो की संपत्ति छीनी, राजघरानो को बेइज्जत किया, राजपूतों की जागीरदारी छीनी, राजपूतों की जमीने समाज के अन्य वर्गों को यूँ ही मुफ्त में राजपूतों को बिना किसी हर्जाने या मुआवजे दिए ही बाँट दीं, तब भी राजपूत समाज ने न तो कोई आंदोलन किया न सड़कों पर उतर कर सरकार की संपत्ति या प्राइवेट संपत्ति को कोई हानि पहुंचाई अथवा न ही बहिन बेटियों की इज्जत आबरू से खेला न ही लूट पार की न ही कोई उत्पात ही मचाया था
आज राजपूत समाज सड़क पर आंदोलन कर रहा है, सिर्फ अपने राजघराने की एक सती महान क्षत्राणी महारानी पद्मिनी की अस्मिता की रक्षा के लिए | यह गर्व का विषय है | लोग जब नारियों की अस्मिता सरे राह तार तार कर रहे हैं तब केवल एक राजपूत समाज ही नारी की अस्मिति की सुरक्षा के लिए सड़क पर आया है | वास्तव में यही क्षात्र धर्म है |
लोग तो ऐसे है की जब उन्हें कुछ नहीं मिला राजपूत समाज पर ऊँगली उठाने के लिए उन्हें बदनाम करने के लिए तो उन्होंने राजा रतन सिंह व रानी पद्मिनी के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया | कहा की ये दोनों तो एक मुग़ल कालीन कवि की कल्पना मात्र हैं | इनके लिए एक फिल्म प्रोडूसर ज्यादा अहमियत रखता है बजाय राजपूत समाज की अस्मिता के, एक सति रानी की गौरवगाथा, उनकी वीरता एवं सतीत्व के, एक राजा का अपनी पत्नी व राज्य की सुरक्षा हेतु बलिदान देने के | आश्चर्य होता है मुझे ऐसे लोगों की सोच पर | कितने ओछे व विकृत मानसिकता वाले लोग है ये | राजपूतों के महान व गौरवमयी इतिहास को मानने से ही इंकार कर रहे हैं ये लोग | जबकि चित्तौडग़ढ़ राजघराने के सेंतीसवी पीढ़ी के वंशज आज भी मौजूद हैं |
राजपूत समाज ने सदा सबका भरण पोषण ही किया है | सबकी रक्षा हेतु अपना व अपने परिवार का बलिदान ही दिया है | हर संभव सहायता उपलब्ध कराता रहा है इसके पीछे चाहे उसे अपनी कितनी ही बड़ी हानि ही क्यों न उठानी पड़े | खून कभी बदलता नहीं है | राजा राजा ही होता है | राजा की तरह ही रहता है | राजा की ही तरह व्यवहार करता है | तो क्या हुआ की आज हालात ठीक नहीं है | तो क्या हुआ की आज राजपूत समाज में रोज़गार ज्यादा के पास नहीं है | तो क्या हुआ की जमीन नहीं हैं | दिल और खून तो राजा का ही है | तेवर तो आज भी राजा के ही है जो मरते दम तक रहेंगे।
फिल्म में कोई कुछ कमी बता रहा है और कोई कुछ | मैं कहता हूँ की यदि कुछ कमी है तो वह केवल फिल्म की पटकथा में कमी है | क्यूंकि जिस फिल्म की पटकथा रानी पद्मिनी द्वारा अपने व अपने समाज की सोलह हजार क्षत्राणियों की अस्मिता की सुरक्षा हेतु जौहर करने पर केंद्रित होनी चाहिए था, वह मात्र एक लुटेरे आक्रांता जाहिल क्रूर जानवर व रानी पद्मिनी के प्रसंग पर केंद्रित कर दी गई है | धन कमाने की लालसा ने इस कपटी फिल्मकार संजय लील भंसाली ने फिल्म को राजपूताना गौरवगाथा का उल्लेख करने के स्थान पर ओछे दर्जे की एक मसाला फिल्म मात्र बना डाला है।
देर से ही सही, जाग्रति तो आई राजपूत समाज में | कहा जाता है की राजपूत कभी एक नहीं हो सकते | सही भी लगता था | पर आज एक हो चुके हैं | किसी से कुछ मांगने के लिए नहीं | किसी को लूटने के लिए नहीं | किसी से भीख मांगने के लिए नहीं | किसी से कोई अपने लिए सहूलियत या कोई साहनभूति मांगने के लिए नहीं | किसी का दया पात्र बनने के लिए नहीं | एक हुए हैं, सड़कों पर उतरें हैं, केवल अपनी आन, बान, शान की रक्षा के लिए | एक सति महारानी की अस्मिता की सुरक्षा के लिए | अपने सम्मान की रक्षा के लिए | एक स्त्री के मान सम्मान की रक्षा के लिये | अपने महान गौरवमयी इतिहास की रक्षा के लिए | इस पर गर्व है मुझे