के के शर्मा : बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान तीन वर्ष 22 जनवरी , सोचो अगर जो मैं न जन्मी……भगवान ने जब श्रृष्टि बनायीं तो श्रृष्टि को बढाने और उसके पालन पोषण के लिए नारी बनायीं। इस हिसाब से एक औरत, एक बेटी, एक बहन और ऐसे ही नारी जाती से जुड़े और भी रिश्ते हैं। जो हमारे संसार को आगे बढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नारी जाती की शुरुआत होती है बेटी से। जिसे आज कल जाने कुछ लोग श्राप क्यों मानते हैं?न जाने क्यों आज भी हमारे समाज में हर घर परिवार में पुत्र की चाहत का इज़हार किया जाता है।गर बेटी हो जाए तो माँ का तिरस्कार किया जाता है।कितनी मजबूर होती होगी वो माँ जो अपने गर्भ में पलने वाले बच्चे को मात्र इस लिए काल के क्रूर हाथों के हवाले कर दे कि वो बेटी है।नष्ट कर देते हैं बेटी कि संरचना को भूल जाते हैं सच्चाई कि यही बेटियाँ सृष्टि रचती हैं।समाज में औरतों की कम होती संख्या मानव जीवन के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन सकती है। सोचिये क्या एक समाज बिना औरत के आगे बढ़ सकता है? क्या ये संभव है कि कोई वंश बिना औरत के आगे बढ़ सकता है? बहन न होगी तो रक्षा रक्षा बंधन पर राखी कौन बांधेगा? एक आदमी विवाह किसके साथ करेगा? इसलिए समाज में बेटियों का होना बहुत अवशयक है। हमारे इतिहास में जितने भी महापुरुष हुए हैं सबका जन्म एक औरत की कोख से ही हुआ है। इस तरह जीवन में बेटी का वो स्थान है जो कभी किसी बेटे का नहीं हो सकता।
जहाँ देश की जनसंख्या में बृद्धि का ग्राफ लगातार ऊपर की ओर है वहीं लड़कियों के मामले में यह रिपोर्ट बिल्कुल विपरीत है | वर्ष 2011 की नवीनतम जनगणना के अनुसार 0 से 6 वर्ष के आयु समूह में Child Sex Ratio (CSR) में गिरावट देखने को मिली है | वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार जहाँ प्रति 1,000 लड़कों में 927 लड़कियां थी वो वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति 1,000 लड़कों में 918 लड़कियां ही रह गई हैं |आधुनिक नैदानिक उपकरणों की उपलब्धता से अजन्मे बच्चे के लिंग का पता कर कन्या भ्रूण हत्या के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं | समाज की पुरानी विचार धारा वाले सामाजिक पूर्वाग्रही आर्थिक लाभ के विचार से नर बच्चे के पक्ष में होते हैं और बालिकाओं के जन्म को पाप मानते हैं |जिससे देश में महिलाओं का अनुपात कम हो रहा है | अगर लड़कियों की दर इसी तरह कम होती रही तो समाज अपने आप नष्ट हो जायेगा |ऐसा नहीं है की यह पक्षपात लड़कियों के जन्म तक है जन्म के बाद भी सारे जीवन उनके पोषण, शिक्षा, स्वास्थ्य से जुडी बहुत सी चीज़ों में उनके साथ पक्षपात किया जाता है | आज भी समाज में कई लोग लड़कियों को लड़को की तुलना में कम समझते हैं | आज के ऐसे आधुनिक समय में भी लड़कियों के साथ भेदभाव सभी के लिए शर्मसार करने वाली है |महिलाओं के अधिकारों का हनन उनके जन्म से पहले ही शुरू हो जाता है |
देश की बेटियों की रक्षा और उन्नति के लिये प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ नाम से एक योजना का शुभारंभ 22 जनवरी 2015 को हरियाणा के पानीपत शुरू की थी.प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत के लोगों ने एक भावनात्मक अपील करते हुए कहा कि वो “बेटियों के जीवन की भीख मांगने के लिए एक भिक्षुक के रूप में आया हूं।” उन्होंने कहा कि जब तक हमारी मानसिकता 18वीं सदी की है, हमें खुद को 21वीं सदी का नागरिक कहने का कोई अधिकार नहीं। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने बेटे और बेटियों के बीच भेदभाव को खत्म करने का आह्वान किया। ऐसा करके ही कन्या भ्रूण हत्या को रोका जा सकता है।प्रधनमंत्री ने कहा कि, भारतीय लोगों की ये सामान्य धारणा है कि लड़कियाँ अपने माता-पिता के बजाय पराया धन होती है। अभिवावक सोचते है कि लड़के तो उनके अपने होते है जो बुढ़ापे में उनकी देखभाल करेंगे जबकि लड़कियाँ तो दूसरे घर जाकर अपने ससुराल वालों की सेवा करती हैं।लड़कियों के बारे में 21वीं सदी में लोगों की ऐसी मानसिकता वाकई शर्मनाक है और जन्म से लड़कियों को पूरे अधिकार देने के लिये लोगों के दिमाग से इसे जड़ से मिटाने की जरुरत है।जन्म के बाद भी लड़कियों को कई तरह के भेदभाव से गुजरना पड़ता है जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, खान-पान, अधिकार आदि दूसरी जरुरतें है जो लड़कियों को भी प्राप्त होनी चाहिये। महिलाओं को सशक्त करने के बजाय अशक्त किया जा रहा है। औरतें समाज का बहुत महत्वपूर्ण भाग है और पृश्वी पर जीवन के हर एक पहलू में बराबर भाग लेती है। हांलाकि, भारत में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों को कारण स्त्रियों के निरंतर गिरते लिंग अनुपात ने, महिलाओं के पूरी तरह से खत्म होने के डर को जन्म दिया है। इसलिये, भारत में महिलाओं के लिंग अनुपात को बनाये रखने के लिये कन्याओं (बालिकाओं) को बचाना बहुत आवश्यक है।सामाजिक सन्तुलन को बनाये रखने के लिये, समाज में लड़कियाँ भी लड़कों की तरह महत्वपूर्ण है। समाज में महिलाओं की संख्या को बराबर करने के लिये, लोगों को बड़े स्तर पर कन्या बचाने के बारे में जागरुक करने की आवश्यकता है।कन्या भ्रूण हत्या अस्पतालों (हॉस्पिटल्स) में चयनात्मक लिंग परीक्षण के बाद गर्भपात के माध्यम से किया जाना वाला बहुत भयानक कार्य है। ये भारत में लोगों की लड़कों में लड़कियों से अधिक चाह होने के कारण विकसित हुआ है। इसने काफी हद तक भारत में कन्या शिशु लिंग अनुपात में कमी की है। ये देश में अल्ट्रासाउंड तकनीकी के कारण ही सम्भव हो पाया है। इसने समाज में लिंग भेदभाव और लड़कियों के लिये असमानता के कारण बड़े दानव (राक्षस) का रुप ले लिया है।इस योजना की शुरुआत करते हुए पीएम मोदी ने चिकित्सक बिरादरी को ये याद दिलाया कि चिकित्सा पेशा लोगों को जीवन देने के लिये बना है ना कि उन्हें खत्म करने के लिये। प्रधानमंत्री ने पूछा कि अगर बेटियां पैदा नहीं होंगी तो बहुएं कहां से लाएंगे? उन्होंने कहा कि ऐसे लोग हैं जो पढ़ी लिखी बहुएं चाहते हैं, लेकिन वो अपनी बेटियों को पढ़ाने के लिए तैयार नहीं हैं। पृथ्वी पर मानव जाति का अस्तित्व, आदमी और औरत दोनों की समान भागीदारी के बिना असंभव है। दोनो ही पृथ्वी पर मानव जाति के अस्तित्व के साथ ही साथ किसी भी देश के विकास के लिये समान रुप से जिम्मेदार है। हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि महिलाएं पुरुषों से अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इनके बिना हम मानव जाति की निरंतरता के बारे में नहीं सोच सकते क्योंकि वो मानव को जन्म देती है। तो कन्या शिशु को नहीं मारा जाना चाहिये, उन्हें आगे बढ़ाने के लिये सुरक्षा, सम्मान और समान अवसर प्रदान किये जाने चाहिये। वो सभ्यता के भाग्य निर्माण में मददगार और सृजन के स्त्रोत की जड़े है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना का संपूर्ण उद्देश्य बालिका के जन्म को एक उत्सव की तरह मानाना है ताकि पुराने और रूढ़िवादी विचारों को तोड़ा जा सके एवं उनके परिणामस्वरूप हो रहे लड़कियों के हितों के उल्लंघन पर लगाम लगाई जा सके। इस योजना को लड़कियों की शिक्षा और उनके कल्याण के प्रति लक्षित निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शुरू किया गया था:
1-बालिकाओं के प्रति भेदभाव एवं लिंग निर्धारण परीक्षण की कुरीति को खत्म करना–आज एशिया में महिला लिंग अनुपात में खतरनाक दर से गिरावट आती जा रही है। हमारा देश महिला दर में तेजी से गिरावट वाले देशों में शीर्ष स्थान पर है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के तहत मुख्य रूप से महिला एवं पुरुष लिंगानुपात पर ध्यान केंद्रित किया गया है एवं लैंगिक भेदभाव की रोकथाम की दिशा में बड़े कदम उठाए जा रहे हैं।
2-लड़कियों के अस्तित्व एवं उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना–हमारे देश में समाचार पत्रों में आए दिन में खबरें छपती रहती है कि एक महिला भ्रूण कूड़ेदान में मिला या एक अजन्मी बच्ची रेलवे स्टेशन के पास अखबार में लिपटी हुई मृत पाई गई, इत्यादि। यह हमारे देश में क्या हो रहा है ? इससे हमारे समाज की बीमार मानसिकता का पता चलता है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना ऐसी मानसिकता को तोड़ने एवं हर बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
3-शिक्षा एवं अन्य क्षेत्रों में लड़कियों की भागीदारी सुनिश्चित करना–एक बेहतर एवं मजबूत भारत बनाने के लिए महिला बच्चे को बचाएं एवं उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक, इस देश में हर बच्ची को शिक्षित किया जाना चाहिए ताकि उसे अपनी इच्छाओं का एहसास हो सके।
नरेंद्र मोदी के बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ अभियान का खासा असर पिछले 3 सालों में देखने को मिला है| लिंग अनुपात में जो बड़ा फर्क था उस में कमी आई है|प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीन वर्ष पूर्व किये गये ड्रीम प्रोजेक्ट बीबीबीपी योजना लॉंच के पहले वर्ष में एक सौ जिलों में शुरू की गई थी और पहले ही साल के अंत तक ही 58 जिलों में जन्म के समय लिंग अनुपात में वृद्धि दिखी। दूसरे वर्ष में योजना 161 जिलों में शुरू की गई, जिसमें से 104 जिलों में जन्म के समय लिंगानुपात में बढ़ोत्तरी दिखी हैराजस्थान प्रदेश में लिंगानुपात के बिगड़ते आंकड़ों पर ब्रेक लगती दिखाई दे रही है। इसका कारण सामाजिक संगठनों और सरकार द्वारा कन्या भ्रूण हत्या के प्रति लोगों को जागरुक करने की मुहिम है।
राजस्थान प्रदेश में 1000 बेटों पर बेटियों की संख्या 888 से बढ़कर 934 पहुंच गई। बेटियों को लेकर जो कुरीतियां समाज में व्याप्त थी। वह समाप्ति की ओर है।पहले की तुलना में बेटियों का मान बढ़ा है। अब बेटी के पैदा होने पर ढोल बजते हैं, कुआं पूजन होता है।बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ से मिला महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा मिला है. बेटी बचाओ अभियान को लोगों को सिर्फ एक विषय के रुप में नहीं लेना चाहिये, ये एक सामाजिक जागरुकता का मुद्दा है जिसे गम्भीरता से लेने की जरुरत है। लोगों को लड़कियों को बचाना और सम्मान करना चाहिये क्योंकि वो पूरे संसार का निर्माण करने की शक्ति रखती है। वो किसी भी देश के विकास और वृद्धि के लिये समान रुप से आवश्यक है।
नष्ट कर देते हैं,बेटी कि संरचना को भूल जाते हैं सच्चाई कि यही बेटियाँ सृष्टि रचती हैं।
खत्म मुझे करने से पहले सोच लेना तुम फिर से एक बार बिन मेरे न जीवन संभव खत्म हो जायेगा ये संसार।
सोचो अगर जो मैं न जन्मी……