करण विचार
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करण
तिथि के आधे भाग को करण कहते है ||
अर्थात आधी तिथि जितने समय में चलती है उसे ही करण कहते है ||
करण के प्रकार
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11 प्रकार के करण होते है :-
● बव ● बालव ● कौलव ● तैतिल
● गर ● वणिज ● विष्ट ● शकुनि
● चतुष्पद ● नाग ● किंस्तुघ्न
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इनमे से पहले 7 चर करण तथा अंतिम 4 स्थिर करण कहलाते है ||
बवादि प्रथम 6 करणों में मांगलिक कर्म शुभ तथा अंतिम 5 करणों में पितृ कर्म करने प्रशस्त माने जाते है ||
प्रत्येक तिथि में 2 करण होते है ||
शुक्ल प्रतिपदा से बव नामक करण का प्रारम्भ होता है ||
इसके पश्चात द्वितीया के पूर्वाद्घ से बालव करण तथा उत्तरार्ध से कौलव करण का प्रारम्भ होता है ||
चतुर्थी तक विष्ट करण रह कर पञ्चमी से पुनः बवादि 7 करणो की पुनरावृत्ति होती है ||
शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष के तिथ्यर्द्घ भाग में कौन सा करण अवतिष्ठित रहता है
इसका ध्यान रखना चाहिए ||