मदन गुप्ता सपाटू द्वारा एक हास्य व्यंग्य
प्ंजाबी में एक प्रसिद्ध गाना है- मेरी लगदी किसे न जानी, टुटदी नूं जग जाणदा। आज हम भी एक बात को लेकर पछता रहे हैं कि काष ! हम भी एक ब्रीफकेस में कुछ सामान वामान भर कर किसी नेता या किसी अकादमी के चेयरमैन को चुपचाप पकड़ा आते तो कम से कम साहित्य में कोई न कोई सम्मान तो पा जाते। भले ही साहित्य अकादमी के अवार्ड मिलने पर उतनी प्रषंसा न पाते परंतु आज उसे लौटाने पर ढेरों सुर्खियां तो बटोर लेते ! बकौल पप्पू की अम्मां कि हमने आज तक कोई काम समय रहते किया ही नहीं , सांप निकल जाने पर ही लकीर पीटते रहे और अवार्ड लोटाने पर वाहवाही लूटने से वंचित रह गए। डबल बेनेफिट स्कीम का लाभ नहीं उठा सके।
अवार्ड मिलने पर षायद हमारे यार दोस्त बधाई देने न आते जितने लौटाने की खबर सुनकर हमारे हौसले की दाद देने के बहाने चाय नाष्ता चट करने चले आतेे। हर अखबार हमारी हिम्मत की हौसला अफजाई करता। बड़ी बड़ी फोटो के साथ संपादकीय पेज भरता। टी वी चैनलांे के दाल फुल्के में देसी घी का तड़का लग जाता । लेखकों -आलोचकों को चैनल के पैनल पर लड़ने भिड़ने का सुअवसर प्राप्त हो जाता और दर्षक भी एक दूसरे से आखें फाड़कर पूछते का भइया ! अच्छा ई …. छुटट्न चैरसिया भी लेखक बा का ? बहुत सी सोई साहित्यिक संस्थाएं जाग उठती। कई यार मित्तर पूछते भई ये साहित्य षिरोमणि अवार्ड से कब नवाजे़ गए थे ? अकेले अकेले दिल्ली चले गए। हमें बताते, हम भी तालियां बजाने में सब का साथ देते।
बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा ? अब तक पंजाबी और कन्नड़ के महारथी भी घर में अवार्ड सजाए उसकी हवा ले रहे थे। जैसे ही नयनतारा सहगल और अषोक वाजपेयी ने बिगुल बजाया, ये लोग भी पीछे पीछे कदम ताल करने लगे। जब हजारों में कष्मीरी पंडित मारे जा रहे थे या पलायन कर रहे थे तब ये लोग अवार्डों की गर्मी ले रहे थे।
हमारे देष में मौसम का बहुत बड़ा रोल है। सिंघम रिटर्न की तरह आजकल अवार्ड रिटर्न का मौसम है। कई राज्यों के अवार्ड विनिंग लेखकों को षायद ही कोई जानता होगा लेकिन अब लौटाने पर उनके छपे फोटो देखकर लोग पूछ रहे हैं भईया ई कउन बा ?
साहित्य में आप जितनी मर्जी कलम घिसाई कर लो परंतु जब तक आपके अंदर अवार्ड लूटने और फिर उसे लौटाने की कला नहीं आती तो आप दो टके के लेखक हैं और बेकार के साहित्यकार हैं।
कई बार डाक्टर लोग भी हड़ताली मौसम में प्रोटैस्ट के तौर पर अपनी डिग्रियां फा़ड़ते देखे गए हैं। अब सबको क्या पता कि ये वैसे भी जाली थी या असली की फोटो कापी थी ?
परंतु जनाब ! ज्योतिश के क्षेत्र में आपको टूटे से टूटा ज्योतिशी भी गोल्ड मेडलिस्ट और 10 -12 सम्मानों से सुसज्जित मिलेगा जिनका किया- धरा कोई काट नहीं सकता। मिन्टों सैकेंडों में सौतन से छुटकारा ऐसे दिलवाते हैं जैसे सुबह सुबह टायलेट में पेट से रात का खाया पिया । जो भगवान आपका सारी उम्र कल्याण नहीं करता, वो ये चंद घंटों में ही अपने उपायों से राहत दिलवा देते हैं। ब्रहमा भी इनकी बात नहीं टाल सकते। ऐसे सज्जन कभी अवार्ड लौटाते नहीं देखे गए। अब ये तो जग जाहिर है कि जब ज्योतिश सम्मेलनों का मौसम चलता है तो दरी समेटने से लेकर बुके सप्लाई करने वाले तक हाथ में ज्योतिश का प्रमाण पत्र, प्रषस्ति पत्र, षाल दुषाला ओढ़े, हाथों में एक स्मृति चिन्ह थामें, दांत निपोरते हुए ,लोकल मुख्य अतिथि के कर कमलों द्वारा सम्मानित होते और फोटो के लिए पोज बनाते हुए नजर आते हैं। भइया ऐसे सम्म्ेलनों में फोकट में सम्मान नहीं मिलता उसके लिए एडवांस में षुल्क रुपी सामान जमा करना पड़ता है तब कहीं जाकर आपको जनता ज्योतिश का विद्वान मानती है। हर फील्ड में ऐसे ही चलता है। बिना गुड़ डाले भी कभी मीठा हुआ है?
– मदन गुप्ता सपाटू,