अध्याय-1 भाग-11
ज्योतिष में गण दोष भकूट एवं नाड़ी दोष को सर्वाधिक महत्व दिया गया है ||
यह तो स्पष्ट है कि यह तीनो 36 गुणों में से 21 गुणों का प्रतिनिधित्व करते है ||
वर्ण वैश्य तारा योनि एवं ग्रहमैत्री यह पाँचो मिलकर 15 गुणों का प्रतिनिधित्व करते है ||
अकेली नाड़ी के 8 गुण होते है जो वर्ण वैश्य तारा आदि की तुलना में सर्वाधिक है ||
इसलिए नाड़ी दोष को कुछ ज्योतिषी महादोष भी कहते है ||
मेलापक में आदि नाड़ी के साथ आदि का, मध्य के साथ मध्य का तथा अन्त के साथ अन्त का मेल अशुभ माना गया है ||
वर-कन्या दोनों की भिन्न-भिन्न नाड़ी होना दाम्पत्य सम्बन्धो में शुभता का द्योतक है ||
नाड़ी दोष में सामान्यता विवाह करना वर्जित माना जाता है
पर कुछ स्थितियों में नाड़ी दोष का परिहार हो जाने के कारण यह दोष प्रभावहीन हो जाता है ||
नाड़ी-दोष का परिहार की स्थिति
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● यदि वर एवं कन्या का जन्म एक ही नक्षत्र में हो तो निश्चित रूप से उन दोनों की नाड़ी होगी और प्रथम दृष्टि में यह नाड़ी दोष प्रतीत होगा ||
● पर कुछ विद्वानों के अनुसार
यदि एक नक्षत्र में उत्पन्न वर-कन्या के नक्षत्रो के चरण भिन्न-भिन्न हो तो नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है ||
ऐसी स्थिति में विवाह किया जा सकता है ||
● यदि वर-कन्या का जन्म भिन्न-भिन्न नक्षत्रो में होते हुए भी नाड़ी दोष हो तो उन दोनों की एक राशि होने पर भी नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है ||
ऐसी स्थिति में भी विवाह किया जा सकता है ||
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-1) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-2) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-3) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-4) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-5) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
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सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-2) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज