के के शर्मा , बीकानेर : काश्मीर जिसे प्राचीन काल में शारदा प्रदेश के रूप में जाना जाता था , 26 जनवरी सन 1950 को हमारे देश को पूर्ण स्वायत्त गणराज्य घोषित किया गया था और इसी दिन हमारा संविधान लागू हुआ था।इसी सविधान में धारा 370 है जिसने काश्मीर को विशेष दर्जा दिया था . काश्मीर जिसे आज मुस्लिम बाहुल्य माना जाता है और उसी आधार पर पाकिस्तान इसे अपना मानता है और उसने 1947 से एक छद्म युद्ध छेड़ रखा है और कश्मीर के युवाओ को धर्म के नाम पर बरगला कर उन्हें हथियार और पत्थर उठवा रहा है और इसी कारण वहां सदियों से रह रहे वहां के मूल निवासी काश्मीरी पंडित अपनी मातृ भूमि छोड़ कर आज अपने ही देश में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे है . सविधान की धारा 370 के कारण उनकी यह स्थिति हुई है . देश में वोट और तुष्टिकरण के चलते कोई भी राजनैतिक दल सविधान की इस धारा 370 को बदलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे .
अगर इतिहास में देखे तो यह प्रदेश हिन्दू बाहुल्य था लेकिन जनवरी 1990 को संपूर्ण कश्मीरसे हिंदू निकल जाएं, स्थान-स्थानपर ऐसा आदेश दिया गया । खुले आम कहा गया, समाचारपत्रोंमें आवेदन दिए गए, और पूरे हिंदू समाजको वहांसे निकल जाना पडा । उनके सामने तीन पर्याय थे । एक तो धर्म बदलें,जिहाद में सम्मिलित हों, अथवा वहां से चले जाएं । उन हिंदुओं ने बहुत बडा त्याग किया । धर्म बचाने हेतु अपनी भूमि,सम्पत्ति, अपनी यादें,बचपन,सारे मृदु (नाजुक) धागे अपने हाथोंसे तोडकर ये लोग दूसरे स्थानपर जाकर रहे ।1990 में देश के प्रत्येक भाग में 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस धूमधाम से मनाया जा रहा था और वहीँ संपूर्ण कश्मीर में हिन्दू जलील हो रहे थे , उन्हें मारा जा रहा था , हिन्दू महिलाओ ,बच्चीओ की इज़्ज़त सरेआम लूट रही थी लेकिन वहां की सरकार,प्रशासन चुपचाप यह देख रहा था और लगता था जैसे मुस्लिम कटरपन्तिओ को उनका मौन समर्थन था . जनवरी 1990 को धर्म बचानेके लिए कश्मीरी हिंदुओंने अपनी भूमि,संपत्ति और स्मृतियां,सब का परित्याग कर दिया ।इस गणतंत्र दिवस पर काश्मीरी पंडितो के निर्वासन के 28 साल पुरे होने जा रहे है लेकिन अब तक उनको न्याय नहीं मिला है .
काश्मीर जिसे प्राचीन काल में शारदा प्रदेश के रूप में जाना जाता था इसका आध्यात्मिक कारण मां सरस्वती का शारदापीठ है ! ”शारदापीठ” माॅ सरस्वती का सबसे प्राचीन और मुख्य स्थान है इसे शारदा मठ भी कहते है । यहीं पर वेदों की प्रथम ऋचाएॅ लिखीं गयी है । शारदा पीठ पाकअधिकृत कश्मीर में शारदा गांव में है । नीलम नदी की घाटी में स्थिति यह स्थान प्राचीन काल में ज्ञान विज्ञान और आध्यात्म का प्रमुख केन्द्र रहा है । भारतवर्ष के अनेकों ऋषियों-मुनियों की यह तपोभूमि रही है ।आदिगुरु शंकराचार्य ने भी यहाँ आकर तप किया है । यहीं से प्रेरणा पाकर उन्होंने भारत की चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की थी .कहा जाता है की जब ब्रह्मदेवने सृष्टिकी रचना की और उन्होंने मानव को पृथ्वी पर भेजा । मानवने ब्रह्मदेवसे प्रार्थना की, “हे भगवन्,आप विविध देवताओंको, हमारा उत्कर्ष एवं भला हो,इस हेतु पृथ्वीवर भेजें ।तदुपरांत (पृथ्वीपर ) विविध स्थानोंपर देवताओं ने अपने-अपने स्थान बनाए। इसी क्रमसे ज्ञानकी देवी सरस्वतीने जो स्थान पसंद किया,वह कश्मीर है । अत: कश्मीरका नाम शारदादेश भी है । भारतीय संस्कृतिमें हिंदू प्रतिदिन शारदा देवीके श्लोक का पठन करते समय कहते हैं, नमस्ते शारदे देवी काश्मीरपुरवासिनी । त्वामहं प्रार्थयो नित्यं विद्यादानं च देहि मे ।।अर्थ : हे कश्मीरवासिनी सरस्वती देवी, आपको मेरा प्रणाम । आप हमें ज्ञान दें,यह मेरी आपसे नित्य प्रार्थना है । वर्तमानमें कश्मीर स्थित यह शारदापीठ पाकिस्तान व्याप्त कश्मीरमें है, क्या इस श्लोकका पठन करनेवाले यह बात जानते हैं ?प्रार्थनामें श्री शारदादेवीके जिस स्थानका हम निर्देश करते हैं,अब उसका पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है,तथा वहां जानेपर हिंदुओंको पापस्थानसे (पाकिस्तानसे ) प्रतिबंध किया जाता है, यह बडा क्लेशदायी है ।कश्मीर का पौराणिक इतिहास है। कश्मीरकी स्थापना करनेवाले कश्यप ऋषि !कश्यप ऋषिके नामसे इस भूभाग को ‘कश्मीर’ नाम प्राप्त हुआ । असुरोंका नाश कर सज्जनों को अभय देने हेतु कश्यप ऋषिने कश्मीर उत्पन्न किया । भारतके सारे क्षेत्रोंसे सुसंस्कृत तथा सुविद्य लोगों को वहां बसनेका आमंत्रण देकर महर्षि कश्यपने यह प्रदेश बसाया .महाभारतके युद्धमें सारे राजाओंने धर्मयुद्धमें हिस्सा लिया;किंतु कश्मीरके राजा गोकर्णने उसमें हिस्सा नहीं लिया । तब श्रीकृष्णने उस अधर्मीका वध किया तथा उसके स्थानपर उसकी पत्नी यशोमती का अभिषेक किया । इस प्रकार विश्वमें पहली बार एक महिलाको शासनकर्ता बनाया गया तथा उसका आरंभ भी कश्मीरसे ही हुआ ।उसका अभिषेक करते समय स्वयं श्रीकृष्ण ने बताया कि कश्मीरकी भूमि साक्षात पार्वती का रूप है । इस भूमिपर केवल शिवतत्त्व प्राप्त करने हेतु प्रयत्नरत रहनेवालोंको ही राज करने का अधिकार है । जो शिवतत्त्वकी दिशामें अर्थात धर्मकी दिशामें प्रयास नहीं करते,उन्हें इस भूमिपर रहनेका कोई अधिकार नहीं ।कश्मीरभूमि शिवभक्तों हेतु ही है !
कश्मीरका निर्देश हिंदू धर्मके अनेक प्राचीन संस्कृत ग्रंथोंमें दिखता है । ‘शक्ति-संगमतंत्र’ ग्रंथमें कश्मीरकी व्याप्ति आगे दिए अनुसार है ।
शारदामठमारभ्य कुडःकुमाद्रितटान्तकम् । तावत्काश्मीरदेशः स्यात् पन्चाशद्योजानात्मकः ।। अर्थ : शारदा मठसे केशरके पर्वततक ५० योजन(१ योजन ४ कोस) विस्तृत भूभाग कश्मीर देश है । महाभारतमें इसका निर्देश ‘कश्मीरमंडल’ है । (भीष्म. ९.५३) भगवान श्रीकृष्ण तथा भगवान बुद्ध इन दो महात्माओंने कश्मीरमें रहकर सम्मान प्रदान किया है ।युधिष्ठिरके राज्याभिषेकमें कश्मीरका राजा गोनंद उपस्थित था । इससे कश्मीर हिंदू संस्कृतिसे एकरूप है, यह बात आसानीसे समझमें आती है । इ.स. पूर्व २७३-२३२ की इस कालावधिमें सम्राट अशोकने श्रीनगरी राजधानीकी स्थापना की । यही श्रीनगर है ! आज जहां श्रीनगर हवाई अड्डा है, उसके बाजूमें सम्राट अशोकका पोता दामोदरका विशाल प्रासाद (भवन) था ।कश्मीर स्थित सारे स्थानोंके नाम परिवर्तन किए गए अथवा उनका इस्लामीकरण किया गया; किंतु आज भी श्रीनगरका नाम परिवर्तन नहीं कर सके, यह सत्य ध्यानमें रखें !जिस कश्मीरकी राजधानी ही श्रीनगर है, वह राज्य अपना हिंदुत्व कैसे छुपा सकता है ?ख्रिस्त जन्मपूर्व ३००० वर्ष कश्मीरका अस्तित्व था,ऐसा पुरातत्वीय आधार दिया जाता है । उस समय इस्लामका कोई प्रतिनिधि अस्तित्व़में नहीं था;
धार्मिक दृष्टि से कश्मीर का विशेष महत्त्व है –
1-हिंदू संस्कृतिमें 16 संस्कारों का विशेष महत्त्व है । जो उपनयन संस्कार करते हैं, वे उसके पश्चात बच्चेको सात कदम उत्तर की दिशामें,अर्थात कश्मीरकी दिशामें चलने हेतु कहते हैं । इससे हिंदू संस्कारोंकी दृष्टिसे कश्मीरका महत्त्व ध्यानमें आएगा ।
२. हिंदू संस्कृति, मंदिर संस्कृति है । संपूर्ण कश्मीर घाटी एक समय भव्य दिव्य तथा ऐश्वर्यशाली मंदिरों हेतु सुप्रसिद्ध था । इस्लामी कुदृष्टि पडने से आज सर्वत्र इन मंदिरोंके भग्नावशेष ही देखनेको मिलते हैं । कश्मीरके गरूरा गांवमें ‘जियान मातन’ नामका दैवी तालाब था । इस तालाबके किनारे 600वर्षपूर्व 7मंदिर थे । सिकंदर भूशिकन नामके काश्मीरके मुसलमान राजाने उनमेंसे 6 मंदिर गिराए । सातवां मंदिर गिरानेकी सिद्धता में था कि उस तालाबसे खून बहने लगा । इस घटनासे सिकंदर भूशिकन आश्चर्य चकित हुआ तथा घबराकर वहांसे भाग गया । इस प्रकार उस क्रूरकर्मीके चंगुलसे सातवा मंदिर मुक्त हुआ,जो आज भी विद्यमान है । यह मंदिर आज क्यों खडा है ? कश्मीर हिंदू संस्कृति है, इसकी पहचान बताने हेतु ही !
अध्यात्मिक दृष्टि से
1. श्रीविष्णु-लक्ष्मी एवं शारदादेवी एक साथ कभी भी नहीं रहतीं, ऐसा कहा जाता है; किंतु केवल कश्मीरमें ही लक्ष्मी एवं शारदादेवी एकसाथ रहती आई हैं । यहां एक स्थानपर शारदाका तथा दूसरे स्थानपर श्रीलक्ष्मीका स्थान है ।
2. कश्मीरकी नागपूजक संस्कृति : नागपूजन हिंदू धर्मका अविभाज्य अंग है । कश्मीरमें प्राचीन कालसे नागपूजा प्रचलित है । अत: अनेक तालाब तथा झरनोंको नागदेवता ओं के नाम प्राप्त हुए हैं । उदाहरण,नीलनाग,अनंतनाग,वासुकीनाग, तक्षकनाग आदि । नाग उसके संरक्षकदेवता थे । अबुल फजलने आईने अकबरीमें कहा है कि उस क्षेत्रमें लगभग सातसौ स्थानपर नागकी आकृतियां खोदी हुई दिखती हैं । विष्णुने वासुकीनागको सपरिवार यहां रहनेकी आज्ञा दी थी तथा यहां उसे कोई मारेगा नहीं,ऐसा वचन भी दिया था । आप मुझे बताइए,क्या अरबस्थानमें नागपूजन होता है ? वहां तो मू्र्तिपूजा भी नहीं होती, नागकी आकृतियां खोदनेका प्रश्न ही नहीं उठता !
सांस्कृतिकदृष्टिसे–प्राचीन कालसे कश्मीरमें उच्च संस्कृतिकी देखभाल होती आ रही है । विद्या एवं कलाओंका उत्कर्ष वहां दो सहस्र वर्षों से चला आ रहा है ।
1. संस्कृत भाषा हिंदू संस्कृति का केंद्र बिंदू है । इस देववाणीमें सब धार्मिक विधियों की रचना हुई है । ये सारी धार्मिक विधियां कश्मीर से केरलतक केवल संस्कृत भाषामें ही पठन की जाती हैं । इससे कश्मीर का केवल केरलसे ही नहीं, अपितु सारे भारतवर्षसे भाषिक,सांस्कृतिक एवं धार्मिक संबंध समझमें आएगा ।
2. क्षेमेंद्र,मम्मट,अभिनवगुप्त,रुद्रट,कल्हण जैसे पंडितोंने अनेक विद्वत्तापूर्ण संस्कृत ग्रंथोंकी रचना की । धर्म तथा तत्त्वज्ञानके क्षेत्रोंमें कश्मीरी लोगों ने प्रशंसनीय कार्य किया था । पंचतंत्र,यह सुबोध देनेवाला हिंदू संस्कृति का ग्रंथ कश्मीरमें लिखा गया, यह बात कितने लोग जानते हैं ?
3.कुछ सहस्र वर्ष कश्मीर संस्कृत भाषा एवं विद्याका सबसे बडा तथा श्रेष्ठ अध्ययन केंद्र था । दसवें शतकतक भारत के सारे क्षेत्रों से छात्र अध्ययन हेतु वहां जाते थे । तत्त्वज्ञान,धर्म,वैद्यक,ज्योतिर्शास्त्र,शिल्प, अभियांत्रिकी,चित्रकला,संगीत,नृत्य आदि अनेक विषयोंमें कश्मीर निष्णात था । हिंदुओं के सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक ग्रंथोंमें उनका अभिमानपूर्ण निर्देश है; किंतु आज इस गौरवशाली इतिहास को भीषण एवं प्रचंड वर्तमान ने पोंछ दिया है । हमें यह परिस्थिति परिवर्तन करनी है ।
4. ललितादित्य,अवंतिवर्मा,यशस्कर,हर्ष इन राजाओंने अनेक विद्वानों तथा कलाकारों को आश्रय देकर संस्कृति के विकासमें सहयोग लिया । अनेक भव्य सुंदर मंदिर निमार्ण कर शिल्पकलाके स्मारक बनाकर रखे हैं ।
5.‘प्रत्यभिज्ञादर्शन’ नामक एक नया दर्शन कश्मीर में ही उत्पन्न हुआ । अत: वह ‘काश्मीरीय’ नामसे प्रसिद्ध हुआ । वसुगुप्त (इ.स. का 8 वा शतक) कश्मीरी महापंडित इस दर्शनके मूल प्रवर्तक हैं ।
6. कश्मीरी क्रिया पदमें भारतीय आर्य विशेषताएं स्पष्ट रूपसे समझमें आती हैं । कश्मीरी साहित्यका विकास भी उसकी भारतीय आर्य परंपराका निर्देशक है । यह भाषा अरबी अथवा जंगली उर्दू से उत्पन्न नहीं है, अपितु देववाणी संस्कृत की कन्या है, यह ध्यानमें रखें !
नैसर्गिकदृष्टिसे–
1.. भारतका नंदनवन : कालिदास ने कश्मीर अर्थात दूसरा स्वर्ग ही है,ऐसा लिखकर रखा है । पृथ्वी पर कैलास सर्वोत्तम स्थान, कैलास पर हिमालय सर्वोत्तम स्थान तथा हिमालयमें कश्मीर सर्वोत्तम स्थान,इतिहास कार कल्हणने कश्मीरका ऐसा ही वर्णन लिखकर रखा है ।
2.सर वाल्टर लॉरेन्सने कहा है कि एक समय काश्मीर में इतनी समृद्धि तथा निरामयता थी कि वहांकी स्त्रियां सृजन शीलतामें जैसे भूमि से स्पर्धा करती थीं । भूमि जैसे सकस धानसंपदा देती है, वहांकी स्त्रियां वैसी ही सुदृढ संततिको जनम देती थीं । स्त्रियोंको राज्यकर्ताका पद देनेकी परंपरा देनेवाला कश्मीर ! दिद्दा,सुगंधा,सूर्यमती जैसी अनेक कर्तव्यनिष्ठ राज्यकर्ता स्त्रियां भी कश्मीरके इतिहास में प्रसिद्ध हुर्इं । उन्होंने बडी कुशलतासे राजकारोबार किया तथा प्रजाको सुखी रखा । पूरे विश्वमें हिंदू धर्मप्रचारक भेजनेवाला देश ! सम्राट कनिष्कके राजमें विद्वान वसुमित्र की अध्यक्षतामें एक विशाल धर्मपरिषद आयोजित की गई थी ।भारतके कोने-कोनेसे धर्मपंडित वहां नीती नियमोंका विचार-विमर्श करने हेतु गए थे । परिषद संपन्न होनेके पश्चात वहींसे युवा धर्मपंडित तिब्बत,चीन एवं मध्य एशिया गए तथा उन्होंने हिंदू दर्शनके सत्यज्ञानका प्रसार किया । चीनमें भारतके अन्य क्षेत्रोंसे जितने धर्म प्रसारक गए,उससे अधिक धर्मप्रसारक केवल कश्मीरसे गए हैं,एक समय उस क्षेत्रमें ऐसा अभिमानसे कहा जाता था । कश्मीरी हिंदुओंका स्वभूमिसे विस्थापन, धोखेकी घंटी ! एक समय सुंदरताकी धरोहरके रूपमें भारत की प्रतिष्ठामें सम्मानका सिरपेंच धारण करनेवाला कश्मीर आज आतंक वादियोंकी कार्य वाहियोंका केंद्र बन गया है ।ध्यान रखें,हम सरस्वतीपुत्र अर्थात ज्ञान के उपासक हैं । अपना शारदापीठ पुन: भारतभूमि ज्ञान की धरोहर बनाने हेतु हमें अपना कर्तव्य करना है ।
कश्मीरका वर्तमान राजनैतिक,सामाजिक एवं शैक्षणिक जीवन देखें, तो 71वर्ष स्वतंत्रता का उपभोग लेनेवाले भारत की दृष्टिसे कश्मीर एक कलंक ही होगा । अतीत की जो बातें अपने सामने आती रहती हैं, उन्हें सुनकर भी अनसुना करना, समझकर भी नासमझ बनना, तथा देखकर भी अनदेखा करना, इसके जैसा दूसरा भ्रम नहीं होगा । भूमंडलमें सबसे पवित्रतम भूमि अर्थात यह भारतवर्ष है ! अनेक ऋषिमुनि,अवतार एवं विद्वज्जनों ने भारत भूमि को गौरवशाली बनाया है। विश्वके सबसे सुसंस्कृत वंशके रूपमें सुप्रसिद्ध आर्य संस्कृतिका विकास इस देशमें ही हुआ । ऐसा भारतदेश हमारी सांस है, तो हिंदू संस्कृति हमारी आत्मा !प्रारूप में दिखनेवाला भारत,राष्ट्रपुरुष की देह है । उसका जम्मू-कश्मीर प्रांत प्रत्यक्ष हमारा दिमाग अर्थात बुद्धि है । यदि भारतवर्ष कश्मीरविहीन हो गया, तो भारतकी अवस्था बुद्धिहीन मानव जैसी,अर्थात पशुवत हो जाएगी !
कश्मीर को हम भारतीय अपना गौरव कहते है | कश्मीर को हमने हिंदुस्तान का मुकुट कहा है लेकिन क्या हमने कश्मीर के साथ वो व्यवहार किया जिसका वो अधिकारी है ? शायद नहीं , क्यूकी कश्मीर को हमने हमेशा एक जीती हुई वस्तु के समान माना और समझा है | कश्मीर को कभी समझा ही नहीं कश्मीर और दिल्ली की दूरी कभी नहीं मिटी |
आखिर कब लौटेंगे गुलमर्ग की वादियों में अपने घर, कश्मीरी पंडित….!!!कश्मीर व कश्मीर की समस्याओं के लिए हमारे देश का कथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग निरंतर प्रयास करता रहता हैं। मगर इस प्रकार के बुद्धिजीवी वर्ग के द्वारा कश्मीरी पंडितो के घर वापसी… को लेकर न तो किसी प्रकार की मांग उठाई जाती है, और न हीं कोई संवेदना या प्रतिक्रिया ही सामने आती है। ये एक चिंतनीय विषय है कि कश्मीरी पंडितो के समस्याओं को लेकर इन लोगो का मानवतावादी दृष्टिकोण न जाने कहां चला जाता है। अगर कोई इस प्रकार का प्रयास करता भी है, तो उसे सांप्रदायिकता के रंग मे रंग दिया जाता है।देश में कश्मीरी पंडितो को अपने घर कश्मीर को छोड़े हुए 27वर्ष बीत गए लेकिन घर वापसी की राह अभी भी अंधकारमय है । लगभग 7 लाख कश्मीरी परिवार भारत के विभिन्न हिस्सों व् रिफ्यूजी कैम्प में शरणार्थियो की तरह जीवन बिताने को मजबूर है।
1947 से लेकर आज 2018 तक 71 साल हो गए कश्मीर आज तक हमारे लिए एक पहेली ही बना रहा | दिल्ली को कश्मीर पर ध्यान देने की ज़रूरत है सब राज्य सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता क्यूकी किसी के पास सीमा रहित अधिकारो का अर्थ है उन अधिकारो का दुरुपयोग | यही कश्मीर के लिए अच्छा होगा और भारत के लिए भी |और उसके लिए सविधान में संशोधन करके धारा 370 को हटाना बहुत जरुरी है . इस 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर इस और एक कदम बढाने पर ही हम सच्चे गणतंत्र मनाने के हक़दार होंगे .
सलंग्न -चित्र प्राचीन शारदा पीठ मंदिर के अवशेष जो पाक अधिकृत काश्मीर में है