डॉ विवेक आर्य : बरेली प्रवास के समय पादरी स्कॉट एवं स्वामी दयानंद के मध्य क्या ईश्वर पाप क्षमा करते है? विषय पर शास्त्रार्थ हुआ। स्वामी जी ने अपने तर्कों से पापों का क्षमा होना गलत सिद्ध कर दिया। इस स्कॉट महोदय ने स्वामी दयानंद से प्रश्न किया की अगर ईश्वर पाप क्षमा नहीं करता हैं तो उसकी स्तुति-प्रार्थना से क्या लाभ और फिर उसे दयालु भी क्यों कहा जाये?
स्वामी दयानंद ने इसका उत्तर दिया-
“मनुष्य के ईश्वर की स्तुति प्रार्थना और उपासना सभी बहुत आवश्यक हैं।”
स्तुति से मनुष्य की प्रीति ईश्वर में बढ़ती है, उसका ईश्वर में विश्वास होता है,और ईश्वर के गुणों का स्मरण करने से उसके गुण, कर्म और स्वभाव में सुधार होता है।
प्रार्थना से मनुष्य में निरभिमानिता आती है और आत्मबल बढ़ता हैं।
उपासना से परमात्मा का समीप्य और साक्षात्कार होता हैं। मनुष्य में कष्ट सहन की शक्ति बढ़ जाती है। वह बड़ी से बड़ी आपत्ति में नहीं घबराता, वह मृत्यु के मुख में भी हँसता रहता है।
अब रही ईश्वर के दयालु होने की बात, तो क्या यह उसकी दया नहीं है कि वह माँ के पेट से मरण पर्यन्त हमारी रक्षा करता है। और क्या यह उसकी दया नहीं है कि वह हमारे पापों का दंड देकर हमारा सुधार करता है।जैसे राजा एक डाकू को दंड देकर अपनी प्रजा की रक्षा करके अपनी प्रजा पर दया करता है, वैसे ही ईश्वर एक पापी को दंड देकर भी दयालु है। यदि ईश्वर पाप का उचित दंड न दे तो ईश्वर न्यायी नहीं रह सकता।
क्या आज आपने दयालु एवं न्यायकारी ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना की हैं?
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