शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज : आप अपने जन्म नक्षत्र के अनुसार धारण करे रत्न और रुद्राक्ष
[1] अश्विनी नक्षत्र
यदि आपका जन्म अश्विनी नक्षत्र में हुआ है तो आप मूंगा माणिक्य तथा लहसुनिया रत्न और एकमुखी तीनमुखी और नौमुखी6 रुद्राक्ष धारण कर सकते है ||
इनकी सहायता से स्वास्थ लाभ आत्मविश्वास में वृद्घि कार्यक्षेत्र में उन्नति जैसे फल प्राप्त होते है ||
[2] भरणी नक्षत्र
जिनका जन्म भरणी नक्षत्र में हुआ है तो आपको हीरा या ओपल एवं मूंगा रत्न धारण करना चाहिए ||
और तीनमुखी और छमुखी रुद्राक्ष धारण करना भी उत्तम होगा ||
इससे आत्मविश्वास और आर्थिक समृद्घि होती है ||
[3] कृत्तिका नक्षत्र
जिस जातक का जन्म कृत्तिका नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म हो तो वह माणिक्य तथा मूंगा रत्न धारण कर सकता है || और एकमुखी एवं तीनमुखी रुद्राक्ष भी धारण करना उत्तम होगा ||
यदि जिसका जन्म वृषभ राशि और कृत्तिका के अंतिम चरण में हो तो वह माणिक्य के साथ हीरा या ओपल रत्न एवं एकमुखी रुद्राक्ष के साथ छमुखी रुद्राक्ष भी धारण करना चाहिए ||
इससे व्यक्ति की हर दिशा में उन्नति होती है ||
[4] रोहणी नक्षत्र
रोहणी नक्षत्र में जन्म होने पर हीरा अथवा ओपल एवं मोती रत्न तथा दोमुखी और छमुखी रुद्राक्ष धारण करने से सभी प्रकार के सुखो की प्राप्ति होती है ||
[5] मृगशिरा नक्षत्र
मृगशिरा नक्षत्र में पहले दो चरणों में जन्म होने पर मूंगा तथा हीरा अथवा ओपल रत्न एवं तीनमुखी छमुखी रुद्राक्ष धारण करना उत्तम होता है ||
मिथुन राशि अर्थात मृगशिरा नक्षत्र के अंतिम दो चरणों में जन्म होने पर सफेद मूंगा एवं पन्ना रत्न तथा तीनमुखी एवं चारमुखी रुद्राक्ष उन्नति देंने वाले होते है ||
[6] आर्द्रा नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्मे जातक को
जीवन में उन्नति प्राप्त हेतु पन्ना एवं गोमेदक रत्न तथा चारमुखी और आठमुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए ||
[7] पुनर्वसु नक्षत्र
पुनर्वसु नक्षत्र के प्रथम तीन चरण अर्थात मिथुन राशि में जन्म होने पर पन्ना एवं पुखराज रत्न तथा चारमुखी और पांचमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए ||
इससे जातक को अपार सफलता मिलती है ||
पुनर्वसु नक्षत्र के अंतिम चरण में जन्म होने पर पुखराज एवं मोती रत्न तथा दोमुखी और पांचमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए ||
इससे जातक को उत्तम स्वास्थ और श्रेष्ठ बुद्घि की प्राप्ति होती है ||
[8] पुष्य नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्म होने पर जातक को नीलम एवं मोती रत्न तथा दोमुखी और सातमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए ||
स्वास्थ लाभ एव आर्थिम लाभ की प्राप्ति होती है ||
[9] अश्लेषा नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति को मोती एवं पन्ना रत्न तथा चारमुखी और दोमुखी रुद्राक्ष धारण करने से सभी क्षेत्रो में उन्नति प्राप्त होती है ||
[10] मघा नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्मे लोगो माणिक्य6 एवं लहसुनिया तथा एकमुखी एवं नौमुखी रुद्राक्ष धारण करने से दुखो से छुटकारा मिल जाता है और उन्नति मिलती है ||
[11] पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र
इस नक्षत्र में जन्मे जातक को माणिक्य एवं हीरा या ओपल रत्न तथा एकमुखी एवं छमुखी रुद्राक्6ष धारण करने से सर्वोन्नति प्राप्त होती है ||
[12] उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र
इस नक्षत्र में ( सिंह एवं कन्या राशियों में ) जन्मे जातक को माणिक्य एवं पन्ना रत्न तथा एकमुखी एवं चारमुखी रुद्राक्ष धारण करने से उत्तम स्वस्थ आत्मशक्ति और आर्थिक उन्नति मिलती है ||
भृग-संहिता का जन्म (ज्योतिष ज्ञान (1) शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज द्वारा)
ज्योतिष सीखें : गुरु होते है शाश्वत (अध्याय २) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
भृगसंहिता : मंगल-ग्रह का स्वभाव और प्रभाव (अध्याय 3 , शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज द्वारा)
भृग संहिता में सूर्य एवं बुध ग्रहो का स्वभाव और प्रभाव : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज (अध्याय 4)
भृग्सहिता : शनि एवं शुक्र ग्रह का स्वभाव और प्रभाव (अध्याय 5)
भृग्सहिता : गुरु एवं राहु और केतु-ग्रह का स्वभाव और प्रभाव (अध्याय 6)
आओ ज्योतिष सीखें : भृगसहिंता अनुसार जन्म-नक्षत्र और रत्न-रुद्राक्ष (अध्याय 7)
आओ ज्योतिष सीखें : भृगसहिंता अनुसार जन्म-नक्षत्र और रत्न-रुद्राक्ष (अध्याय 8)