जबलपुर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख अरुण कुमार जी ने कहा कि संघ संस्था नहीं है और न ही कोई संगठन है. ये समाज परिवर्तन का एक साधन मात्र है. विजय की आकांक्षा से ओत प्रोत एक-दूसरे के लिए जीने का संघ का मूल उद्देश्य है. संघ के कार्यक्रम के संबंध में स्पष्ट किया कि कोई भी नया कार्य प्रारंभ नहीं करेगा, भिन्न-भिन्न कालखंडों में महापुरुषों की प्रेरणा से प्रांरभ कार्यों को गति प्रदान करना ही संघ का कार्य है. संघ की स्पष्ट मान्यता है कि समाज की संगठन शक्ति एवं श्रेष्ठ जनों के सहयोग से समाज को सकारात्मकता के साथ दिशा बोध कराना है. हमारा कोई विरोधी नहीं, क्योंकि हम उन तक पहुंचे नहीं. जब पहुंचेंगे तो वे भी हमारे हो जाएंगे. आपातकाल के दौरान एक लाख चालीस हजार स्वयंसेवक जेलों में 19 महीने तक बंद रहने के बाद भी तत्कालीन सरसंघचालक बाला साहब देवरस जी ने कहा था कि इसे भूलो और माफ करो. अरुण जी जबलपुर महानगर के प्रगट कार्यक्रम में उपस्थित स्वयंसेवकों को संबोधित कर रहे थे.
भारत माता पूजन व दीप प्रज्ज्वलन से प्रगट कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ. एम.सी. डाबर जी मुख्य वक्ता अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख अरूण कुमार जी थे. महाकौशल प्रांत के संघचालक प्रशांत सिंह जी, विभाग संघचालक कैलाश गुप्ता जी, सह विभाग संघचालक प्रदीप दूबे जी भी उपस्थित रहे. कार्यक्रम में स्वयंसेवकों ने घोष एवं दण्ड व्यायाम, नियुद्ध का प्रदर्शन किया. अरुण जी ने प्रगट कार्यक्रम की भूमिका, उपादेयता एवं उपयोगिता पर प्रकाश डाला. संघ क्या, संघ का विचार क्या है, हमारी एवं समाज की क्या भूमिका है. इस पर उनका उद्बोधन केन्द्रित था.
उन्होंने कहा कि देश में सर्वाधिक भ्रम इस बात से रहा है कि भारत वैचारिक भ्रम का शिकार हो चुका था. राष्ट्र कृत्रिम इकाई नहीं, बल्कि लम्बे अंतराल से एक भू भाग पर रहता, आस्था का भाव बनाता, दर्शन होता, दर्शन से, मूल्यों से परम्परा का जन्म लेकर व्यवहार में परिणित होता है. जिससे देश की संस्कृति का विकास होता है. पतन भी अपने कारण है और उसके दोषी भी हम हैं. गौरव के क्षण भी हमारे द्वारा होते हैं. सत्ता परिवर्तन क्षणिक होता है, इससे समाज में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं होता. समाज परिवर्तन लम्बी प्रक्रिया है. इसमें समाज की भूमिका महत्वपूर्ण है. आज विश्व की दृष्टि भारत की ओर है – शाकाहार, योग विचार, दर्शन समाज संकट से पार पाना, ऐसी ही आशा भरी निगाहों से भारत को देख रहा है. एक राष्ट्र – एक समाज का भाव खड़ा करना, हम सब एक ही संस्कृति के लोग हैं. मजहब बदलने से देश नहीं बदलता. समाज की सामूहिक दृष्टि का जागरण करना पड़ेगा. मेरी योग्यता प्रतिभा समाज को क्या दे सकती है, यह विचार करना होगा. सबको मिलकर सकारात्मक भूमिका निभानी होगी.