मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद् : इस साल पहला सूर्य ग्रहण, 20 मार्च को लगा था जो भारत में नहीं दिखा था। उसके बाद चंद्रमा पर ग्रहण ,4 अप्रैल को भारत के लगभग कई भागों में दिखा। हालांकि एस्ट्र्ॅानामी विज्ञान के अनुसार ग्रहण लगना एक खगोलीय घटना है। सूर्य ,चंद्र और पृथ्वी जब एक सीध में होते हैं और धरती की परछार्इं चंद्र पर पड़े तो चंद्र किरण धूमिल हो जाती है , इसे ही ग्रहण कहते हैं। चंद्र ग्रहण केवल पूर्णमासी पर ही लगता है और सूर्य ग्रहण अमावस पर ही दिखेगा। पौराणिक काल से राहु और केतु को समुद्र मंथन से जोड़ा गया है और ज्योतिष इन्हें छााया ग्रह मानता है।
ज्योतिष शास्त्र न केवल हजारों सालों सेयह बताता आया है कि ग्रहण कब लगेंगे बल्कि यह भी बताता है कि धरती तथा धरती वासियों एवं अन्य ग्रहों पर भी ऐसी खगोलीय घटना का क्या प्रभाव पड़ता है। भूकंप आने व प्राकृतिक आपदाओं की भविष्यवाणी भी ऐसी खगोलीय घटनाओं से की जाती है। इस वर्ष के बकाया दो ग्रहण इस प्रकार लगेंगे।
13 सितंबर, रविवार को खण्डग्रास सूर्य ग्रहण, भारत में नहीं दिखेगा
एक नजर में ग्रहण चाल
ग्रहण आरंभ- प्रात:- 10:12
ग्रहण मध्य- दोपहर – 12:24
ग्रहण मोक्ष – दोपहर-03:36 पर
ग्रहण का सूतक- सूर्योदय से लेकर ग्रहण मोक्ष तक ।
शंका निवारण- वैज्ञानिकों को जवाब
बहुत से लोग ग्रहण को मात्र एक खगोलीय घटना ही मानते हैं और इसमें किसी भी प्रकार की सावधानी बरतने को अंधविशवास या दकियानूसी करार देते हैं। यह उनकी मान्यता हो सकती है। परंतु वैज्ञानिक दृष्टि से भी ग्रहण के समय विकीरण के कारण आखों, रक्त संचार, रक्त चाप और खाद्य पदार्थों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। सूर्य ग्रहण के समय वैज्ञानिक ,सूर्य को नंगी आखों से न देखने की सलाह क्यों देते हैं यदि यह केवल मात्र खगोलीय घटना ही है। भारत की हर परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारण रहे हैं। आज वैज्ञानिक सुपर कंप्यूटर के माध्यम से ग्रहण लगने और समाप्त होने का समय बताते हैं जबकि महाभारत काल में तो हमारे वैज्ञानिक ऋषि मुनियों एवं गणितज्ञों ने त्रिकोणमीति अर्थात ट्र्ग्निोमिट्र्ी जो भारत की देन है, की सहायता से 5000 साल पहले ही बता दिया था कि महाभारत युद्घ के दौरान कुरुक्षेत्र में पूर्ण सूर्य ग्रहण लगेगा। इसी घटना का लाभ उठाते हुए महाभारत के दौरान अंधकार छाते ही धोखे से जयद्रथ का वध करवा दिया गया था। पूर्ण सूर्य ग्रहण लगने से जब भरी दोपहरी में अंधकार छा जाता हैे तो पक्षी भी अपने घोंसलों में लौट आते हैं। यह पिछले सूर्य ग्रहण के समय लोग देख चुके हैं और पूरे विश्व के वैज्ञानिक भी । तो ग्रहण का प्रभाव हर जीव जन्तु, मनुष्य, तथा अन्य ग्रहों पर पड़ता है। गुरुत्वाकर्षण घटने या बढऩे से धरती पर भूकंप आने की संभावना ग्रहण के 41 दिन पहले या बाद तक रहती है।
दूसरी बात यह कि मीडिया नासा के हवाले से कह रहा है कि नवंबर में मंगल व गुरु के कारण धरती पर पूर्ण अंधकार या टोटल ब्लैक आउट हो जाएगा। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मैं इस तथ्य का खंडन करता हूं और देशवासियों को विश्वास दिलाना चाहता हूं कि भारतीय वैदिक ज्योतिषीय गणना के अनुसार ऐसी घटना इस सदी में तो क्या अगली भी किसी सदी में नहीं
घटेगी। अत: जनता ऐसी खबरों पर ध्यान न दे और न ही विचलित हो। पश्चिमी देश के लोग समय समय पर ऐसी अवैज्ञानिक बातें फैलाते रहते हैं जैसे गत वर्ष दुनिया समाप्त होने की अफवाह उड़ा दी या किसी धूमकेतु गिरने की। भारतीय ज्योतिष तो प्राकृतिक आपदाओं की जानकारी सदियों से देता आ रहा है जब पश्चिम को यही कन्फयूजन था कि धरती गोल है या चपटी और भारत में ग्रहों , नक्षत्रों , राशियों की जानकारी आदिकाल से प्रचलित हैं।
स्दियों से हमारे हृदय प्रदेश काशी और कुरुक्षेत्र में ग्रहण को एक पर्व की तरह मनाया जाता है।
28 सितंबर , सोमवार को खग्रास चंद्र ग्रहण भारत में दिखेगा परंतु केवल पश्चिम राजस्थान और पश्चिमी गुजरात में।
ग्रहण काल
एस्ट्र्ॉनामी में चंद्र के पेनंबरा में प्रवेश का समय प्रात:5: 40 पर होगा जिसे भारतीय ज्योतिष में चंद्रमालिन्य कहा जाता है। पेनंबरा से बाहर आने का समय प्रात: 10:54 होगा जिसे भारतीय भाषा में चंद्रकांति निर्मल हो जाना कहा जाता है।
भारतीय पौराणिक परंपरा के अनुसार ग्रहण का सूतक 27 सितंबर ,रविवार को ही सूर्यास्त से शुरु हो जाएगा।
स्ूातक के दौरान कोई भी धार्मिक कार्य, विशेष मांगलिक कार्य , संसर्ग आदि न करने की सलाह दी गई है। इसका मूल कारण चंदमा के क्षीण होने पर सोचने समझने की शक्ति क्षीण होना माना गया है जिसमें मानव मस्तिष्क,विशेष महत्वपूर्ण निर्णय ठीक से नहीं ले पाता। वैज्ञानिक रुप से ग्रहण का प्रभाव हानिकारक विकीरणें के कारण मनुष्य जीवन पर पडऩे की आशंका रहती है।
इस बार ग्रहण भारत के केवल राजस्थान व गुजरात के कुछ भागों के अलावा कहीं किसी अन्य भाग में दृश्य नहीं होगा । इसके अलावा यह पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, ईराक,अफ्रीका, इंग्लैंड,पूरे यूरोप,अमरीका तथा दक्षिणी अफ्रीका में दृश्य होगा। ज्योतिष में सोमवार को लगने वाले वंद्र ग्रहण को ‘चूड़ामणि चंद्र ग्रहण’ कहा जाता है।
एक नजर में ग्रहण चाल
ग्रहण का सूतक- 27 सितंबर को सूर्यास्त से लेकर 28 सितंबर को ग्रहण समाप्ति तक ।
च्ंाद्र मालिन्य प्रारंभ- प्रात: 05:40
ग्रहण आरंभ- प्रात: 06:37
खग्रास आरंभ-प्रात: 07:41
ग्रहण मध्य- प्रात: 08:17
खग्रास समाप्त- प्रात: 08:54
ग्रहण मोक्ष – 09:57
च्ंाद्र मालिन्य समाप्त-10:54
कौन सी राशि होगी प्रभावित ? क्या करें दान ?
यह ग्रहण मीन राशि और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में लग रहा है। अत: इस राशि व नक्षत्र वालों के अलावा गर्भवती महिलाओं को विशेष ध्यान रखना चाहिए। यथाशक्ति जाप , पाठ व दानादि से इसका अशुभ प्रभाव क्षीण किया जा सकता है। यह ग्रहण बृष,मिथ्ुन, तुला एवं मकर , राशि के लिए उत्तम तथा कर्क, कन्या,वृश्चिक व कुंभ वालों के लिए मध्यम रहेगा। मेष, सिंह,धनु एवं मीन राशि के लिए बहुत अच्छा नहीं रहेगा।
ग्रहण समाप्ति पर दान करना चाहिए। ओम् नमो भगवते वासुदेवाय का मंत्र जाप करें ।
ग्रहण में क्या करें क्या नहीं ?
सूतक तथा ग्रहण काल में मूर्ति स्पर्श, अनावश्यक खाना पीना, संसर्ग आदि से बचना चाहिए। गर्भवती महिलाएं अधिक श्रम न करें । मान्यता है कि गर्भस्थ शिशु या ग्रहण काल में गर्भवती होने से जन्म लेने वाली संतान पर शारीरिक प्रभाव पड़ता है। सामान्य रहें।ग्रहण काल में चंद्रमा को सीधे न देखा जाए। खुले में खाद्य सामग्री न रखें। संक्रमण व विकीरणों से बचने के लिए तुलसी का प्रयोग करें। ग्रहण लगने से पहले और दो दिन बाद तक के संक्रमण काल में कोई शुभ अथवा अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य, विवाह ,निर्माण,नए व्यवसाय का आरंभ , सगाई, लंबी अवधि का निवेश, मकान का सौदा या एडवांस, आंदोलन, धरना- प्रदर्शन आदि नहीं करना चाहिए क्योंकि उनके सफल होने में संदेह रहता है।
क्या करें दान?
मीन राशि वाले लोग तथा अन्य भी इच्छानुसार , ग्रहण समाप्ति पर स्नान करके मंदिर में , गाय को या मांगने वालों को गुड़ , चने की दाल,चावल वस्त्र और दूध दान कर सकते हैं। इसके अलावा सात अनाज के दान का भी महत्व है। सात अनाज में शास्त्रानुसार कनक, चावल, मक्की, चने, जौ ,ज्वार तथा बाजरा होने चाहिए। इसमें दालें नहीं होनी चाहिए। जिनकी साढ़सती चल रही हो जैसे तुला ,बृश्चिक व धनु व राशि वाले जातक अपने वजऩ के बराबर तुलादान कर सकते हैं। या 12 किलो ऐसा अनाज अलग अलग लिफाफों में डालकर दान दे सकते हैं। कालसर्प दोष के जातक , विशेष जाप, महामृत्युंज्य मंत्र तथा राहू – केतु के मंत्र जप सकते हैं। चांदी के नाग नागिन शिवलिंग पर चढ़ा सकते हैं या प्रवाहित कर सकते हैं।
ग्रहण पर कौन से मंत्र पढ़ सकते हैं और कौन से उपाय करें ?
ऽ व्यापार नहीं चल रहा है तो गल्ले या तिजोरी में दक्षिणावर्त शंख, 7 लघु नारियल, 7 गोमती चक्र रखें।
ऽ रोग निवारण के लिए, ग्रहण काल में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए, महामृत्युंजय यंत्र का अभिषेक करें ।
ऽ रोग निवृति हेतु, कांसे की कटोरी में पिघला देसी घी भरें, एक रुपया या सामथ्र्यानुसार ,चांदी या सोने का सिक्का या टुकड़ा डालें । इसमें रोगी अपनी परछाई देखे और किसी को दान कर दें।
ऽ असाध्य रोग के लिए , ग्रहण पर तुला दान सबसे अच्छा माना गया है।
ऽ धन प्राप्ति के लिए, श्री यंत्र या कुबेर यंत्र पूजा स्थान पर अभिमंत्रित करवा के रखें और श्री सूक्त पढ़े।
ऽ ग्रहण काल में कालसर्प योग या राहू दोष की शांति किसी सुयोग्य कर्मकांडी द्वारा करवाएं।
ऽ ग्रहण समाप्ति पर अपने पहने कपड़े उतार कर, 7 अनाज शरीर से 7 बार उल्टा घुमा कर अपंग, कुष्ठ रोगी या दान के सुपात्र ,दान- ग्रहणकर्ता को देने से कष्ट दूर होते हैं।
इन मंत्रों की 11 जाप मालाएं करें । ये वही मंत्र हैं जो तथाकथित आधुनिक स्वामी अपने बड़े बड़े समागमों में बीज मंत्र के नाम पर बड़े रहस्यमय होकर आपको पासवर्ड के नाम पर लाखों रुपये खर्चवा कर अपनी महत्ता बताते हैं । आप ये मंत्र विभिन्न ग्रहणों, होली, दीवाली, नवरात्रि आदि के विशिष्ट अवसरों पर स्वयं भी कर सकते हैं।
ऽ कार्य सिद्घि के लिए
– ओम् आं हृां क्ष्वीं ओम् हृीं तथा ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम:।
ऽ कोर्ट केस व शत्रुता के लिए
-! ओम् मम शत्रुन हन कालि शर शर,दम दम मर्दय मर्दय तापय तापय,
गोपय पताय शोषय शोषय ,उत्सादय उत्सादय, मम सिद्घि देहि फट्!!
ऽ बिगड़े, रुष्ट, अन्य में आसक्त पति या पत्निी को अनुकूल बनाने के लिए
-! ओम् अस्य श्री सुरी मंत्रस्वार्थवर्ण, ऋषि इति शिपस स्वाहा!!
ऽ कन्या के विवाह हेतु
-! ओम् गौरी पति महादेवाय मम इच्छित वर प्राप्त्यर्थ गोर्ये नम: !!