दोस्तों आओ ज्योतिष शास्त्र शिवयोगी श्री प्रमोद जी महाराज द्वारा सरलता से सीखें
शनि-ग्रह
नपुंसक जाति कृष्ण वर्ण पश्चिम दिशा का स्वामी वायु तत्व वातश्लेष्मिक प्रकृति का है ||
शनि-ग्रह के द्वारा आयु शारीरिक बल दृढ़ता विपत्ति प्रभुता मोक्ष यश ऐश्वर्य नौकरी योगाभ्यास विदेशी भाषा एवं मूर्छा आदि रोगों का विचार किया जाता है ||
यदि जातक का जन्म रात्रि में हुआ हो तो माता-पिता का कारक होता है ||
शनि सप्तम स्थान में बली होता है ||
पर इसका अंतिम परिणाम सुखद होता है ||
मनुष्य को दुर्भाग्य तथा संकटों के चक्र में डालकर
अंत में उसे शुद्घ तथा सात्विक बना देता है ||
शुक्र-ग्रह
स्त्री जाति श्याम गोरा वर्ण कार्यकुशल दक्षिण-पूर्व दिशा का स्वामी तथा जलीय तत्व वाला है ||
शुक्र-ग्रह कफ वीर्य आदि धातुओ का कारक माना जाता है ||
शुक्र-ग्रह के प्रभाव से जातक का रंग गेहुआ होता है ||
शुक्र-ग्रह काव्य संगीत वस्त्र आभूषण वाहन शैय्या पुष्प आँख पत्नी स्त्री तथा कामेक्षा का कारक होता है ||
शुक्र-ग्रह द्वारा चतुरता संसारिक सुख सम्बन्धी विचार किया जाता है ||
यदि जातक का जन्म दिन में हुआ हो तो शुक्र के द्वारा माता के सम्बन्ध में विचार किया जाता है ||
छठे स्थान का शुक्र निष्फल होता है ||
सातवे स्थान का शुक्र अनिष्टकारक होता है ||
शुक्र शुभ ग्रह माना जाता है ||
भृग-संहिता का जन्म (ज्योतिष ज्ञान (1) शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज द्वारा)
ज्योतिष सीखें : गुरु होते है शाश्वत (अध्याय २) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
भृगसंहिता : मंगल-ग्रह का स्वभाव और प्रभाव (अध्याय 3 , शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज द्वारा)
भृग संहिता में सूर्य एवं बुध ग्रहो का स्वभाव और प्रभाव : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज (अध्याय 4)