05 फरवरी 2016 : गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय हिसार ऋग्वेद से रोबोटिक्स काल तक की सांस्कृतिक निरंतरता में शोध की संभावनाएं तलाशेगा। वैदिक काल से अब तक के काल के दौरान अनेकों ऐसे तथ्य हैं जिन पर शोध किया जा सकता है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने कहा है कि यह विश्वविद्यालय विज्ञान एवं तकनीकी विश्वविद्यालय है।
ऐतिहासिक तथ्यों को वैज्ञानिक तर्कों व शोधों की कसौटी पर कसने में यह विश्वविद्यालय महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने बताया कि दुनियाभर के देश भारत से प्राप्त ज्ञान व पाण्डूलिपियों को आधार बनाकर शोध कर रहे हैं। आधुनिक विज्ञान केवल 400-500 साल पुराना है जबकि भारत में कई हजार साल पहले चिकित्सा, स्वास्थ्य, खाद्य, बागवानी, कृषि, गणित तथा खगोलीय क्षेत्रों में प्रामाणिक व वैज्ञानिक जानकारियां उपलब्ध होने के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं।
उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि भारत की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक धरोहर की प्रामाणिक जानकारी विश्व को उपलब्ध करवाई जाए तथा देश की जिज्ञासा व जरूरतों को ध्यान में रखते हुए शोध को आगे बढ़ाया जाए। इसके लिए शिक्षकों व विद्यार्थियों की जिम्मेदारी अधिक बनती है। उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ी तो वेदों पर वैज्ञानिक शोध संस्थान का सहयोग लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस प्रदर्शनी व सेमीनार से विद्यार्थियों, शोधार्थियों, शिक्षकों व अन्य सभी प्रतिभागियों को हमारे प्राचीन इतिहास के बारे में प्रामाणिक जानकारियां मिली हैं।
वेदों पर वैज्ञानिक शोध संस्थान की निदेशिका सरोज बाला ने चौधरी रणबीर सिंह सभागार के सेमीनार के हॉल नम्बर 1 में सेमीनार को संबोधित करते हुए बताया कि ज्ञान और विज्ञान का जनक वास्तव में भारत है। वेदों से पूर्व के साहित्य में भी भारत देश में बारह प्रकार की मिट्टी और खाद का जिक्र मिलता है। अगर उस क्षेत्र में शोध किया जाए तो भारत में खाद्य क्रांति आ सकती है। रामायण और महाभारत में ऐसे हथियारों के प्रयोग की जानकारी मिलती हैं जिनसे मनुष्य मरता नहीं केवल बेहोश होता है। इस दिशा में भी शोध किया जाए तो भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है। उन्होंने गुरू जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार में शोध की संभावनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि इस विश्वविद्यालय के पर्यावरण, बायो नैनो टैक्नॉलोजी, गणित, बायोमेडिकल इंजीनियरिंग, फिजियोथेरेपी, कम्युनिकेशन मैनेजमैंट टैक्नॉलोजी तथा साइकॉलोजी के विभागों के लिए इस क्षेत्र में शोध की जबरदस्त संंभावनाएं हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से भी कहा कि इस क्षेत्र में शोध करके न केवल वे अपना एक शानदार भविष्य बना सकते हैं बल्कि भारत की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत को भी दुनिया में नई पहचान दिला सकते हैं।
सरस्वती नदी पर शोध कर रहे डा. अंकित अग्रवाल ने अपने सम्बोधन में कहा कि लगभग 200 इसा पूर्व सरस्वती नदी सूख गई थी जो उत्तरी भारत इलाके में ही बहती थी। इस नदी के सूखने के बाद यहां के निवासी विस्थापित होकर तक्षशिला तथा उज्जैन की तरफ चले गए थे। उन्होंने वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर सरस्वती नदी की कहानी को व्याख्यित किया तथा बताया कि सरस्वती नदी के सूखने के बाद गंगा नदी यमुना में मिलने लगी थी। उन्होंने सरस्वती, गंगा व यमुना नदियों के उद्गम के बारे में भी शोधपरक जानकारियां दी।
बुधवार को शुरू हुई प्रदर्शनी गुरूवार की शाम तक जारी रही। गुरूवार को एक इंट्रेक्टिव सैसन हुआ जिसमें निदेशिका सरोज बाला ने इस सैसन के प्रतिभागियों द्वारा पूछे गए प्रश्नो के उत्तर दिए गए। सेमीनार व प्रदर्शनी से संबंधित खुल प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। विजेता प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय के शिक्षकों के साथ मिलकर शोध की संभावनाओं पर भी विचार किया गया। इंट्रेक्टिव सैसन का संचालन डा. नीरज दिलबागी ने किया। इस अवसर पर डीन स्टूडैंटस वैल्फेयर प्रो. कुलदीप बंसल व प्रो. एच.सी. गर्ग ने डा. अंकित अग्रवाल को स्मृतिचिन्ह् भेंट कर सम्मानित किया।