गोरखपुर, 28 सितम्बर। गोरखनाथ मन्दिर में युगपुरुष ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज की 4 6 वीं पुण्यतिथि एवं ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज की प्रथम पुण्यतिथि समारोह के अन्तर्गत ‘ ‘गोरक्षा राष्ट्ररक्षा सम्मेलन’’ में मुख्य अतिथि जयपुर से पधारे श्रीम तपंचखण्डपीठाधीश्वर आचार्य धर्मेन्द्र जी महाराज ने कहा कि अपनी सरलता और उपयोगिता के कारण गौ वंश की महत्ता प्रायः सभी सभ्य देश् ाों में न्यूनाधिक रूप से विद्यमान ह ै।
भारत जैसे धर्मप्राण एवं कृषि प्रधान देश् ा में तो जननी और जन्मभूमि के समान लोक वं द्य माता के रूप में गौ और गौवंश् ा की महत्ता अनादिकाल से है। गाय, गीता और गंगा भारतीय संस्कृति की प्रतीक है। गीत ा की तरह ही गाय पूज्य है। हमारे श् ाास्त्रों में कहा गया है कि गौ रूद्रो की माता हैं। गोमाता में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का हम एक साथ दर्शन करते हैं। गा य हिन्दू-मुसलमान-ईसाई का भेद नहीं करती बल्कि सभी को एक समान मीठा दूध देती है।
अतः देश की संसद सम्पूर्ण गोवंश् ा की हत्या पर प्रतिबंध लगाने सम्बन्धी कानून ब नाये। भारत में गो और गौ वंश् ा का अस्तित्व खतरे में है। भारतीय संस्कृति और भारत की आत्मा को आ ैर अधिक लज्जित, लांछित तथा कृतध्न होने से बचाया जा सके। मुख्यवक्ता भारत सरकार की खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा कि ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज भारत में गोरक्षा आन्दोलन के अग्रणी नेत ाआंे में एक थे। स्वतंत्रता के बाद से ह ी गोवं श् ा की हत्या रोकने सम्बन्धी कानून बनाने के लिए धर्माचार्यों ने अनेकों बार अभियान चलाया। महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज ने गोवध बन्दी को आवश् यक मानने हुए कहा था कि गोरक्षा का प्र श् न मेरे लिए स्वराज्य से भी अधिक महत्वपूर्ण है। ब्रहा्रलीन महन्त अवेद्यनाथ जी मह ाराज ने कहा था कि यदि गाय नष्ट हो गयी तो भारतीय संस्कृति नष् ट हो जायेगी।
अ तः श्रीराम-कृष्ण के इस देश में गोवंश की हत्या हमारे लिए श र्म की बात है। साध्वी ने आगे कहा कि गोरक्षा केवल कानून बनाने से नहीं होगी इसके लिए समान जनमानस को जागरूक होना पड़ेगा। जिस गाय की हम दूध पीते है उसी को हम वृद्ध होने पर कस्साईयों के हाथ बेच देते हैं। जब तक प्रत्येक हिन्दू व्यक्ति धार्मिक आधार पर गोसंरक्षण के बारे में नही सोचे गा तब तक गोरक्षा संभव नही है। गोरक्षा के लिए गोरक्षपीठ प्रारम्भ से ही संकल्पित है । हमें यहॉ से संकल्प लेकर जाना है कि जहॉ तक संभव होगा गोरक्षण में अपनी सहभागिता निभायेंगे।
श्रद्धांजलि समारोह के अध्यक्ष गोरक्षपीठ ाधीश्वर महन्त योगी आदित्यनाथ जी महाराज ने कहा कि धर्मरक्षा, स्वास्थ्य रक्षा, आ र्थिक लाभ और पर्यावरण की दृष्टि से गौ तथा गौवंश् ा का संरक्षण ए व ं संवर्धन आवश् यक है। हमारे वैदिक ग्रन्थों से लेकर पौराणिक ग्रन्थों तक में गाय की महिमा गायी गयी है। 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्र ाम गोमाता के प्रति आस्था के प्रश् न के ग र्भ से ही उपजा था। भारत के राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 1967 में घोष् ाणा की थी कि नवगठित सरकार गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगायेगी। भाई जी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार, बाबा राघवदास, स्वामी करपात्री जी, लाला हरदेवसहाय जैसे महापुरूशों के नेतृत्व मं गोवं श् ा की हत्या पर प्रतिबन्ध के लिए जन-जागरण एवं आ न्दोलन चलाए गये। आजादी के साढ़े छः दश् ाक पूरे हो ने के बाद अहिंसा के पुजारी इस देश में बड़ी संख्या मंे गो वंश् ा की प्रतिदिन हत्या होती है।
महन्त जी महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति यज्ञ की संस्कृति हैं। गोमूत्र, गोदूध, गोबर, गोघृत आदि के बिना पंचामृत एवं यज्ञ की कल्पना ही नहीं की जा सकती। गोमाता हमारी यज्ञ स ंस्कृति की प्रतीक है। ये हमारे सामाजिक-आर्थिक-धार्मिंक जीवन की धुरी है। भ ारत का बोध वाक्य रहा ‘भारत देश् ा से नाता है गो हमारी माता है’ ए ेसे देश में गौ वंश् ा की हत्या महापाप है। गौ धन की रक्षा का संलल्प दे श की वर्तमान आवश्यकता है। नैमिषारण्य से पधारे स्वामी विद्या चैतन्य जी ने कहा कि जि स गौ को हम माता मानते है, कृष् िा प्रधान दे श् ा में हमारे आर्थिक स ंरचना की जो रीढ़ है, उसी गोवंश् ा का अस्तित्व ही जिस प्रकार आज खतरे मे है वो भारत के लिए दु र्भाग्यपूर्ण है और चिंता का विष् ाय है। गोमाता की सेवा के बगैर लो क-परलोक दोनों जीवन अधूरा है। गोमाता सनातन अस्मिता की प्रतीक है। योगी आदि त्यनाथ जी महाराज संसद में गोवंश् ा के र क्षा की लड़ाई लड़ते है, यह गोर खपुर के लिए सौभाग्य की बात है। हम भी लोकचेतना को जाग्रित करें और गोसेवा का व्रत ले। …. 2 …. (2) ह रिद्वार से पधारी साध्वी प्राची जी ने कहा कि जनजागरण एवं जनसंघर्ष् ा के बिना गोरक्षा का अभियान पूरा नहीं होगा। सर्वमयी गौ हमारे लिए वरदायिनी है। उन्होनें कहा समुद्र मन्थन के फलस्वरूप उत्पन्न 14 रत्नों में ‘सुरभि‘ अर्थात गौ भी थी। गायों को तीनो लोकों की मा ता कहा गया है। पुण्यकामी गृहस्थ जनों को गौ सेवा करनी चाहिए। जो गौ सेवा परायण हो ता है उसकी श्री वृद्धि श् ाीघ्र होती है। भविष् य पुराण में कहा गया है गौ की पीठ मंे ब्रम्ह, गले में विष् णु, मुख में रूद्र प्रति िष् ठत है। परम गौ भक्त प्रहलाद दास ब्रम्हचारी जी न े कहा कि भारत में प्रतिव र्ष् ा गोबर आदि जैविक खाद के अभाव में लगभग 6 से 7 प्रतिश् ात भूमि बंजर होती जा रही है। एैसे में गो और गोवंश की उपयोगिता हमारे कृष् िा कार्य हेतु अपरिहार्य बनती जा रही है। धर्म और आध्यात्म के साथ-साथ आर्थिक स्वावलम्बन के लिए भी गोवध पर पूर्ण प्रतिबंध देश की आवश् यकता है। यदि मानव की रक्षा करनी है तो गो और गंगा की रक्षा करनी होगी। गोसेवक एवं पूर्व प श् ाुधन प्रसार अधिकारी वरुण कुमार वैरागी ने गो रक्षा पर कविता का पाठ किया। सम् मेलन का शुभारम्भ दोनों ब्रह्मलीन महन् त ज ी महा राज को अतिथियों द्वारा पुष् पांजलि एवं पं0 रंगनाथ त्रिपाठी द्वारा वैदिक मंगलाचरण, डा0 इन्द्रजीत शुक्ल द्वारा दिग्विजयस्त्रोतपाठ एवं प्रांगेश मिश्र द्वारा अवेद्यनाथ स्त्रोत पाठ के साथ प्रारम्भ हुआ। महाराणा प्रताप कृष् ाक इण्टर कालेज, जंगल घूसड़ के प्रधानाचार्य श्री ब्रह्मदेव याद व ने आभार तथा दिग्विजयनाथ पी0जी0 कालेज के प्राचार्य डा0 शेरबहादुर सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया एवं संचालन डा0 श्री भगवान सिंह ने किया। इस अवसर पर रवीन्द्रदास जी, प्रेमदास जी, पंचानन पुरी, स्वामी गोपालदास जी महाराज, महन्त सुरेशदास जी महाराज, महन्त शिवनाथ जी महाराज, महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रो0 उदय प्रताप सिंह, हरिद्वार से पधारे महन्त शांतिनाथ जी, अयोध्या से पधारे महन्त राममिलनदास जी सहित अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे