संजय द्विवेदी : तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के हिसाब से जनता को फायदा न दे पाने का असली कारण तो विपक्ष को मालूम था लेकिन उसने सही बात छुपाकर इस सरकार के पक्षधरों के अपने नेतृत्व के प्रति अविश्वास और स्वार्थी मानसिकता को खूब भुनाया है।
भारत की सरकार, जनता को तेल का पूरा फायदा इसलिए नही दे पायी है क्योंकि भारत पुराने तेल के कर्जे में डुबा राष्ट्र है। अकेले ईरान का हम पर, जिससे हम लगभग 5 लाख बैरल प्रतिदिन तेल लेते है, करीब 6.50 बिलियन डॉलर का उधार हो गया है। यह उधार 4 साल पहले से हुआ है जब भारत ईरान से, अंतराष्ट्रीय प्रतिबन्ध के बाद तेल तो ले लेता था लेकिन रोक के कारण उसको उसका भुगतान नही कर पाता था। उस वक्त के तेल का भारत ने 55% भुगतान रुपये में कर दिया था लेकिन शेष का भारत ने यूरो में करना है।
हकीकत यह है कि हम भारतीय उधार के तेल पर अपनी गाड़िया दौड़ा रहे है और कर्जखोरी की विलासिता को भारतीयों ने अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ कर जी रहे है।
नरेंद्र मोदी की सरकार को यह अच्छी तरह एहसास था कि कर्जखोर जनता का भारत, तब तक स्वाभिमान की लड़ाई नही जीत सकता है जब तक भारत के कर्जों को या तो खत्म नही किया जाता है या फिर उसमे लगातार कमी लाकर अपनी शर्तों पर आगामी सौदे करने की स्थिति में नही आ जाता है।
इसी क्रम में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जी ने अपनी ईरान यात्रा से पहले पुराने तेल के एवज़ में हुयी 6.50 बिलियन डॉलर के उधारी की वापसी की पहली किश्त 750 मिलियन डॉलर ईरान को वापिस कर दी है।
हम लोग, जो आज के अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमत और भारत के उपभोक्ता को देनी पड़ रही कीमत में जो अंतर देख रहे है, उसका सदुपयोग, मोदी सरकार ने भारत द्वारा लिए गए पुराने उधार की अदायगी, भारतीय जर्जर हो रही रिफायनरी के पुनरुत्थान, सेना के लिए साजो समान और इंफ्रास्ट्रक्चर को खड़ा करने में लगा रहा है।